एक तरह से देखें तो जिस भी विभाग में राधिका झा को तैनाती मिली, वह मानकों पर खतरी उतरीं। उन्होंने अपने स्तर पर नूतन प्रयास किए और ऊर्जा संरक्षण के लिए काम किया। उन्हें प्रोग्रेसिव ब्यूरोक्रेट कहा जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ऐसी तेजतर्रार आईएएस उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
धर्म और अध्यात्म की नगरी प्रयागराज में जन्मीं 2002 बैच की आईएएस अधिकारी राधिका झा ने अपनी मेहनत और लगन से एक अलग पहचान बनाई है। उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद आईएएस की परीक्षा पास की। सिक्किम कैडर की अधिकारी बनीं और पर्वतीय राज्य में सात वर्षों तक काम किया। राधिका झा को साल 2009 में उत्तराखंड कैडर मिला और वह शिक्षा विभाग से जुड़ीं। साल 2010 में टिहरी जिले की जिलाधिकारी बनीं। साल 2011 में शहरी विकास विभाग से जुड़ीं जहां उन्होंने इधर-उधर कूड़ा फेंकने व थूकने के खिलाफ नियम बनाने का प्रस्ताव रखा था। उन्हें प्रोग्रेसिव ब्यूरोक्रेट कहा जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ऐसी तेजतर्रार आईएएस उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत हैं। हिल-मेल के साथ राधिका झा के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के अंश:
राधिका झा को साल 2013 में उत्तराखंड के सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, दोनों का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने ‘सपनों की उड़ान’ कार्यक्रम शुरू किया जिसकी आज भी चर्चा होती है। इसमें कॉर्पोरेट घरानों की मदद से गांवों और झुग्गी-बस्तियों के बच्चों को मोबाइल विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा की मुख्य-धारा से जोड़ा गया। साल 2014-15 में वह शहरी विकास और पर्यटन विभाग से जुड़ीं। साल 2015 में वह भारत सरकार के इंटीग्रेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम की डायरेक्टर बनीं। हालांकि 2017 में राधिका झा को उत्तराखंड वापस बुलाया गया और वह मुख्यमंत्री की सचिव बनीं।
प्रदेश सरकार के सभी कर्मियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिये उन्होंने ‘उत्कर्ष’ नामक मॉनीटरिंग डैशबोर्ड तैयार किया और बढ़िया कार्य करने वाले विभागों के लिए सीएम अवॉर्ड भी शुरू करवाया। उन्हें प्रदेश के ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी दी गई। सौभाग्य, उजाला मित्र, पिरुल पावर प्लांट जैसे कई उल्लेखनीय प्रयासों से उन्होंने प्रदेश में बिजली की स्थिति में काफी सुधारा है। बिजली चोरी रोकने के लिए ‘ऊर्जागिरी’ अभियान चलावाया। एक तरह से देखें तो जिस भी विभाग में उन्हें तैनाती मिली वह मानकों पर खतरी उतरीं। उन्होंने अपने स्तर पर नूतन प्रयास किए और ऊर्जा संरक्षण के लिए काम किया।
एक वरिष्ठ महिला अधिकारी के तौर पर अनुभव के बारे में पूछे जाने पर राधिका झा कहती हैं कि यह सही है कि उत्तराखंड की धुरी महिलाएं हैं। उत्तराखंड राज्य की स्थिति दूसरे राज्यों की तुलना में भिन्न होने के कारण यहां के ज्यादातर पुरुष रोजगार के लिए बाहर रहते हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड के गांवों में खेती-बाड़ी एवं दूसरे कृषि कार्यों में महिलाओं की भूमिका ज्यादा रहती है। सही मायनों में देखा जाए तो राज्य आंदोलन से लेकर पाहड़ों की आर्थिकी तक में यहां की महिलाओं का महत्वपूर्ण एवं अनुकरणीय योगदान रहा है। यदि कहा जाए कि उत्तराखंडी की जीडीपी का एक बहुत बड़ा भाग यहां की महिलाओं द्वारा निर्मित है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
राज्य में महिला सशक्तिकरण की खातिर लिए गए फैसलों पर वह कहती हैं कि पैतृक संपत्ति में महिलाओं को सहखातेदार बनाना, महिला समूहों को अपना काम शुरू करने केलिए ब्याज मुक्त कर्ज, ग्रोथ सेंटरों की स्थापना, एलईडी ग्राम लाइट योजना जैसे फैसले सराहनीय हैं। ‘घरैकि पहचान चेलिक नाम’ की मुहिम चलाकर राज्य में बेटियों को गौरवान्वित किया जा रहा है।
ऊर्जा महकमे का जिम्मा भी राधिका झा के पास है। वह कहती हैं कि उनका विभाग उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर गुणवत्तापूर्ण बिजली उपलब्ध कराने में अग्रणी है। उपभोक्ता सेवा देने के मामलों में देश के शीर्ष तीन राज्यों में आता है। यहां बिजली की चोरी भी दूसरे राज्यों के मुकाबले कम है। यही नहीं प्रोफेशनल एप्रोच के साथ-साथ सभी कर्मचारियों की एसीआर का मूल्यांकन पूर्व निर्धारित केपीआई के आधार पर किया जा रहा है। विभाग के आउटकम बेस्ट केपीआई निर्धारित किए गए हैं। वर्ष के दौरान बिजली का उत्पादन, मशीनों की उपलब्धता, ट्रांसमिशन सिस्टम उपलब्धता, ट्रांसमिशन हानियां, शहरों और गांवों में बिजली की औसत आपूर्ति इनमें प्रमुख हैं। ऐसा करके यूजेवीएनएल और पिटकुल के वार्षिक लाभ में बढ़ोतरी हुई है।
सौर स्वरोजगार जैसी बेहतरीन योजना की धीमी रफ्तार पर वह कहती हैं कि ऑनलाइन पोर्टल पर 729 आवेदन आए हैं, उनमें से 138 आवेदकों को परियोजना आवंटन पत्र दिए जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व में इस योजना के तहत 25 किलोवाट क्षमता के सोलर पावर प्लांट के लिए यूपीसीएल के 63 केवीए एवं उससे अधिक के ट्रांसफार्मर की अनिवार्यता थी, पहाड़ी क्षेत्रों में इन ट्रांसफार्मरों की उपलब्धता सीमित होने के कारण आवेदन पर्याप्त संख्या में नहीं हो पा रहे थे। अब 25 केवीए के ट्रांसफार्मर पर 20 किलोवाट क्षमता तक के सोलर पावर प्लांट भी अनुमन्य किए गए हैं। इससे योजना की पहुंच सुदूर गांवों तक हो पाएगी।
विस्तृत साक्षात्कार हिल-मेल के आगामी अंक में पढ़ें…।
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