जनरल बिपिन रावत थलसेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 31 दिसंबर, 2019 को देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) बने थे। उन्हें मीडिया ने ‘जनता का जनरल’ जैसे खिताब दिए। जनरल रावत की लोगों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन की खबर आने के बाद उत्तर से दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक देश में एक तरह का शोक और सदमा था।
देश के पहले सीडीएस स्व. जनरल बिपिन रावत की 64वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली और देहरादून में दो बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर सभागार में हिल-मेल फाउंडेशन की ओर से देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत मैमोरियल लेक्चर का आयोजन किया जा रहा है। पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया, पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएम, एडीसी (रिटा.) इसके मुख्य वक्ता होंगे। इस कार्यक्रम में तीनों सेनाओं से कई मौजूदा और सेवानिवृत्त अधिकारी शिरकत करेंगे। सीडीएस जनरल रावत के परिजन भी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।
देहरादून में दून विश्वविद्यालय की ओर से देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत स्मृति व्याखान माला आयोजित की जार ही है। ‘सीमांत सुरक्षा- राष्ट्रीय सुरक्षा’ विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्य अतिथि होंगे। वहीं ले. जनरल जयवीर सिंह नेगी (रिटा.) मुख्य वक्ता होंगे। इसके अलावा आईटीबीपी की पश्चिमी कमान के मुखिया एडीजी मनोज रावत, रियर एडमिरल ओपीएस राणा (रिटा.), ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह, डीआरडीओ के डायरेक्टर डा. बी. के दास और यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट इसमें शिरकत करेंगे। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डा.) सुरेखा डंगवाल के अनुसार यूनिवर्सिटी के दिवंगत सीडीएस जनरल रावत की तस्वीर को उत्तराखंड की महान विभूतियों के साथ लगाया जाएगा।
इस दौरान दून यूनिवर्सिटी की एनसीसी की 11 यूके गर्ल्स बटालियन वीरभूमि फाउंडेशन की मदद से एक रक्तदान शिविर का भी आयोजन करेगी।
8 दिसंबर 2021 को तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए एक हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस जनरल बिपिन रावत के साथ उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 12 अन्य सैन्यकर्मियों की मौत हो गई थी।
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जनरल बिपिन रावत थलसेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 31 दिसंबर, 2019 को देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) बने थे। उन्हें मीडिया ने ‘जनता का जनरल’ जैसे खिताब दिए। जनरल रावत की लोगों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन की खबर आने के बाद उत्तर से दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक देश में एक तरह का शोक और सदमा था। अपनी साफगोई और जमीन से जुड़े रुख के चलते वह काफी लोकप्रिय सेनाप्रमुख रहे।
सीडीएस जनरल रावत तीनों सेनाओं को सुगठित करने की बड़ी योजना पर काम कर रहे थे। उनकी कोशिश सेना के तीनों अंगों को एक ऐसे सशस्त्र बल के रूप में विकसित करने की थी, जिसमें उनकी क्षमताएं, साजो-सामान और सैनिक एकीकृत हों। इसका उद्देश्य खर्च में कमी लाना, मैन पॉवर को युक्तिसंगत बनाना और यह सुनिश्चित करना कि सशस्त्र बल एकजुट इकाई के रूप में लड़ें। तीन साल के भीतर उन्हें सेनाओं का पुनर्गठन कर ‘थिएटर कमांड’ बनाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। वह जिस थिएटर कमांड प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, वो प्रोजेक्ट चीन और पाकिस्तान से आने वाले खतरों से निपटने में अहम रोल अदा करता।
सीडीएस जनरल बिपिन रावत का रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण में भी एक बड़ा योगदान था। पिछले पांच-छह साल से थलसेना, वायुसेना और नौसेना में स्वदेशी हथियारों को ही तरजीह दी जा रही थी, तो इसका एक बड़ा श्रेय जनरल रावत को जाता है। अगर विदेशी हथियार और सैन्य साजो-सामान खरीद भी रहे थे तो उसे मेक इन इंडिया के तहत देश में ही निर्माण करने की कोशिश रहती थी। यही कारण था कि थलसेना स्वदेशी अर्जुन टैंक लेने को तैयार हुई और वायुसेना ने एलसीएच अटैक हेलीकॉप्टर लेने को हामी भरी थी। जनरल बिपिन रावत रक्षा क्षेत्र में सुधारों के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे।
पौड़ी के सैंण गांव से आने वाले सीडीएस जनरल रावत को सेना प्रमुख रहने के दौरान पीओके और म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक, कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ने की सफल रणनीति बनाने का श्रेय तो जाता ही है, डोकलाम में चीनी सेना से टकराव के बाद भारतीय सेना के बदले तेवरों ने उनकी अहमियत साबित की। सेना में महिलाओं को स्थायी तौर पर शामिल करने का फैसला उनके कार्यकाल के दौरान ही संभव हो सका। 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में जनवरी 1978 में कमीशन लेने वाले जनरल बिपिन रावत आईएमए से पासआउट होने वाले अपने बैच के श्रेष्ठतम कैडेट थे।
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