12 से 14 साल के बच्चों का रचना संसार गढ़वाली भाषा प्रेमियों को हैरान कर रहा है। यहां के बच्चे न केवल राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, बल्कि उनकी लोक भाषा और लोक संस्कृति पर पकड़ का चर्चा बहुत दूर तक हो चला है।
अक्सर उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों के बीच यह चर्चा आम होती है कि पहाड़ की नई पीढ़ी अपनी संस्कृति, बोली भाषा में रूचि नहीं ले रही। उस पर पाश्चात्य संस्कृति से कदमताल मिलाने का चलन हावी हो रहा है। कुछ हद तक यह चिंता वाजिब सी लगती है, लेकिन रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लॉक के दूरस्थ इलाके पालाकुराली में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के छठी से लेकर दसवीं कक्षा के बच्चों से मिलने के बाद ऐसा नहीं लगता।
भगवान नरसिंह देवता की थाति पालाकुराली के इस विद्यालय ने पिछले चार साल में गढ़भाषा की यात्रा में एक अलग मुकाम हासिल किया है। यहां के 22 बच्चे गढ़वाली भाषा में कविताओं का सृजन कर रहे हैं। इनका रचना संसार गढ़वाली भाषा प्रेमियों को हैरान कर रहा है। यहां के बच्चे न केवल राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, बल्कि उनकी लोक भाषा और लोक संस्कृति पर पकड़ का चर्चा बहुत दूर तक हो चला है।
उत्तराखंड की कई प्रख्यात पत्रिकाओं में निरंतर इनकी रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं। मतदान, वोट, विज्ञान जैसे गंभीर विषयों पर 12-14 साल के बच्चों का कविता लेखन सोचने पर मजबूर कर देता है। यहां के छात्र-छात्राओं की 60 स्वरचित गढ़वाली कविताओं का संग्रह बुरांशकांठा भी प्रकाशित किया गया है। इस समय विद्यालय के 15 छात्र-छात्राएं लोक बोली, भाषा में लेखन कर रहे हैं।
ये बदलाव ऐसे ही नहीं आया है, स्कूल के विज्ञान के शिक्षक अश्विनी गौड़ को इसका श्रेय जाता है। बसुकेदार तहसील के किमाणा दानकोट निवासी अश्विनी गौड़ वर्ष 2016 में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पालाकुराली में तैनाती के बाद से शिक्षा और संस्कृति को संवारने में जुटे हैं। लोक भाषा और लोक साहित्य को लेकर बेहद जागरूक अश्विनी छात्र-छात्राओं को लोकबोली, भाषा में लेखन और कविता पाठ के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लिए उन्होंने विद्यालय में गढ़वाली मोबाइल लाइब्रेरी की स्थापना की है। लाइब्रेरी में लगभग 100 गढ़वाली भाषा साहित्य की किताबें उपलब्ध हैं। इस मोबाइल लाइब्रेरी के तहत गढ़वाली भाषा साहित्य पर कार्यशाला भी आयोजित की जाती है।
‘पढ़ाई के साथ ही छात्र-छात्राओं को अपनी लोक संस्कृति से जोड़ना भी जरूरी है। गढ़वाली मोबाइल लाइब्रेरी से उम्मीद से बेहतर नतीजे हासिल हुए हैं। यही नहीं छात्र-छात्राएं खुद विद्यालय को नई पहचान दे रहे हैं।’
– अश्विनी गौड़, शिक्षक, राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पाला कुराली
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