[fvplayer id=”10″]
आरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
READ MORE[fvplayer id=”10″]
आरजे काव्य…देवभूमि उत्तराखंड के लिए तीन साल में ही ये एक ऐसा नाम बन गया, जिसे क्या पहाड़ और क्या मैदान, हर जगह भरपूर प्यार मिला। काव्य को उत्तराखंड के लोग परिवार का हिस्सा मानने लगे। आरजे काव्य ने खुद को ‘उत्तर का पुत्तर’ कहा तो लोग उनके फैन बनते चले गए। इसके बाद शुरू हुआ पहाड़ की कला, संस्कृति को रेडियो के जरिये बढ़ावा देने का सिलसिला।
READ MORE