जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त अंतरसरकारी समिति (IPCC) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर6) में कहा गया है कि सबसे बड़ा खतरा हिमरेखाओं का पीछे सरकना और ग्लेशियरों का पिघलना है, क्योंकि इससे जल चक्र में बदलाव, वर्षा के पैटर्न, बाढ़ में वृद्धि और भविष्य में हिमालयी राज्यों में जल संकट पैदा हो सकता है।
पहाड़ों में बर्फ के आवरण और ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर इंटर-गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने एक ऐसी रिपोर्ट जारी की है, जो हिमालयी राज्यों में चिंता बढ़ाने वाली है।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त अंतरसरकारी समिति (IPCC) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर6) ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस’ के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ग्लोबल वार्मिंग का हिमालय समेत दुनिया भर की पर्वत श्रृंखलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। इसके परिणाम भयानक और निराशाजनक हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि पहाड़ों में ठंड के स्तर की ऊंचाई बदलने की संभावना है और आने वाले दशकों में हिमरेखाएं पीछे हट जाएंगी।
अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि हिमालय सहित दुनिया भर में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ये घट रहे हैं। ये अब एक ऐसा तथ्य है, जिसे पलटा नहीं जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पहाड़ों में तापमान के स्तर में बढ़ोतरी और ग्लेशियरों का पिछलना 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व है। ग्लेशियरों के पीछे हटने के लिए मानवजनित कारक और प्रभाव जिम्मेदार हैं।
सबसे बड़ा खतरा हिमरेखाओं का पीछे सरकना और ग्लेशियरों का पिघलना है, क्योंकि इससे जल चक्र में बदलाव, वर्षा के पैटर्न, बाढ़ में वृद्धि और भविष्य में हिमालयी राज्यों में जल संकट पैदा हो सकता है।
रिपोर्ट में इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली में नंदा देवी पर ग्लेशियर टूटने के कारण हुए भूस्खलन जैसी घटनाओं की बढ़ती संभावना को लेकर भविष्यवाणी की गई है, जिससे इस क्षेत्र में बाढ़ आई थी। रिपोर्ट में कहा गया है, प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होने की संभावना है। साथ ही सभी परिदृश्यों में बाढ़, भूस्खलन और झील के फटने के व्यापक परिणाम देखने को मिलेंगे।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के पर्यावरण परिवर्तन संस्थान के एसोसिएट निदेशक और इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक डा. फ्रेडरिक ओटो के मुताबिक, ’20वीं शताब्दी में पर्वत हिमनदों के पीछे हटने के लिए मानव प्रभाव जिम्मेदार रहा। ग्लेशियर जलवायु प्रणाली के सबसे धीमी प्रतिक्रिया वाले भागों में से एक हैं। ग्लेशियरों का अब पीछे हटना अतीत की क्रियाओं का परिणाम है न कि तत्काल प्रभाव का। इसलिए भले ही हम अभी उत्सर्जन को रोक दें, हमें आने वाले दशक में ग्लेशियरों के निरंतर पीछे हटने की उम्मीद करनी चाहिए। बेशक, अगर ये ऐसे ही चलता रहा और उत्सर्जन में कटौती नहीं की गई, तो ग्लेशियरों के पीछे हटने की रफ्तार और भी तेज होगी। हिमालय में ग्लेशियरों का पीछे खिसकना एक बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि यह इस क्षेत्र में ताजे पानी की उपलब्धता को प्रभावित करेगा।’
IPCC के आकलन में पाया गया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में हिमांक की ऊंचाई बढ़ने का अनुमान है। इससे बर्फ और बर्फ की स्थिति में बदलाव आएगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिमालय, स्विस आल्प्स और मध्य एंडीज में तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है और यह ऊंचाई के साथ बढ़ी है।
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