भारत में चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर हैं। मंदिर के रहस्यों का अभी तक वैज्ञानिक भी नहीं पता लगा पाए हैं। इन रहस्यमयी मंदिरों में से एक दक्षिण भारत में स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर भी है।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भगवान तिरुपति बालाजी का चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह खूबसूरत मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित है और यह भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है। भगवान तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलने वाला लड्डू इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रसाद में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच रिपोर्ट सामने आई है। इसमें मछली के तेल और जानवरों की चर्बी मिलाने के इस्तेमाल की पुष्टि हुई है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब विवाद खड़ा हो गया है।
भगवान तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं, उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं। भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक, यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं। भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर बाल लगे हैं जो असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु खुद विराजमान हैं। जब आप मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में है। लेकिन आप जैसे ही गर्भगृह के बाहर आएंगे तो चौंक जाएंगे, क्योंकि बाहर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है। अब यह सिर्फ भ्रम है या कोई भगवान का चमत्कार इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है।
मान्यता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं जिसकी वजह से श्री वेंकेटेश्वर स्वामी को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परम्परा है। तिरुपति बाला मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा अलौकिक है। यह विशेष पत्थर से बनी है। यह प्रतिमा इतनी जीवंत है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान विष्णु स्वयं यहां विराजमान हैं। भगवान की प्रतिमा को पसीना आता है, पसीने की बूंदें देखी जा सकती हैं। इसलिए मंदिर में तापमान कम रखा जाता है। श्री वेंकेटेश्वर स्वामी के मंदिर से 23 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है जहां गांव वालों के अलावा कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। इस गांव लोग बहुत ही अनुशासित हैं और नियमों का पालन कर जीवन व्यतीत करते हैं।
मंदिर में चढ़ाया जाने वाला पदार्थ जैसे की फूल, फल, दही, घी, दूध, मक्खन आदि इसी गांव से आते हैं। जिस पवित्र लड्डू को भक्त अपनी हथेलियों में पाकर स्वयं को धन्य महसूस करता है, उसी लड्डू में बीफ की चर्बी से बने घी का इस्तेमाल किए जाने का खुलासे ने करोड़ों श्रृद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचाई है। मंदिर की जिस रसोई में इन लड्डुओं को बनाया जाता है उस रसोई को ’पोटू’ के नाम से जाना जाता है। इन लड्डुओं को जीआई टैग मिला है। मंदिर में प्रतिदिन भक्तों की मांग को पूरा करने के लिए साढ़े तीन लाख से अधिक लड्डू 200 ब्राह्मणों द्वारा बनाए जाते हैं।
तिरुपति बालाजी में लड्डू को प्रसाद के तौर पर लेने के लिए भी श्रद्धालुओं को एक सुरक्षा चक्र से होकर गुजरना होता है। इसमें सिक्योरिटी कोड और बॉयोमीट्रिक वगैहरा की जरूरत पड़ती है। इसमें चेहरे को पहचानने यानी फेस रिकग्निशन का भी इस्तेमाल होता है। इस लड्डू को जीआई टैग भी हासिल है. ऐसे में इस लड्डू को बनाने का पेटेंट सिर्फ मंदिर ट्रस्ट, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के ही पास है। बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, तिरुपति मंदिर का लड्डू बनाने में मछली का तेल, बीफ और चर्बी का इस्तेमाल किया गया। प्रसाद के तौर इन लड्डुओं का वितरण न केवल श्रद्धालुओं के बीच किया जाता है, बल्कि भगवान को भी प्रसाद के तौर पर यही लड्डू चढ़ाया जाता है। इस खुलासे के बाद से ही न सिर्फ आंध्र प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है, बल्कि दुनिया भर में करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था को भी ठेस पहुंची है।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)
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