अक्षरधाम का अर्थ है ईश्वर का दिव्य निवास। इसे भक्ति, पवित्रता और शांति का शाश्वत स्थान माना जाता है। बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्था द्वारा परम पूज्य योगी जी महाराज (1892-1971ई.) की स्मृति में दिल्ली के यमुना तट पर 6 नवम्बर 2005 को उद्घाटित किया गया अक्षरधाम मंदिर अपनी वास्तुकला की खूबसूरती और अध्यात्मिक महत्व के लिए मशहूर है।
सी एम पपनैं
दुनिया के सबसे विशाल हिंदू मंदिर व गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज दिल्ली के अक्षर धाम मंदिर में 23 अगस्त की सायं महंत स्वामी नारायण द्वारा उत्तराखंड के करीब तीन सौ प्रवासी हरि भक्तों को दाए हाथ में जल व मन में संकल्प मंत्र के साथ आश्रय भिक्षा के तहत कंठी धारण करवाई गई। आयोजन के इस अवसर पर उत्तराखंड के दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत प्रबुद्ध प्रवासियों सहित हरियाणा राज्य व जम्मू से सैंकड़ों की तादात में उपस्थित हरि भक्तों द्वारा भी पूज्य संतो के कर कमलों आश्रय भिक्षा के तहत आश्रय स्वरुप कंठी माला धारण की गई। अक्षरधाम आयोजको द्वारा अवगत कराया गया, विगत दिनों में विभिन्न प्रदेशों के सैंकड़ों हरि भक्तों द्वारा भी आश्रय स्वरुप कंठी माला धारण की गई है।
अक्षरधाम मंदिर के भक्तिमय वातावरण में गेट नंबर चार पर निर्मित सभागार में हरि भक्तों द्वारा कर्ण प्रिय संगीत की धुन में गाए जा रहे सु-मधुर भजनों-
1- सभी प्रेम से बोलो स्वामी नारायण भगवान….।
2- मैं शरण तेरी प्रभु भयो तुम्हारो दास…। तेरी शरण में आइके आश किसकी कीजिए…।
3- ओ रसिया मैं तो शरण तिहारी…।
इत्यादि इत्यादि सु-मधुर गाए जा रहे भजनों तथा अक्षरधाम मंदिर के पूज्य संतो में प्रमुख ईश्वर चरण स्वामी इत्यादि इत्यादि द्वारा दिए गए प्रवचनों में कहा गया, सर्वोत्तम भगवान स्वामी नारायण हैं, उनका आश्रय सबसे बड़ा है। उनका आश्रय ग्रहण करने के बाद भक्त निर्भय हो जाते हैं। कहा गया, शरणागति वह है जो भगवान नहीं चाहते हैं, उनका पालन करना। मंदिर स्वामी जी द्वारा आश्रय भिक्षा मंत्र पाठ कर उसके महत्व के बावत अवगत कराया गया।
मंत्रोचार के मध्य महंत स्वामी नारायण के आगमन तथा मंच पर आसन ग्रहण करने के बाद, उपस्थित दर्जनों संतों व हरि भक्तों द्वारा उनकी आरती – …. जय स्वामी नारायण…। का वाचन किया गया। स्वामी नारायण की कृपा पर लुटेरे नाविकों और स्वामी नारायण भक्त साहूकार पर रचित एक अति प्रेरणादाई लघु नाटक का प्रभावशाली मंचन किया गया।
पूज्य स्वामी जी द्वारा आश्रय मंत्र वाचन किया गया। सभागार में उपस्थित सैंकड़ों हरि भक्तों द्वारा उक्त मंत्र पाठ का स्मरण कर वाचन किया गया। सभागार में उपस्थित अनेकों पूज्य संतो द्वारा महंत स्वामी नारायण जी से मनुष्य के जीवन की आपा-धापी व लोक-परलोक से जुडे़ अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गए। मंहत स्वामी नारायण जी द्वारा शांत भाव और दिव्य रूप में सभी पूछे गए प्रश्नों के ज्ञानवर्धक व प्रेरणादाई उत्तर दिए गए। पूज्य संतो द्वारा आश्रय से जुडे़ प्रश्न पर स्वामी जी द्वारा कहा गया, आश्रय को दृढ़ बना कर रखना है, स्वामी नारायण सबकी रक्षा करेंगे। पूज्य संतो के प्रश्नों की समाप्ति के उपरांत महंत स्वामी नारायण जी द्वारा कंठी धारण का श्रीगणेश करवाया गया। सभागार में उपस्थित सैंकड़ों हरि भक्तों का प्रणाम स्वीकार कर विश्राम हेतु विदा ली गई। पूज्य संतों द्वारा हरि भक्तों को आश्रय स्वरुप कंठी धारण करवाई गई। प्रसाद वितरण किया गया।
अक्षरधाम का अर्थ है ईश्वर का दिव्य निवास। इसे भक्ति, पवित्रता और शांति का शाश्वत स्थान माना जाता है। बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्था द्वारा परम पूज्य योगी जी महाराज (1892-1971ई.) की स्मृति में दिल्ली के यमुना तट पर 6 नवम्बर 2005 को उद्घाटित किया गया अक्षरधाम मंदिर अपनी वास्तुकला की खूबसूरती और अध्यात्मिक महत्व के लिए मशहूर है। निर्मित मंदिर का हर तत्व आध्यात्मिकता से भरपूर है। जिसके दस द्वार हैं जो वैदिक साहित्य के अनुसार दस दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सौ एकड़ में निर्मित अक्षर धाम मंदिर जिसका प्रोजेक्ट डिजाइन महेश भाई देसाई और बी बी चौधरी द्वारा बहुत शोध कार्य करने के उपरान्त तैयार किया गया, अन्य मंदिरों की तरह कोई साधारण मंदिर नहीं है। धार्मिक पर्यटन के लिहाज से यह मंदिर वास्तु कला के साथ-साथ शिल्प कला का जीता जागता उदाहरण तो है ही पारंपरिक शिल्प में नई तकनीकों के ताने बाने के जरिए देश के गौरवशाली अतीत में झांकने की यह कोशिश खुद में अनूठी है। अपने नाम के अनुकूल ही इस मंदिर के चप्पे-चप्पे पर भारतीय संस्कृति, ज्ञान और कला की जैसे एक पूरी दुनिया बसी है। साथ ही यह अति आकर्षक मंदिर जिसमें स्टील, लोहे तथा कंक्रीट का कहीं कोई उपयोग नहीं किया गया है, सैंकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रहने वाली विरासत है। निर्मित अक्षरधाम मंदिर में 108 छोटे तीर्थ निर्मित हैं। नारायण सरोवर नाम की झील में देश के अनेकों प्रमुख सरोवरों, गंगा, यमुना सहित 151 नदियों और झीलों का पवित्र जल है। 108 गौ मुखो का एक समूह है जो 108 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा यज्ञ कुंड जिसका नाम यज्ञ पुरुष कुंड है, अक्षर धाम मंदिर दिल्ली में निर्मित है। उक्त कुंड तक जाने के लिए 2870 सीढ़ियां हैं।
बीस हजार मूर्तियों से सजाए गए तथा पूर्ण रूप से गुलाबी पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित दुनिया के सबसे विशाल परिसर वाले अक्षर धाम मंदिर में वस्त्र संस्कार और संस्कृति के परिचायक माने जाते हैं। प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचने वाले दर्शनार्थियों के कपड़ों के पहनावे का विशेष ध्यान मुख्य प्रवेश द्वार पर रखा जाता है। दर्शनार्थी के कपड़े कंधे और घुटनों तक ढके होने जरूरी होते हैं। ऐसा न होने पर मंदिर परिसर से सौ रुपयों के शुल्क पर कपड़े लेकर व पहन कर मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाती है। मंदिर जन सुविधाओं व खानपान की उत्तम व्यवस्था से सुसज्जित है। मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी रहती है।
स्वामी नारायण सम्प्रदाय हिन्दू धर्म के वैष्णव मार्ग के अंतर्गत एक संप्रदाय है, जिसके संस्थापक स्वामी नारायण भगवान थे। यह संप्रदाय हिंदू संस्कृति, परंपरा, साहित्य, दर्शन और वास्तु कला में अपना महत्व व विशेष पहचान रखता है। इस सम्प्रदाय के अनुयाई भगवान स्वामी नारायण को पर ब्रह्म के रूप में पूजते हैं और मानते हैं कि वह हमेशा ब्रह्म स्वरूप गुरु के रूप में प्रकट रहते हैं।
इस सम्प्रदाय के गुरुओं में अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी, भगत जी महाराज, शास्त्री जी महाराज, योगी जी महाराज, प्रमुख स्वामी महाराज तथा गुरु महंत स्वामी महाराज जी मुख्य रहे हैं। विश्व के कई देशों में स्वामी नारायण के मंदिर निर्मित हैं। उत्तराखंड के प्रवासी हरि भक्तों में प्रमुख शिक्षाविद मनवर सिंह रावत, समाज सेवी महावीर राणा, पार्षद गीता रावत, मंगल सिंह नेगी, अनिल पंत, डी पी भट्ट, चन्द्र मोहन पपनैं, रघुवीर सिंह, राजेंद्र सिंह रावत, हरेंद्र पुरी, सुरेंद्र शर्मा, बी एस वासुदेव इत्यादि इत्यादि के सानिध्य में करीब तीन सौ प्रवासी प्रबुद्ध जनों द्वारा आश्रय भिक्षा के तहत आश्रय स्वरुप कंठी धारण की गई।
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