कल्पना कीजिए, आप घर में सोए हों और आंख खुले तो चारों तरफ आग ही आग दिखाई दे। उत्तराखंड के जंगलों की आग अब रिहायशी इलाकों तक पहुंच गई है। कई खेत-खलिहान सुलग रहे हैं। कुछ लोगों ने जान बचाने के लिए घर छोड़ दिया है। कोरोना से लड़ रहे उत्तराखंड को एक और मोर्चे पर जंग छेड़नी पड़ी है।
कोरोना के कहर के बीच उत्तराखंड को एक और जंग लड़नी पड़ रही है। यह लड़ाई है दावानल से। जी हां, उत्तराखंड के कई इलाके इनदिनों धधक रहे हैं। जंगल, जानवर, मकान, दुकान ही नहीं जानमाल का भी नुकसान हुआ है। खेतों में खड़ी फसल भी आग की चपेट में आ रही है। गांव के लोग बाल्टी-बाल्टी पानी बुझाने की जद्दोजहद कर रहे पर इससे आग कहां बुझने वाली है।
ये तस्वीरें उधमसिंह नगर जिले के दिनेशपुर इलाके में गेहूं के खेत की हैं। आग लगते ही गांववाले दौड़ पड़े पर नुकसान को रोका नहीं जा सका।
गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में जंगलों की आग थाम नहीं रही। अल्मोड़ा के पांडेखोला के पास के जंगलों की आग लोगों के घरों तक आ गई। बागेश्वर में 200 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं। वनाग्नि से निपटने के लिए फायर सर्विस के जवान लगातार प्रयास कर रहे हैं पर कुंभ मेले में ड्यूटी के चलते कर्मचारियों की कमी भी हो रही है।
वायुसेना के हेलिकॉप्टर भी आग बुझाने के काम में लगे हैं। कर्मचारियों की छुट्टी रोक दी गई है। चीड़ के जंगल सूखे पिरूल के कारण सुलग रहे हैं। चंपावत और बागेश्वर जिले में वनाग्नि से काफी नुकसान हुआ है।
पूरे नुकसान की बात करें तो अब तक 2500 हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र आग की भेंट चढ़ चुका है। आग लगने की 100-200 नहीं 1700 से ज्यादा घटनाएं घटी हैं। वाइल्ड लाइफ रिजर्व क्षेत्र भी आग की चपेट में आ गए हैं।
सरकारी आंकड़ों की बात करें तो आग में 17 जानवर जलकर मरे हैं लेकिन ये सब पालतू मवेशी हैं। जंगल में कितने जानवर झुलस गए इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
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