ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से गैरसैंण में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के काम में तेजी आएगी। कनेक्टीविटी के लिए तेजी से काम होगा। एक बार वहां से ग्रीष्मकालीन राजधानी का काम शुरू होने के बाद भविष्य में स्थायी राजधानी की दिशा में बढ़ने में भी मदद मिलेगी। …वरिष्ठ पत्रकार डी. एस. कुंवर का विश्लेषण।
…भावनाएं क्या होती हैं, ये पृथक उत्तराखंड के लिए एक लंबा संघर्ष करने वालों से बेहतर कोई नहीं जान सकता। उत्तराखंड तो मिला पर एक पहाड़ी राज्य के लिए पहाड़ पर राजधानी का सपना 19 साल से भी लंबा खिंच गया। इस कालखंड में एक पीढ़ी बालिग हो गई। उसने वह संघर्ष नहीं देखा, जिसे कई कुर्बानियों से सींचा गया। लेकिन 19 साल कुछ महीनों बाद उन उत्तराखंडियों के लिए एक ऐसा लम्हा आया, जिसने उन्हें राहत भी दी और खुशी भी। जहां एक तरफ कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के कारण नकारात्मकता फैली हुई है, वहीं चमोली जिले के गैरसैंण के भराड़ीसैंण को उतराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी का संवैधानिक दर्जा मिलना एक नई सुबह सरीका है। यह विकास को पहाड़ों तक पहुंचाने के आंदोलनकारियों के सपने को हकीकत में बदलने वाला अहम पड़ाव साबित हो सकता है।
यह मंजूरी भारत के सबसे ऊंचे विधानसभा भवन भराड़ीसैंण में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के उस ऐलान के तीन महीने और चार दिन के बाद मिली है, जिसमें उन्होंने कुछ ही महीनों में 20 साल पूरे करने जा रहे हिमालयी सूबे उत्तराखंड के लिए भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के इस फैसले को मंजूरी देने के बाद एक करोड़ से ज्यादा उत्तराखंड वासियों का लंबे समय से चला आ रहा सपना साकार हो गया। ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से गैरसैंण में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के काम में तेजी आएगी। कनेक्टीविटी के लिए तेजी से काम होगा। एक बार वहां से ग्रीष्मकालीन राजधानी का काम शुरू होने के बाद भविष्य में स्थायी राजधानी की दिशा में बढ़ने में भी मदद मिलेगी।
उत्तराखंड के लिए चार मार्च, 2020 का दिन बड़ा अहम था। तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 70 सीटों वाली उत्तराखंड की विधानसभा की भराड़ीसैंड स्थित इमारत में आयोजित बजट सत्र के दौरान 56 विधायकों की ओर से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान किया। यह संभवतः उनके तीन साल के कार्यकाल का सबसे बड़ा फैसला है।
बहरहाल, उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के गैरसैंण के भराड़ीसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के फैसले को स्वीकृति देने के मिनटों बाद ही मुख्य सचिव उत्पल कुमार ने इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिया। इसके साथ ही 8 जून, 2020 को भराड़ीसैंण (गैरसैंण) उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई।
उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां पहाड़ी जिलों की अधिकता है। यहां के 13 जिलों (सात गढ़वाल और छह कुमाऊं) में से 9 जिले पहाड़ी हैं। 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद एक पहाड़ी राज्य के तौर पर अस्तित्व में आने के बाद से यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने के मांग करती रही है। पहाड़ के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करने के लिए उत्तराखंड एक राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था।
तब से लेकर अब तक सरकार किसी की रही हो, यानी भाजपा या कांग्रेस की, किसी ने भी गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठाया। राज्य में पहली बार चुनकर आई एनडी तिवारी सरकार ने तो अपना पांच साल का कार्यकाल भी पूरा किया। इस क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकते थे, चाहे वह राज्य की राजधानी के लिए जरूरी एयर कनेक्टीविटी हो या दूसरे जरूरी विकास के काम, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन विशेषज्ञों को गैरसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी के रूप में परिवर्तित करने की संभावना का पता लगाने का जिम्मा सौंपा गया था, उनका तर्क था कि यह क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील है और यहां पीने के पानी की समस्या का भी सामना करना पड़ता है।
साल दर साल बीते, लेकिन गैरसैंण उत्तराखंड की सियासत में एक बड़ा मुद्दा हमेशा बना रहा। पूर्व सीएम हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे आगामी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के लिए राज्य विधानसभा और अन्य संबंधित कार्यालयों के निर्माण की प्रक्रिया जरूर शुरू की लेकिन वे भी इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने में विफल रहे। मार्च 2017 में भाजपा ने 56 विधानसभा सीटों के प्रचंड जनादेश के साथ सूबे की सत्ता में वापसी की। सत्ता चलाने की जिम्मेदारी त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई। इसके बाद से ही उन्होंने गैरसैंण पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।
आर्थिक तौर पर पिछड़े गैरसैंण की ओर लोगों का ध्यान एकत्रित करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने वहां विधानसभा में कैबिनेट की बैठक और बजट सत्र का आयोजन किया। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने आखिरकार गैरसैंण के भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी में बदलने का अप्रत्याशित फैसला कर अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी-कांग्रेस पर एक बड़ी बढ़त बना ली है।
एक स्थानीय नेता और कांग्रेस के नेता कुलदीप बिष्ट भी कहते हैं, ‘यह हम सभी के लिए अच्छी खबर है, गैरसैंण को आधिकारिक और संवैधानिक दर्जा मिलने से इस क्षेत्र में समग्र विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।’ आदिबदरी मंदिर क्षेत्र में जुलगढ़ गांव के प्रधान जसवंत भंडारी कहते हैं, ‘इस कदम से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए रास्ते खुलने के अलावा, उन सभी स्कूल और अस्पताल की इमारतों को फिर से विकसित करने में मदद मिलेगी, जो पूरे ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र गैरसैंण में ढहने के कगार पर हैं।’
ये बात तो विशेषज्ञ भी मानते हैं कि गैरसैंण के भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा मिलने से बागवानी, कृषि के क्षेत्रों और चमोली जिलों के विभिन्न हिस्सों में सूक्ष्म लघु एंव मध्यम उद्यमों (MSME) के तहत कृषि आधारित इकाइयों की स्थापना के जरिये अर्थव्यवस्था के कई व्यवहार्य स्रोतों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। उत्तराखंड के सभी पहाड़ी जिलों में इन पर काफी काम हो सकता है। यही नहीं केंद की आत्मनिर्भर भारत योजना और स्वरोजगार योजना इसमें बड़ी भूमिका निभा सकती है।
लघु उद्योगों एवं स्टार्टअप की जबरदस्त क्षमता के साथ-साथ गांवों में मधुमक्खी पालन और पशुपालन से संबंधित अन्य इकाइयों की स्थापना से स्थानीय लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उत्तराखंड में मत्स्यपालन, हॉर्टीकल्चर के क्षेत्र में कई योजनाएं हैं, लोगों के लिए सब्सिडी पर कर्ज की व्यवस्था है, जिनके बारे में लोगों को जानकारी कम है। अपने काम-धंधे शुरू करने के लिए भी स्वरोजगार योजना लाई गई है। अब सरकार को इन योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने की दिशा में काम करना चाहिए।
राज्य औद्योगिक विभाग के अधिकारी बताते हैं कि बागवानी अभी स्वरोजगार के नए रास्ते बनाने का एक और क्षेत्र है। अगर स्थानीय लोगों को एमएसएमई के तहत स्वरोजगार इकाइयों की एक सीरीज स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो यह रिवर्स पलायन को हमेशा बढ़ावा देने में मदद करेगा। पहाड़ों पर हर्बल आधारित दवाओं के निर्माण के लिए हर्बल औषधीय पौधे लगाना भी एक और बड़ा क्षेत्र है। आने वाले दिनों में उत्तराखंड का एमएसएमई सेक्टर और स्वरोजगार की योजनाएं पहाड़ की आर्थिकी का स्पीडगियर बन सकती हैं। हालांकि इसके लिए कनेक्टीविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी काम तेज गति से करना होगा।
(लेखक उत्तराखंड में अंग्रेजी के अग्रणी स्तंभकारों में शामिल हैं। चार दशक का लंबा पत्रकारिता का अनुभव। टाइम्स ऑफ इंडिया, बीबीसी के लिए काफी समय तक सेवाएं दी हैं।)
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