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आरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
READ MOREआज के समय जब ज्यादातर काम मोबाइल पर आधारित हो गया है तो खतरा भी काफी बढ़ गया है। हर समय निजी डाटा के चोरी होने का डर बना रहता है। हाल में सरकार ने ऐसे कुछ ऐप बैन किए हैं। अब कुछ और ऐप्स पर ऐक्शन हुआ है।
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आरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
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