कांडा ताल से जलस्त्रोत हुए पुनर्जीवित, गांव के कुंए व धारे के पानी में हुई वृद्धि

कांडा ताल से जलस्त्रोत हुए पुनर्जीवित, गांव के कुंए व धारे के पानी में हुई वृद्धि

जल सभी जीव-जन्तुओं की जीवन रेखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल अधिकांशतः इधर-उधर बह जाता है। अगर उन जगहों पर तालाब बनाकर वर्षाजल को एकत्र किया जाए तो ऐसे में इकट्ठा हुआ जल फिल्टर होकर भूगर्भ पर जाएगा और इससे जो हमारे जलस्रोत सूख गये हैं उन जलस्रोत में पानी की कमी दूर हो सकती है।

जल संरक्षण एवं जल संवर्धन के तहत विकास खंड जखोली के कांडा के ग्रामीणों द्वारा तैयार कांडा ताल के निर्माण से जहां एक ओर गांव में पानी की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सका है, वहीं दूसरी ओर कांडा पंदेरा तोक सहित इसके निचले गांवों रतनपुर के कुंए तथा पिनगडी गांव के धारे में स्थित मुख्य स्रोतों में जल स्तर बढ़ा है।

 

रूद्रप्रयाग के जिला विकास अधिकारी मनविंदर कौर ने बताया कि मनरेगा योजना के अंतर्गत करीब पांच लाख रुपए की लागत से निर्मित ग्राम पंचायत कांडा भरदार में कांडा ताल के निर्माण से इस क्षेत्र सहित अन्य गांव को भी लाभ मिला है। उन्होंने बताया कि जल संवर्द्धन के तहत स्थानीय ग्रामीणों द्वारा तैयार 50×30 मीटर के विशाल कुंड निर्माण से न केवल ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध हुआ, बल्कि कांडा गांव सहित उसके निचले हिस्से में स्थित गांव के जल स्रोतों में वृद्धि हुई है। कौर ने बताया कि इस ताल में बरसाती सीजन में करीब पंद्रह लाख लीटर पानी संचय हुआ।

इस योजना की जरुरत को लेकर उन्होंने बताया कि जल संरक्षण एवं जल संचय के तहत प्रत्येक वर्ष की तरह वित्तीय वर्ष 2020-21 में कांडा ताल का निर्माण इस क्षेत्र के सूखाग्रस्त होने के चलते किया गया। साथ ही इस योजना के निर्माण हेतु ऐसे क्षेत्र का चयन किया गया जहां पहाड़ी चोटी पर सभी जगह से पानी का ठहराव होता है। इसके निर्माण से कांडा गांव सहित निचले क्षेत्र में स्थित गांवों के पेयजल स्रोतों में भी पर्याप्तता सुनिश्चित की जा रही है।

ग्राम पंचायत कांडा में निर्मित ताल में वर्तमान 15 लाख लीटर पानी का संचय वर्षा के समय हुआ है जो कि समय के साथ प्रत्येक वर्ष भरता है। साथ ही ग्राम पंचायत कांडा में पन्देरा तोक रतनपुर के परम्परागत कुंए का पानी एवं पिंगठी के धारे का पानी बढ़ा है।

इसलिए भविष्य के लिए जल संरक्षण एवं संवर्धन का सबसे सशक्त माध्यम परम्परागत जल स्त्रोंत एवं पौधे हैं, इन्हें बचाए रखना तथा प्रकृति को हरा-भरा बनाए रखना होगा ताकि भविष्य में जल संकट का सामना न करना पड़े।

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