हरेला उत्सव को उत्तराखंड से जोड़कर देखा जाता है लेकिन अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है। 16 जुलाई को हरेला महोत्सव मनाया जाएगा। अब यह पूरे देश और विदेश में भी मनाया जाने लगा है। आइए इस महोत्सव के उस पहलू को समझते हैं जो यह बताता है कि इसका सीधे कनेक्शन हमारे शरीर और जीवन से है।
पर्यावरण के प्रति समर्पण का संदेश देने वाला ‘हरेला’ पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। यह संपन्नता, हरियाली, और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। श्रावण मास में हरेला पूजने के बाद पौधे लगाए जाने की परंपरा रही है। यह उत्तराखंडियों के प्रकृति और पर्यावरण के साथ जुड़ाव को दर्शाता है और अब पूरे देश में तेजी से फैल रहा है। लोग इसके महत्व को समझ रहे हैं। ऐसे में यूपी, पंजाब, दिल्ली और दूसरे राज्यों में हरेला उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हो रही है। हरेला पर पूरे उत्तराखंड में वृक्षारोपण को लेकर व्यापक कार्यक्रम किए जा रहे हैं। लोकपर्व हरेला 16 जुलाई को है।
हरेला का गंगा और हिमालय कनेक्शन
देश के सबसे बड़े सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ब्रज प्रांत क्षेत्र के प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला से समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर हरेला हम सबके लिए जरूरी क्यों है। डॉ. रौतेला कहते हैं कि हरेला एक ऐसा त्योहार है जो हिमालय से निकलकर पूरी दुनिया को एकात्म कर देने का संदेश देता है। हरेला का मतलब क्या है, संपूर्ण प्रकृति हरी-भरी रहती है तो उसके चलते देश खुशहाल होता है। उत्तराखंड में ऋषियों-मुनियों ने हरेला क्यों बनाया, यह समझने की जरूरत है। गंगा, गंगा क्यों बनती है क्योंकि गंगा में एक विषाणु होता है, जिसके चलते उसमें दूसरा कोई विषाणु टिक नहीं पाता। इसीलिए हिमालय से निकलने वाली गंगा वैसी ही बनी रहती है। वह जो विषाणु है, वह निश्चित जलवायु में होता है। अगर तापमान बढ़ेगा तो मुश्किल होगी। हरेला के कारण सारा हिमालय हरा-भरा रहना चाहिए। वहां ठंडक बनी रहनी चाहिए।
शरीर के लिए भी जरूरी कैसे, समझिए
दूसरा, हरेला ऐसी चीज है, अगर आप शरीर को अच्छा करना चाहते हैं। शरीर पंचतत्वों से बना है, शरीर के एक तिहाई हिस्से में फलों का होना जरूरी है। उतना अन्न, उतना फल, उतना जल। अब ये कब होगा जब उत्पादन अधिक होगा। इसलिए हरेला के तहत फलदार वृक्षों का रोपण, छायादार पौधों का रोपण, शिव के बेलपत्रों का रोपण किया जाता है।
ग्रह दशा भी होगी ठीक
वह कहते हैं कि अगर पंडित जी ग्रह दशा सही करने के लिए कुछ पहनने को कहते हैं और आप नहीं पहनना चाहते तो 27 पेड़ भी होते हैं जो ग्रहदशा सही करते हैं। उसे नक्षत्र वाटिका होते हैं। 27 नक्षत्रों के नाम से होते हैं और आपके गुणों को ठीक करते हैं। इसी कारण से हरेला नाम का त्योहार बनाया है।
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कोरोना ने समझाया प्रकृति का महत्व
कोरोना महामारी ने समूचे जनमानस को प्रकृति की ओर लौटने पर मजबूर किया। इसने लोगों को पर्यावरण के संरक्षण और प्रकृति के महत्व से रूबरू कराया। एक लंबा जीवन शहरों में बिताने के बावजूद जब कोरोना जानलेवा हुआ तो लोगों को प्रकृति की छांव में ही सुरक्षा का अहसास हुआ। हरेला महज लोकपर्व नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के बीच के जुड़ाव का प्रतीक है। उत्तराखंड में हरेला पर्व पर पौधे लगाए जाते हैं। बड़ी संख्या में लोग पौधरोपण कर प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लेते हैं।
डॉ. हरीश रौतेला ने 6 साल पहले हरेला पर्व सप्ताह में 25 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा था, यह सफलतापूर्वक पूरा किया गया। पिछले कुछ वर्षों में लोगों का जुड़ाव फिर अपनी सांस्कृतिक जमीन से होने लगा है। इसी का परिणाम है कि अब हरेला पर्व देश-विदेश में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। लोग ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने का प्रयास करते हैं। पिछले साल लगभग 50 से ज्यादा देशों में हरेला पर्व मनाया गया। कोरोना के चलते यह आयोजन सीमित था, लेकिन इस बार यह भव्य तरीके से होगा।
इस साल हरेला पर एक भागीरथ प्रयास की शुरुआत हो रही है। यह है हरेला के अवसर पर पहाड़ों पर अपने प्राकृतिक स्रोतों, पानी के नौलों का संरक्षण करना। यह बात छिपी नहीं है कि पहाड़ों के बड़े हिस्से में गर्मियों का मौसम पानी की भारी किल्लत के बीच कटता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम अपने प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण करने के लिए व्यापक अभियान चलाएं। इसी के तहत लोगों को प्रेरित किया जा रहा है कि वे अपने गांवों में प्राकृतिक स्रोतों, नौलों का पुनरोद्धार करें, उसके आसपास पेड़-पौधे लगाएं। ताकि नौलों में पानी की उपलब्धता को साल भर सुनिश्चित किया जा सके।
इसके लिए 10 जुलाई को एक वेबिनार का भी आयोजन किया गया था। इसका उद्देश्य हरेला पर्व के अवसर पर लोगों को पौधे लगाने और ‘मेरा गांव, मेरा तीर्थ’ के संकल्प के साथ अपने प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण करने के लिए प्रेरित करना थे। इस आयोजन से कई प्रतिष्ठित शख्सियतें, पर्यावरणविद् एवं विचारक जुड़े। यह सामूहिक प्रयास उत्तराखंड में लोगों को अपने-अपने गांवों में प्राकृतिक स्रोतों एवं नौलों के संरक्षण के लिए प्रेरित करने के लिए किया गया।
हरेला की व्यापकता को देखकर उत्तराखंड सरकार ने भी इस पर्व पर अवकाश की घोषणा कर रखी है। आगामी 16 जुलाई को हरेला पर्व मनाया जाएगा, ऐसे में प्रयास है कि ज्यादा से से ज्यादा लोग इस महाअभियान मे अपनी आहुति दें और हरेला लोकपर्व पर पेड़ लगाने का प्रयास करें।
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