परिस्थितियां अलग-अलग… तुलना बेमानी, सुदूर क्षेत्रों में भी दिखेगी बदलाव की कहानी

परिस्थितियां अलग-अलग… तुलना बेमानी, सुदूर क्षेत्रों में भी दिखेगी बदलाव की कहानी

आशीष डंगवाल कहते हैं, सरकारी स्कूलों में बहुत जगह अच्छा काम हो रहा है। सुदूर क्षेत्रों में भी कई लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उन लोगों को भी सामने लाने की जरूरत है। लॉकडाउन के दौरान स्कूलों के आसपास रहने वाले शिक्षकों ने अपने स्कूलों में सौंदर्यीकरण का बहुत काम किया है।

शिक्षक भविष्य निर्माण करता है। यह बात जितनी सहज है, उतना ही मुश्किल है इसके लिए निरंतर काम करना। लेकिन कई युवा शिक्षक हैं, जो उत्तराखंड में तमाम भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद इस धारा को नई रफ्तार दे रहे हैं। हालांकि उनके इस प्रयास को जब सियासी बढ़त लेने के लिए किसी ‘दूसरे के मॉडल’ की नकल बता दिया जाता है, तो यह ईमानदार कोशिशों को हतोत्साहित करने जैसा है। कुछ लोगों को लगता है दीवारों पर पेंटिंग करा दी कौन सी बड़ी बात है, लेकिन ये सपने बुनने के लिए प्रेरित करने का पहला कदम है। एक शिक्षक क्या कर सकता है, उसकी बानगी भर है।

कुछ दिन से उत्तराखंड में शिक्षा के मॉडल को लेकर बहस गर्म है। दिल्ली से बाहर सियासी जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी उत्तराखंड सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश में जुटी है। यहां तक कि बहस की चुनौती, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग जैसे तमाम सियासी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। हालांकि हद तो तब हो गई जब इसमें कुछ शिक्षकों के ईमानदार प्रयासों का श्रेय अपनी तरफ खींचने के लिए उसे अपने मॉडल की ‘नकल’ बताने की कोशिश की जाने लगी।

हिल-मेल से क्या बोले आशीष डंगवाल…

 

दरअसल, कुछ दिन से टिहरी गढ़वाल के गरखेत के राजकीय इंटर कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के लेक्चरर के पद पर तैनात आशीष डंगवाल के प्रोजेक्ट स्माइलिंग स्कूल की बदौलत आए बदलाव की कहानी का हर तरफ जिक्र हो रहा है। हर तरफ उनके इस प्रयास को सराहा जा रहा है। लेकिन देवभूमि के चुनावी समर में उतरने का प्रयास कर रहे एक दल की ओर से यह दावा कर दिया गया कि यह दिल्ली सरकार के मॉडल की नकल है, लिहाजा हिल-मेल ने सीधे आशीष डंगवाल से ही संपर्क साधा और उनसे ही जाना कि आखिर कैसे हुई इस प्रोजेक्ट की शुरुआत।

आशीष ने बताया कि लॉकडाउन के बाद हमने स्कूल में अपने स्तर पर एक प्रोजेक्ट स्माइलिंग स्कूल शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट में हमारे 9वीं, 11वीं और कुछ बच्चे 7वीं, आठवीं के शामिल हुए। ये बच्चे बोर्ड के परीक्षार्थियों के घर चले जाने के बाद आते रहे और हमने थोड़ा-थोड़ा करके दो महीने में ये प्रोजेक्ट पूरा कर दिया। हमने अपने स्कूल की सभी दीवारों पर एजुकेशनल और मोटिवेशनल थ्रीडी पेंटिंग और कोट्स पेंट किए। बच्चों ने इसमें बहुत मेहनत की।

उन्होंने बताया, इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य यह था कि ऐसी चीजें दीवारों पर उकेरी जाएं, आगे जाकर बच्चे जिन क्षेत्रों में जाना चाहते हैं। यही वजह है कि हमने वहां नैनीताल हाईकोर्ट, आईएएस प्रशिक्षण संस्थान, मसूरी, आईएमए देहरादून और इंजीनियरिंग के नायाब नमूने डोबरा चांठी को उकेरा है। ये प्रयास उनके सपनों को उड़ान देने के लिए प्रेरित करने का है। कोविड के नियमों का पालन करना जरूरी था, इसलिए इसमें काफी समय लगा। अब हमारा स्कूल बहुत खूबसूरत लग रहा है।

उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों में बहुत जगह अच्छा काम हो रहा है। सुदूर क्षेत्रों में भी कई लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उन लोगों को भी सामने लाने की जरूरत है। लॉकडाउन के दौरान स्कूलों के आसपास रहने वाले शिक्षकों ने अपने स्कूलों में सौंदर्यीकरण का बहुत काम किया है। सरकार से मदद के सवाल पर आशीष ने कहा कि कुछ योजनाएं सरकार की तरफ से होती हैं, जिनका लाभ स्कूल स्टॉफ और प्रबंधन उठा पाते हैं और कई जगह शिक्षक भी अपनी तरफ से प्रयास करते हैं।

पहाड़ के स्कूलों के चर्चा में आने के सवाल पर आशीष डंगवाल ने कहा कि पहाड़ के स्कूल हमेशा ही चर्चाओं में रहे हैं। उन्हें थोड़ा स्पेस देने की जरूरत है। काम पहले भी हुए हैं, अब भी हो रहे हैं, हालांकि जब उनकी तुलना अलग परिस्थितियों से करने लग जाएं तो वहां थोड़ा गड़बड़ हो जाता है, हमारा अपना भौगोलिक परिवेश है और दूसरों का अपना। हमारे सरकारी शिक्षक अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन अच्छी चीजें थोड़ा देर में चर्चाओं में आती हैं।

उत्तरकाशी में काम के बाद सीएम त्रिवेंद्र सिंह से सराहना मिलने पर उन्होंने कहा कि यह एक अच्छा अनुभव था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि खुद सीएम मेरे काम को इस तरह सराहेंगे। आशीष डंगवाल संभवतः देश के पहले ऐसे शिक्षक हैं, जिनके फेसबुक पेज को सेलीब्रटी वेरीफाई किया गया है।

1 comment
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1 Comment

  • Pintu kumar yadav
    January 8, 2021, 6:01 pm

    Good

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