कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून

कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून

‘उत्तराखंड मांगे भू-कानून पहाड़ी प्रदेश की ये एक मांग जो सालों से उठती चली आ रही है। ये केवल एक मांग नहीं बल्कि अब आंदोलन का स्वरूप ले चुकी है। पर्यावरणविद और राज्य के लोग इस मांग को अबतक की सभी सरकारों के सामने उठा चुके हैं, लेकिन साल 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड सरकार को 24 साल बाद साल 2025 में इस ‘गंभीर’ मुद्दे पर पहली सफलता मिली है।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड से काफी साल पहले ही हिमाचल राज्य अस्तिस्व में आ गया था। साल 1971 में ही हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया था और इसी के साथ वो देश का 18वां राज्य बना। उत्तराखंड साल 2000 में अस्तित्व में आया। इन दोनों राज्यों में सबसे बड़ा अंतर ये रहा कि जहां उत्तराखंड को एक सशक्त भू-कानून के दिशा में आगे बढ़ने के लिए 24 साल लग गए, वहीं अस्तित्व में आने के एक साल बाद ही भविष्य को भांपते हुए हिमाचल में भूमि सुधार कानून लागू हो गया था। उत्तराखंड में सख्त कानून को लेकर जनता की भावनाओं को देखते हुए सरकार ने लंबित मांग को पूरा करने के लिए कदम उठा लिया है। उत्तराखंड में मौजूदा भू-कानून के मुताबिक नगर निकाय क्षेत्र के बाहर कोई भी व्यक्ति ढाई सो वर्ग मीटर तक जमीन बिना अनुमति के खरीद सकता है लेकिन अब नये कानून में पूर्व के सभी प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया है।

कैबिनेट की बैठक में भू-कानून पास होने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि “राज्य, संस्कृति और मूल स्वरूप की रक्षक हमारी सरकार!” प्रदेश की जनता की लंबे समय से उठ रही मांग और उनकी भावनाओं का पूरी तरह सम्मान करते हुए आज कैबिनेट ने सख्त भू-कानून को मंजूरी दे दी है। यह ऐतिहासिक कदम राज्य के संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहर और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, साथ ही प्रदेश की मूल पहचान को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उत्तराखंड में मौजूदा भू-कानून के मुताबिक नगर निकाय क्षेत्र के बाहर कोई भी व्यक्ति ढाई सौ वर्ग मीटर तक जमीन बिना अनुमति के खरीद सकता है। वहीं, वर्ष 2018 में भूमि खरीद संबंधी नियमों में बदलाव किया गया था। जिसके तहत बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा 12.5 एकड़ को खत्म कर इसकी परमिशन जिलाधिकारी स्तर से देने का प्रावधान किया गया था। इसके बाद भी प्रदेश में और सख्त भू-कानून लागू करने की मांग उठ रही थी। जिसको देखते हुए धामी सरकार ने उत्तराखंड में बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर कुछ सख्त प्रावधान किए हैं। हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में कुछ प्रतिबंध लागू किये जा सकते हैं। इस कानून के लागू होने के बाद बाहरी लोगों के बेहिसाब जमीन खरीदने पर रोक लगेगी और स्थानीय लोगों के हितों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। राज्य में भू-कानून लागू होने के बाद वर्ष 2018 में लागू किए गए सभी प्रावधानों को नए कानून में समाप्त कर दिया गया है। इसके तहत बाहरी व्यक्तियों की भूमि खरीद पर प्रतिबंध लग जाएगा। हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर राज्य के अन्य जिलों में राज्य के बाहर के लोग हॉर्टिकल्चर और एग्रीकल्चर की भूमि नहीं खरीद पाएंगे।

पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि का सही उपयोग सुनिश्चित करने और अतिक्रमण रोकने के लिए चकबंदी और बंदोबस्ती की जाएगी। वहीं, अब जिलाधिकारी व्यक्तिगत रूप से भूमि खरीद की अनुमति नहीं दे सकेंगे। अब सभी मामलों में सरकार द्वारा बनाए गए पोर्टल के माध्यम से भूमि खरीद की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। वहीं इस भू-कानून के तहत प्रदेश में जमीन खरीद के लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा। जिसमें राज्य के बाहर के किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदी जाने वाली जमीन की जानकारी दर्ज की जाएगी। राज्य के बाहर के लोगों को जमीन खरीदने के लिए शपथ पत्र देना अनिवार्य होगा, जिससे फर्जीवाड़ा और अनियमतिताओं को रोका जा सकेगा। सभी जिलाधिकारियों को राजस्व परिषद और शासन को नियमित रूप से भूमि खरीद से जुड़ी रिपोर्ट सौंपनी होगी। नगर निकाय सीमा के अंतर्गत आने वाली भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू उपयोग के अनुसार ही किया जा सकेगा। यदि किसी व्यक्ति द्वारा नियमों के खिलाफ जमीन का उपयोग किया गया तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाएगी।

नए कानून के प्रभावी होने के बाद बाहरी लोगों द्वारा अंधाधुंध भूमि खरीद पर रोक लग जाएगी। जिससे पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि का बेहतर प्रबंधन होगा और राज्य के निवासियों को उसका अधिक लाभ मिलेगा। इसके साथ ही भूमि की कीमतों में और अप्राकृतिक बढ़ोतरी पर नियंत्रण रहेगा और राज्य के मूल निवासियों को भूमि खरीदने में सहूलियत होगी। सरकार को खरीद बिक्री पर अधिक नियंत्रण प्राप्त होगा जिससे अनियमितताओं पर भी रोक लग सकेगी। बता दें कि मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति द्वारा सशक्त भू-कानून लागू करने मांग की जा रही है। उत्तराखंड में वर्ष 2018 में त्रिवेंद्र सरकार द्वारा हुए भू-कानून संशोधन और 2022 में धामी सरकार द्वारा लैंड यूज एक्ट तुरंत निरस्त किए जाएं। उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तरह भू-सुधार अधिनियम धारा 118 लागू हो, जिसमें गैर कृषकों को जमीन ट्रांसफर करने पर प्रतिबंध लगाया जाये और कोई भी बाहरी व्यक्ति खेती की जमीन निजी या व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता।

उत्तराखंड के भू-कानून को अनुच्छेद 371 ए के तहत शामिल किया जाए गैर कृषक उत्तराखंड में जमीन नहीं खरीद सकते। समिति ने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश की तरह धारा 118 कंट्रोल एंड ट्रांसफर ऑफ़ लैंड बनाई जाए जिसमें राज्य के किसी भी गैर कृषक को जमीन हस्तांतरित ना की जा सके। उत्तराखंड में व्यवसायिक उपक्रमों और व्यवसायिक संस्थानों को व्यवसायिक कार्यों के लिए भूमि को लीज पर ही दिया जाए। जिससे क्रय विक्रय का नियंत्रण राज्य सरकार द्वारा स्पेशल इकोनामिक जॉन या कमर्शियल लैंड पूल बनाकर किया जाए। उत्तराखंड में भू-कानून संशोधनों में मूल निवास 1950 के अधिनियम को जोड़ा जाए। जिसमें उत्तराखंड में 1950 से पहले रहने वाले व्यक्ति को ही राज्य में कृषक माना जाए। खरीदी गई भूमि खरीद पर केवल उसी मूल निवासी महिला का अधिकार सुनिश्चित किया जाए। समिति द्वारा यह भी मांग की गई है कि मूल निवासी महिला का दूसरे राज्य या गैर मूल निवासी व्यक्ति से विवाह करने के उपरांत भी उत्तराखंड में उसकी पारिवारिक भूमि केवल उसके जैविक बच्चों के नाम पर यह हस्तांतरित हो। वह भूमि उसके पति या उसके पति के परिवार के किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित ना हो। उत्तराखंड में कृषि भूमि के स्वामित्व में कृषक पुरुष के साथ उसकी कृषक पत्नी का नाम भी दर्ज हो।

उत्तराखंड की जलवायु, जंगल, जल और जमीन बेशकीमती हैं। वन क्षेत्रों के बीच खेती की जमीन बहुत कम हैं। जिसे बचाना यहां के लोगों के लिए चुनौती है। उन्होंने कहा बाहरी लोग यहां जमीनें खरीद कर होटल, रिसॉर्ट तैयार करते हैं। जिसके लिए जंगल काटे जाते हैं। जिस पर रोक लगाये जाने की जरूरत है। उन्होंने उत्तराखंड की तुलना हिमाचल से की है। उन्होंने कहा उत्तराखंड में खेती से लोगों का मोह भंग हो रहा है, जबकि हिमाचल में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा बागवानी में हिमाचल अच्छा कर रहा है। भू-कानून को लेकर वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि, सख्त भू-कानून किसी भी राज्य के लिए बहुत जरूरी है। इसके जरिए ही हम अपने राज्य की बेशकीमती कृषि और बागवानी जमीनों को बिकने से बचा सकते हैं। उन्होंने कहा, खाली होते पहाड़ों पर अक्सर मैदानी पैसे वालों की नजर रहती है, जिसे वो सस्ते दामों में आसानी से खरीद लेते हैं। ऐसे लोगों से बेशकीमती जमीनों को बचाने के लिए भू-कानून जरूरी है।

उत्तराखंड में भी कृषि भूमि बचाने के लिए कड़े भू-अधिनियम की मांग की जा रही थी। सीएम ने इसे गंभीरता से लेते हुए पहले ही आदेश जारी करते हुए आगामी आदेश तक सभी जिलों के मुखिया को बाहरी लोगों को आवेदन के बाद कृषि और बागवानी के लिए जमीन खरीद की अनुमति पर रोक लगा दी थी। उत्तराखंड को भी इस और प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उत्तराखंड में सख्त भू-सुधार कानून जरूरी है। उन्होंने कहा उत्तराखंड में सख्त भू—कानून आने के बाद जंगलों के कटान पर भी रोक लगेगी। साथ ही पर्यावरण को भी इससे फायदा होगा। प्रदेश सरकार जनता की आवाज़ सुनेगी। मूल निवास और भू—कानून को लेकर उचित फैसला लिया जाएगा। जनता की मांग जायज है। पूर्व में राज्य आंदोलन की अवधारणा यही रही है। राज्य के लोगों, युवाओं को रोजगार के लिए भटकने नहीं दिया जाएगा। जिन लोगों ने राज्य आंदोलन के दौरान लाठी डंडे खाए उन्हें नहीं भुलाया जाएगा। दुर्भाग्य है कि राज्य आंदोलनकारियों के सपने अब भी अधूरे थे, राज्य आंदोलनकारी ने कहा एक बड़ा सवाल यह है कि जो जमीनें अभी तक बिक चुकी हैं, उसके लिए सरकार की क्या तैयारी है?

लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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