बीआरओ के चीफ इंजीनियर एएस राठौड़ ने बताया कि हमने 200 फीट लंबे बैली ब्रिज को यातायात के लिए खोल दिया है। इस पुल को 8 दिन के अंदर तैयार किया गया है। चमोली में आई विनाशकारी आपदा में जोशीमठ-मलारी रोड पर रैणी गांव के पास बैली ब्रिज के बह जाने से संपर्क कट गया था।
उत्तराखंड में सीमांत इलाकों में सामरिक रूप से अहम सड़कों की जिम्मेदारी बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन के पास है। चमोली में फरवरी माह में आई विनाशकारी आपदा के बाद ऋषिगंगा नदी पर रैणी गांव के पास पुल के बह जाने से कई गांवों का सड़क संपर्क कट गया था, ऐसे में बीआरओ ने एक बार फिर रिकॉर्ड समय में बैली ब्रिज तैयार कर सड़क संपर्क से कट गए कई गांवों को फिर से जोड़ दिया है। खास बात यह है कि बीआरओ के पास इस पुल को तैयार करने के लिए 20 मार्च तक का समय था, लेकिन उसने अपने तमाम संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए इसे 5 मार्च को ही पूरा कर दिया।
बीआरओ ने अपनी निर्धारित समयसीमा के तहत पांच मार्च को रैणी गांव के समीप बहे पुल की जगह नया बैली ब्रिज तैयार कर दिया। इस पर आवाजाही शुरू हो गई है। बीआरओ के चीफ इंजीनियर एएस राठौड़ ने बताया कि हमने 200 फीट लंबे बैली ब्रिज को यातायात के लिए खोल दिया है। इस पुल को 8 दिन के अंदर तैयार किया गया है। यह बीआरओ की पूरी टीम की मेहनत से संभव हो सका है।
चमोली में आई विनाशकारी आपदा में जोशीमठ-मलारी रोड पर रैणी गांव के पास बैली ब्रिज के बह जाने से संपर्क कट गया था। नीति घाटी में रैणी गांव के निकट ऋषिगंगा नदी पर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चीन सीमा को जोड़ने वाला बैली ब्रिज अब नई जगह पर बनाया गया है। आपदा से पहले जिस स्थान पर यह ब्रिज बना था, वहां काफी हिस्सा उफान में बह जाने से नदी की चौड़ाई अधिक हो जाने के कारण ऐसा करना पड़ा। ब्रिज टूटने से सीमावर्ती दर्जनभर गांवों संपर्क कटा रहा।
रैणी गांव के पास ऋषिगंगा पर 90 मीटर लंबा बैली ब्रिज था, जो ऋषिगंगा में आई आपदा में ध्वस्त हो गया। उफान में पुल के साथ ही दोनों तरफ एबडमेंट और आसपास की जमीन भी बह गई। इससे वहां पर नदी की चौड़ाई काफी ज्यादा हो गई थी। ऐसे में वहां बैली ब्रिज बनाना संभव नहीं था। तमाम विकल्पों पर विचार करने के बाद नई जगह पर बैली ब्रिज बनाने पर सहमति बनी।
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