मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में फॉरेस्ट फायर और लैंड स्लाइड जैसी प्राकृतिक आपदाओं से अधिक नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के तहत बनाई जाने वाली योजनाओं में जंगल में लगने वाली आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024 तक देश को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में नंबर वन बनाने का लक्ष्य दिया है। इसके लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए तेज गति से काम कर रहा है। प्राकृतिक आपदा के समय राहत एवं बचाव कार्य तुरंत शुरू करने के लिए देश भर में ‘आपदा मित्र’ तैयार करने की योजना शुरू की गई है। उत्तराखंड में भी लगातार आपदाओं को जोखिम बना रहता है, ऐसे में एनडीएमए ने राज्य सरकार के समक्ष आपदा प्रभावितों के लिए 3000 से 5000 की क्षमता वाले शेल्टर बनाने का प्रस्ताव भी रखा है। यह बातें एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से हुई मुलाकात के बाद कहीं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह से मंगलवार को अपने आवास स्थित कार्यालय में एनडीएमए के एक डेलीगेशन से मुलाकात की। इसमें एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह, एनडीएमए के संयुक्त सचिव रमेश कुमार एवं संयुक्त सलाहकार नवल प्रकाश शामिल थे। इस अवसर पर उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा एवं राहत और बचाव कार्य जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में फॉरेस्ट फायर और लैंड स्लाइड जैसी प्राकृतिक आपदाओं से अधिक नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के तहत बनाई जाने वाली योजनाओं में जंगल में लगने वाली आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूरस्थ क्षेत्रों में राहत कार्य पहुंचाना भी एक चुनौती है। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से युवा मंगल दलों एवं महिला मंगल दलों को आपदा की परिस्थिति में राहत एवं बचाव कार्य के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिसमें घायलों को फर्स्ट एड देने जैसे प्रशिक्षण भी शामिल हैं। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल से एनडीएमए द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम ‘आपदा मित्र’ के प्रशिक्षण में ट्रॉमा ट्रेनिंग (फर्स्ट एड) जैसे प्रशिक्षणों को शामिल करने की बात कही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आपदा प्रबंधन के लिए बनाई गई योजनाओं एवं दिशानिर्देशों में मैदानी क्षेत्रों के अनुसार योजनाएं रहती हैं। परंतु पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का स्वरूप एवं प्रभाव मैदानी क्षेत्रों से भिन्न है, इसलिए योजनाओं एवं दिशानिर्देशों को बनाते समय पर्वतीय क्षेत्रों के अनुरूप योजनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर मकान मिट्टी एवं छतें पठालों से बनाई जाती हैं। आपदा की गाइडलाइन के अनुसार, ऐसे मकानों को कच्चा मकान कहा जाता है, इससे आपदा प्रभावितों को काफी कम आर्थिक मदद प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के मकानों को पक्के मकानों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशानिर्देशों के अनुपालन में देशभर में ‘आपदा मित्र’ योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत आपदा मित्रों को 12 से 15 दिन का बचाव एवं राहत कार्य का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत देश के 720 जनपदों में से 350 जनपदों में लगभग एक लाख आपदा मित्र तैयार करने की योजना है, जिसमें उत्तराखंड के 02 जिले हरिद्वार एवं ऊधमसिंहनगर शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा विभिन्न राज्यों में शेल्टर बनाए जा रहे हैं। यदि राज्य सरकार जमीन उपलब्ध करा दे तो उत्तराखंड के प्रत्येक जिले में आपदा से प्रभावित 3000 से 5000 लोगों के ठहरने हेतु शेल्टर बनाए जा सकते हैं। इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इस प्रकार के शेल्टर आपदा प्रभावितों को राहत पहुंचाने में काफी मददगार साबित होंगे एवं इसके लिए राज्य सरकार की ओर से हर संभव सहायता की जाएगी।
इस अवसर पर सचिव एसए मुरूगेशन, मुख्य कार्यकारी अधिकारी उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण श्रीमती रिद्धिम अग्रवाल एवं अधिशासी निदेशक उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पीयूष रौतेला उपस्थित थे।
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