लॉकडाउन के दौरान हिल-मेल की विशेष पहल ई-रैबार को लोगों का जबर्दस्त रिस्पांस मिल रहा है। 28 अप्रैल को उत्तराखंड में कृषि और पशुपालन से संबंधित संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर हुई लाइव चर्चा में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI), करनाल के निदेशक शामिल हुए। उन्होंने पहाड़ के लोगों को पशुपालन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI), करनाल के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने ई-रैबार में उत्तराखंड में पशुपालन को लेकर आंकड़े सामने रखकर समझाया कि लॉकडाउन के दौरान किसान और पशुपालक किस तरह से अपनी आय को बरकरार रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए किए गए लॉकडाउन में उत्तराखंड सरकार ने पहाड़ के लोगों को नीचे और निचले इलाकों के लोगों को ऊपर जाने से रोका है। ऐसे में लोगों की आमदनी प्रभावित हुई है। हालांकि ऐसा करना जरूरी था।
लॉकडाउन में दूध का क्या करें?
उन्होंने एक उपाय बताया जिससे लोग लॉकडाउन में भी अपनी आमदनी बरकरार रख सकते हैं। डॉ. चौहान ने कहा कि पशुपालन क्षेत्र में देखें तो दूध का बाजार में आना बंद हो गया है और ऐसे में पशुपालकों की आमदनी रुक गई है। दूध तो पैदा हो रहा है तो उससे हम घी बना सकते हैं। इसके अलावा पनीर बनाकर रख सकते हैं। जैसे ही लॉकडाउन खुले या आपको जाने की छूट मिले तो उसे बाजार में बेच सकते हैं।
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उत्तराखंड में रोज होता है 18 लाख टन दूध
NDRI के निदेशक ने बताया कि उत्तराखंड में आज के समय में 18 लाख टन दूध होता है। इसमें मुख्यत: गाय और भैंस का दूध होता है। प्रदेश में इस समय 21 लाख गायें, करीब 10 लाख भैंसें, 3.7 लाख भेड़ें, 14 लाख बकरियां हैं। उन्होंने कहा, हमारे यहां की 69 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और वे कृषि और पशुपालन पर निर्भर होते हैं। आमदनी का मुख्य स्रोत भी यही होता है। गांव में लगभग हर व्यक्ति के पास गाय, भैंस या बकरियां होती हैं। ऐसा देखा गया है कि उत्तराखंड के हरिद्वार, हल्द्वानी, रुद्रपुर, कोटद्वार जैसे इलाकों में कई डेयरी हैं, जहां किसान भाइयों के पास 300-500 गायें और भैंसें हैं, जो दूध का उत्पादन करते हैं। ऐसे में अगर उत्तराखंड की आमदनी को देखें तो गांवों में लगभग 40 फीसदी आमदनी कृषि और पशुपालन पर निर्भर है।
कौन सी गाय पहाड़ों के लिए अच्छी?
उन्होंने आगे बताया कि गिर, साहीवाल गायों को पहाड़ों पर पालना संभव नहीं है। रुद्रपुर, कोटद्वार जैसे तराई इलाकों में इसे पाला जा सकता है। इसकी जगह रेड सिंधी गाय को उत्तराखंड के लिए फिट माना गया है। इसका दूध 6 से 8 किलो होता है। अगर हम 15-20 गायें पालें और ए2 दूध मिले तो अपने स्थानीय गायों से ही अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसका रेट भी अच्छा मिलता है। ए2 दूध की बाजार में मांग ज्यादा है क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए हितकारी है।
गर्भाधान में देरी से पशुपालकों को नुकसान!
डॉ. चौहान ने कहा कि उत्तराखंड में लॉकडाउन के चलते अच्छे नस्ल के सांड से सीमन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इनमें से 70 प्रतिशत सीमन का इस्तेमाल जानवरों को गाभिन करने में इस्तेमाल होता है। पिछले 30-35 दिनों में समय से गर्भाधान नहीं हो पा रहा है। इससे किसानों और पशुपालकों को नुकसान हो रहा है। हमने देखा है कि जानवर अगर एक महीने गाभिन देर से होते हैं तो किसान को 6 से 7 हजार रुपये तक का नुकसान हो सकता है।
एक सवाल के जवाब में डॉ. चौहान ने बताया कि अगर पशु ज्यादा हैं तो भी घबराने की जरूरत नहीं है, घी बनाकर रख लें वह लंबे समय तक खराब नहीं होगा। लॉकडाउन खुलने पर उसे बेचा जा सकता है।