अनिल बलूनी INTERVIEW: गैरसैण, कर्णप्रयाग और बागेश्वर, एक ट्रेन कनेक्टिविटी का सर्किल बनाना चाहता हूं…

अनिल बलूनी INTERVIEW: गैरसैण, कर्णप्रयाग और बागेश्वर, एक ट्रेन कनेक्टिविटी का सर्किल बनाना चाहता हूं…

हिल-मेल और ओहो रेडियो उत्तराखंड के बहुचर्चित शो ‘बात उत्तराखंड की’ में इन दिनों लगातार उन लोगों से बात हो रही है, जिनका देवभूमि को लेकर एक विजन है। इस शो में मेहमान बने उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी। राजनीति, विकास और कोरोना के हालात पर अर्जुन रावत और आरजे काव्य की उनसे ढेर सारी बातें हुईं, इस स्पेशल इंटरव्यू के कुछ अंश-

काव्यः कुछ समय पहले ऑक्सीजन और कोरोना के इलाज के लिए जरूरी उपकरणों की कमी हो गई थी, कनाडा और दुनिया के हिस्सों से आपने मदद मंगवाई और पौड़ी और उत्तराखंड के दूसरे हिस्सों में भेजा, अभी कैसे हालात हैं?

उत्तराखंड के लिए यूएई की सरकार द्वारा राहत सामग्री मिली है। हजारों की संख्या में ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट और कंसंट्रेटर भी आए हैं। जब यह समस्या आई तो मुझे लगा कि बाहर जो लोग उत्तराखंड के रहते हैं उनका भी योगदान होना चाहिए। मैंने कुछ लोगों से लंदन, यूएई, कनाडा, सिंगापुर आदि देशों में बात की। वे राजी हो गए। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में उत्तराखंड के प्रवासी भाई-बहन भी चाहते हैं कि वे इसमें सहयोग करें। मैं उन सबका आभारी हूं। इस संकट से बाहर निकलकर उत्तराखंड विकास के पथ पर अग्रसर रहे, यही कामना करता हूं।

काव्यः जब भी हम मुश्किल होते हैं तो हर बार अनिल बलूनी का मैजिक कैसे चल जाता है?

नहीं देखिए, इसमें कोई बड़ा मैजिक नहीं है। मैं भाजपा का प्रवक्ता हूं और दिल्ली में काम कर रहा हूं। यहां से संबंध बनते जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर काम करने के लाभ होते हैं। ऐसा कोई मैजिक नहीं है। मेरी जगह पर जो भी काम करेगा उसके रिलेशन बनते जाएंगे। कई लोग कहते हैं कि आप मंत्रियों से मिलते हैं काम करा लेते हैं। मैं तो कहता हूं कि मेरी जगह अगर काव्य जी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता होते तो सारे काम करा लेते। इसमें कोई मैजिक नहीं है।

काव्यः छोटी-छोटी चीजों पर नजर होना बड़ी बात है, डाटकाली से मोहंडवाला वाला रास्ता था, इस रास्ते पर कई साल से हजारों लोग निकले पर किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, परेशानी सबको होती थी?

एक बार किसी बड़े व्यक्ति से लोगों ने कहा कि आप अवसर को कैसे उछलकर पकड़ लेते हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं है। मैं उछलता रहता हूं। उत्तराखंड के लिए सोचता रहता हूं कि क्या किया जा सकता है। जब मैं सांसद बना तो तय किया उत्तराखंड में तीन आईसीयू बनाऊंगा। हर साल अपनी सांसद निधि ने करूंगा। कई बार जो चाहो नहीं हो पाता हूं। मैं मानता हूं। बाद में लोगों ने कहा कि आपको कैसे पता था कि कोरोना आने वाला है और आपने आईसीयू बना दिए। मैंने कहा कि ऐसा नहीं है।
उत्तराखंड में आज सबको लग रहा है कि स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करना कितना जरूरी है। सरकार से जुड़े और ब्यूरोक्रेट्स को भी सोचना होगा कि पहाड़ में इलाज की सुविधा होनी चाहिए। आज समझ में आ रहा है कि लोगों की जांच या आरटीपीसीआर कराना कितना मुश्किल होता है। पौड़ी जिले में जहां मेरा गांव है, अगर पौड़ी या देवप्रयाग आकर जांच कराना हो तो कोई नहीं करा पाएगा। ऐसे में हमें गांवों को सुरक्षित रखने के लिए आसपास हेल्थ फैसिलिटी तैयार करनी ही होगी।

अर्जुन रावतः आप जिस तरह से सक्रिय रहते हैं, आपको नहीं लगता कि सभी जन प्रतिनिधियों को अपने राज्य को आगे बढ़ाने के लिए उसी रफ्तार से बढ़ना चाहिए, 20 साल में काफी कुछ हुआ है लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है?

जब मैं कैंसर से लड़ रहा था। मेरे लिए मुश्किल भरा वक्त था। उस समय कोई रोज ऐसा नहीं गया जब मैं यह नहीं सोचता था कि उत्तराखंड के विकास के लिए क्या कर सकता हूं। उसी समय मैंने संकल्प लिया था कि जिस तरह का इलाज मुझे मिल रहा है उसी तरह का इलाज उत्तराखंड के प्रत्येक व्यक्ति को मिले। मैंने तय किया था कि उत्तराखंड में एक कैंसर का अस्पताल बनवाना है। दुर्भाग्य से कोरोना की बीमारी आई, टाटा ट्रस्ट का सीएसआर का पैसा कोरोना काल में लग गया लेकिन मैं इस दिशा में प्रयासरत हूं। मुझे उम्मीद है कि हमारे सारे दलों के नेता इस दिशा में काम कर रहे हैं।

काव्यः राजनीति में बहुत कम लोग होते हैं, जो ऑलराउंडर होते हैं उन्हें राजनीति के अलावा तकनीकी, सामाजिक मसले भी समझ आते हैं, इगास, फूलदेई पर आपका फोकस रहा, एक जनप्रतिनिधि के लिए यह कितना जरूरी है?

जब आप गुजरात जाते हैं, गरबा के समय पर पूरी दुनिया गरबा खेलने के लिए आते है। एनआरआई गुजरात आते हैं और 10 दिन रहते हैं। मेरे मन में भी ऐसा था कि उत्तराखंड में इगास जैसा त्योहार मनाएं कि देश विदेश से उत्तराखंडी आएं और वे पहाड़ की खुशबू फैलाएं। हम एक दिन का इगास क्यों मनाएं, एक हफ्ते के लिए आइए होटलों में भर जाएं लोग और धूमधाम से इगास का कार्यक्रम करें। इससे कई तरह से उत्तराखंड की मदद होगी। ये मेरी कल्पना थी, दुर्भाग्य से मेरी तबीयत खराब हो गई, बाद में कोरोना आ गया लेकिन मैं आगे इस दिशा में काम करूंगा। हर गांव, शहर में यह आयोजन होगा।

काव्यः लोगों को औली के बारे में जानकर हैरत होती है कि अपने देश में औली जैसी जगह है, मुनस्यारी का इलाका है, क्या आप मानते हैं कि हमारे पास चीजें तो बहुत हैं लेकिन ब्रांड उत्तराखंड के अंदर हम उसे लाने में असफल रहे हैं?

उत्तराखंड की कुछ चीजों को हमें दुनियाभर में प्रचारित करने का काम होना चाहिए। आगे भविष्य में हम निश्चित तौर पर इस दिशा में काम करेंगे। मैं चाहता हूं कि प्रदेश से जुड़े सभी लोग इस दिशा में आएं और दुनिया में उत्तराखंड का नाम कैसे हो, इस पर काम किया जाए।

अर्जुन रावतः 20 साल की यात्रा को आप कैसे देखते हैं? स्वास्थ्य का आपने जिक्र किया और कौन से सेक्टर जिस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है?

देखिए, कुछ भी नहीं छोड़ना चाहिए। मुझे लगता है कि सर्वांगीण विकास पर काम करना है। हेल्थ पर काम किया रोजगार या बिजली को छोड़ दिया तो फायदा नहीं। मैं एक बार नैनीताल गया, अधिकारी आए, मैंने पूछा कि अगर कल को भूकंप आ जाए और झील का पानी चला जाए। हम इतने सालों में पीने का पानी का इंतजाम नहीं कर पाएं, हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए। मसूरी में कई दशकों से कोई योजना नहीं थी। मैंने पीएम से अनुरोध किया, 180 करोड़ रुपये लगे, काम चालू हो गया। बिजली, पानी, शिक्षा सभी क्षेत्रों में काम करना होगा। दिल्ली और दूसरे महानगरों में जिस तरीके से बच्चों को शिक्षा मिल रही है। अगर हमारे बच्चे पिछड़ जाएंगे तो क्या करेंगे। कभी देर नहीं होती।

काव्यः कुछ चीजें आपको दूसरों से अलग करती हैं, विशेषकर आपकी हेल्दी अप्रोच?

देखिए जिस दिन मैं सांसद बना था, मेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस देखिएगा। मैंने मीडिया के सामने कहा था कि कभी माला नहीं पहनूंगा, कोई स्वागत नहीं होगा। मैंने कहा था कि होर्डिंग पोस्टर नहीं लगाऊंगा। जो लोग लगाते हैं मैंने कहा था कि भाई यहां एंट्री बंद हो जाएगी नुकसान होगा तुम्हारा। लोग कहते हैं कि इस पद के लिए आपका नाम चल रहा है। मैंने साफ कहा है कि 6 साल तक मैं सांसद के तौर पर काम करूंगा। उसके बाद उत्तराखंड की जनता जरूर आशीर्वाद देगी, यही मेरा स्वागत है। मैं स्पष्ट विजन के साथ काम करता हूं।
मैं जब बीमार था, मेरे बच्चे छोटे हैं। मुझे लगता था कि मेरे बाद इनका क्या होगा। मैं उन परिस्थितियों से निकलकर आया हूं। जो मुझे दायित्व दिया गया है मैं पूरी क्षमता के साथ काम करूंगा। कई बार मैं पीछे देखता हूं कि ये घोषणा हुई थी मैं क्यों नहीं कर पा रहा हूं।

काव्यः जनप्रतिनिधियों का जनता से लगातार संवाद होते रहने को आप कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?

हर आदमी की एक अलग खूबी होती है। हो सकता है कि वह अच्छा कम्युनिकेटर न हो पर वह अच्छा काम करता है। क्रिकेट की भाषा में कहें तो कोई अच्छा बैट्समैन है, कीपर है, कोई अच्छा बॉलर है। कोई सहवाग की तरह खेलता है। कोई स्लो खेलता है। सबकी अपनी-अपनी खूबी है। समाज में हर तरह के लोगों की जरूरत है। भाजपा में तो एक लंबी फेहरिस्त रही है। अटल जी के भाषण का लोग इंतजार करते रहते थे। आडवाणी जी अच्छा बोलते थे, सुषमा जी का धारदार भाषणा होता था। अरुण जेटली इतने ज्ञानी थे। मोदी जी को सुनने के लिए देश ही नहीं विदेशों में लोग इंतजार करते हैं। मोदी जी बोलते हैं… अगर वह राम मंदिर में बोलते हैं तो आप देखे होंगे कैसे माहौल राममय हो गया। वहीं कॉलेज के छात्रों के साथ बोलते हैं तो लगता है कि कोई युवा आ गया है। भाजपा में बोलने वाले अच्छे लोग हुए हैं।

अर्जुन रावतः उत्तराखंड में एक बड़ी समस्या इंटरनेट कनेक्टिविटी की है, अगर हम होम स्टे की बात करते हैं, हम चाहते हैं कि आईटी इंडस्ट्री के लोग यहां आकर काम करें तो क्या आपके पास कोई एक्शन प्लान है?

मैंने पिछले दिनों फेसबुक के माध्यम से लोगों से समस्याएं साझा करने को कहा था। मुझ तक भी यह बात पहुंची है और मैंने आईटी मिनिस्ट्री से बात भी की है। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के कारण बहुत सारे कामों पर असर पड़ा है। जैसे ही चीजें नॉर्मल होंगी, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि 4जी के टॉवर लगना और नए काम शुरू होंगे। वाकई इस क्षेत्र में काम करने की बहुत जरूरत है। आज तो बिना इंटरनेट और फोन कनेक्टिविटी के काम नहीं हो सकता।

अर्जुन रावतः उत्तराखंड में एयर एंबुलेंस एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है, क्या इसे शुरू होने में कोई तकनीकी दिक्कत आड़े आ रही है?

कोई तकनीकी दिक्कत नहीं है। मैंने अखबारों में देखा कि एयर एंबुलेंस के बारे में कहा गया कि एयर एंबुलेंस के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने रिजेक्ट किया है। ऐसा नहीं है। समझने में दिक्कत हुई है। दरअसल, उत्तराखंड सरकार चाहती थी कि एनएचआरएम में एंबुलेंस सेवा की परमिशन मिले लेकिन पूरे देश में कहीं भी ऐसा नहीं है। अन्य माध्यमों से हम लोग काम कर रहे हैं। एयर एंबुलेंस उत्तराखंड के लिए अनिवार्य है। हम काम कर रहे हैं। दूसरी योजनाओं के जरिए उसे किया जा सकता है। उसे जल्दी करेंगे।

अर्जुन रावतः उत्तराखंड में एक और बड़ी समस्या पानी की है, पानी है लेकिन हम उसे संचय नहीं कर पा रहे हैं, ग्राउंड पर वो कमियां दिखती हैं उसको लेकर आप क्या कहना चाहेंगे?

देखिए, हमारी केंद्र सरकार ने एक बहुत अच्छी योजना शुरू की है जिससे जल्द से जल्द हर घर को पानी पहुंचे। उत्तराखंड सरकार ने 1 रुपये में पानी का कनेक्शन देने की योजना बनाई है। उस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। बहुत से लोग लाभान्वित भी हुए हैं।

अर्जुन रावतः आप अगले 10 या 20 साल में उत्तराखंड को एक राज्य के तौर पर कहां देखते हैं?

अनिल बलूनी- मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो यह नहीं देखता कि पिछले वर्षों में क्या नहीं हुआ। मुझे तो आगे देखना है कि क्या और कैसे करना है। हमारी सरकार, पार्टी और मेरा व्यक्तिगत विजन है। सरकार का बेहतरीन काम चल रहा है। ट्रेन कनेक्टिविटी, चार धाम जैसे काम चल रहे हैं। मैंने अपना व्यक्तिगत रोडमैप भी बनाया है, जिस पर मैं बढ़ रहा हूं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि अनिल बलूनी का योगदान आने वाले समय में उत्तराखंड के विकास के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं पर होगा। कैंसर अस्पताल पर काम चल रहा है। पहाड़ों में ट्रेन का एक जाल बनाना चाहता हूं। गैरसैण, कर्णप्रयाग और बागेश्वर होते हुए मैं एक ट्रेन कनेक्टिविटी का सर्किल बनाना चाहता हूं।
मैं एक चीज और कहना चाहता हूं। मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, उनका उत्तराखंड के साथ लगाव जिस तरह से है, ऐसे में हम लोग उत्तराखंड के लिए ज्यादा कुछ करा सकते हैं। आप देखते होंगे वह कभी ऑल वेदर रोड, केदारनाथ धाम प्रोजेक्ट की समीक्षा करते हैं।

अर्जुन रावतः अभी कोरोना काल में कलाकारों के सामने आजीविका का संकट आ गया, क्या आप कोई पॉलिसी की दिशा में मदद कर सकते हैं जिससे भविष्य में इस तरह की परेशानी फिर न उठानी पड़े?

वाकई, कोरोना काल ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। उत्तराखंड सबसे बुरी तरह से प्रभावित किया है। हमारी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर केंद्रित है। जो लोग किस्तों पर लेकर टैक्सी चलाते हैं उनके पास किस्त के पैसे नहीं हैं। छोटे-छोटे होटल वालों का बुरा हाल है। प्रत्येक क्षेत्र में नुकसान हुआ है। हमारे कलाकार भी परेशान हैं। हमें सभी के लिए काम करने की जरूरत है। यह दर्दनाक स्थिति है। होटल में कर्मचारी हैं उन्हें तनख्वाह कम मिल रहा है। हमारे टैक्सी वाले, भुट्टा बेचने वालों, मैगी बनाने वालों का काम बंद पड़ा है। भगवान हम सबको ताकत दे कि हम अपने लोगों को बाहर निकाल सके।

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काव्यः बहुत से लोग आपसे प्रेरित होते हैं, पॉलिटिक्स में आपका आना कैसे हुआ?

मैं मीडिया में था। पत्रकार था। संघ का स्वयंसेवक था, विद्यार्थी परिषद से जुड़ा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए, कब राजनीति में आ गए पता ही नहीं चला। वैसे, एक पत्रकार का राजनीति में आना बहुत मुश्किल नहीं होता है। लेकिन मैं खुश हूं। पत्रकार रहता तो लिखता, अब मैं ज्यादा लोगों के लिए कुछ कर सकता हूं। अच्छा काम करने की कोशिश कर रहा हूं। दुर्भाग्य से जिस तरह से राजनीति को लेकर लोगों के मन में सोच है, अच्छा काम करके उसे बदलने की कोशिश करेंगे। बहुत सारे राजीनितक लोग मेहनत से अपना काम अच्छे से कर रहे हैं। … पत्रकारिता से राजनीति में आने से फायदे यह भी हैं कि पता रहता है कि इंटेंशन क्या है। कौन किस अर्थ से सवाल कर रहा है।

काव्य- उत्तराखंड के लोगों के लिए आम धारणा है कि वे या तो हॉस्पिटैलिटी के लिए जाते हैं, सेना में जाते हैं, एक सवाल आता है कि पहाड़ के लोग ज्यादा आईएएस, पीसीएस बनें, क्या स्कूल, कॉलेज में इस दिशा में सोचने की जरूरत है?

देखिए, हमें पहाड़ों पर ऐसा एजुकेशन देना होगा कि हमारे बच्चे कंपीट कर सकें। लेकिन मैं आपके इस बात से सहमत नही हूं कि उत्तराखंड के लोग ब्यूरोक्रेसी में नहीं है। हम देश का एक प्रतिशत या उससे ज्यादा हैं। हमारा योगदान उससे कहीं जाता है। मैं देशभर में भ्रमण करता हूं। चेन्नई और बेंगलुरु में पहाड़ के अधिकारी मिल जाते हैं। डीआरडीओ, सेना में बड़ी संख्या में अफसर पहाड़ के हैं। उत्तराखंड के लोगों को निराशा का भाव रखने की आवश्यकता नहीं है। हमारा सरकार में भी दबदबा है। इसे बढ़ाने की जरूरत है, ये मैं मानता हूं।

सोशल मीडिया से भी सवाल

नलिन भट्ट, टिहरीः आपसे से पहाड़ के युवाओं को काफी आशा है, रोजगार के लिए ठोस नीति होनी चाहिए?

देखिए, पहाड़ के युवाओं को रोजगार तो देना ही होगा। लेकिन ऐसा कोई फॉर्मूला नहीं है कि आपके टॉक शो में मैं बताऊं क्योंकि उसके लिए काम करना होगा। मेरा ये मानना है कि हर सरकार और हर नेता का अलग विजन होता है। रोजगार के लिए जरूरी चीजों को मैं आगे बढ़ाना चाहूंगा। कोरोना के चलते बहुत सी चीजों के लिए हाथ बंध गए हैं। लेकिन बहुत आगे काम करना है। रोजगार, हेल्थ और कनेक्टिविटी के लिए बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है। ट्रेन को लेकर कर्णप्रयाग वाला रास्ता तेजी से बढ़ रहा है। धाम पुर से काशीपुर को जोड़ने की दिशा में भी काम चल रहा है। इस तरह से ट्रेन और एयर कनेक्टिविटी के लिए काम चल रहा है। हाल में मैंने सरकार से मानसरोवर यात्रा के लिए ऑल वेदर रोड बनाने की अपील की है।

मनोज मधवाल, नैनीडांडाः यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी परेशानी है, एक्सरे मशीनें हैं लेकिन चलाने वाले नहीं है, रामनगर जाना पड़ता है, पहाड़ों पर इस तरह की चुनौती से कैसे निपटा जाए?

सच बात है कि दुर्गम इलाका है वह और वहां दिक्कत है। मेरा सपना है कि उत्तराखंड के हर गांव, ब्लॉक तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचे और उन्हें छोटी-छोटी चीजों के लिए बाहर के कस्बों में न जाना पड़े। किसी को कोटद्वार, हल्द्वानी ना जाना पड़े। मेरे दिमाग में इसको लेकर प्लान है, समय आने पर साझा करूंगा।

नरेंद्र टोलिया, रानीखेतः पिथौरागढ़ नैनी-सैनी हवाई पट्टी से अगर लगातार संचालन होगा तो मुनस्यारी वाला एरिया बड़ा खूबसूरत है, उसका फायदा उठा सकते हैं?

देखिए, इसको लेकर मेरी कई दफे मंत्री हरदीप पुरी जी से बात हो चुकी है। नैनी-सैनी एयरपोर्ट की पट्टी आपको पता है छोटी है। बढ़ाने का स्कोप पहाड़ में होता नहीं है। वहां बड़े जहाज लैंड नहीं कर सकते। इसके लिए 8, 9 सीट जहाजों की व्यवस्था की जा रही थी। लेकिन इससे बहुत फायदा नहीं होगा। आपको 20-22 सीटर प्लेन चाहिए होगी। एयर इंडिया के पास थे सेल हो गए। बहुत जल्द पिथौरागढ़ से एयर सेवा शुरू करा देंगे। बस एक दो महीने की बात है।

मैंने जो मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड से शुरू करने की बात की है। नेपाल से पजेरो गाड़ी से लोग जाते हैं और बहुत पैसा खर्च करते हैं। अभी उत्तराखंड से एक हजार लोग जाते हैं। आप सोचिए कि जब हजारों, लाखों लोग जाने लगेंगे तो हमे लिपुलेख तक होटल्स बनाने पड़ेंगे। जिस दिन हमारा कैलाश मानसरोवर का रास्ता उत्तराखंड से खुल जाएगा। लिपुलेख, धारचूला को काफी फायदा होगा और कुमाऊं की अर्थव्यवस्था बदल जाएगी।

एक दर्शक का सवालः पार्टी की कुछ उदासीनता के कारण बाहरी दल भी आ गए हैं, आप इसे कैसे देखते हैं?

नहीं मैं किसी को बाहरी नहीं मानता। यह लोकतंत्र है। सबको अपनी बात रखने का अधिकार है। हर पार्टी को चुनाव लड़ने का अधिकार है। बस उत्तराखंड के सरोकार का ध्यान रखे। उत्तराखंड में सभी का स्वागत है।

 

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