हल्द्वानी की अभिलाषा देश विदेश में दिला रहीं ऐपण को पहचान

हल्द्वानी की अभिलाषा देश विदेश में दिला रहीं ऐपण को पहचान

कुछ ही समय में उनकी कला को इतना पसंद किया जाने लगा की अलग अलग जगहों से उनकी बयाने प्रॉडक्ट की डिमांड आने लगी। उन्होंने न सिर्फ लुप्त होती संस्कृति को बचाया बल्कि बाजार में ऐपण की विक्रेता की सम्भावना को भी बढ़ाया।

हल्द्वानी की अभिलाषा देश विदेश में दिला रहीं ऐपण को पहचान

उत्तराखंड की बेटियां अब हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है । खेल का मैदान हो या हौसलों की उड़ान लड़कियां अब कहीं भी पीछे नही है। हर क्षेत्र में अपने हुनर का कमाल दिखा वाहवाही बटोर रही है। कुछ ऐसा ही बेमिसाल काम कर रही है पहाड़ की ये बेटियां जो न सिर्फ अपने हुनर का लोहा मनवा रही है बल्कि विलुप्त होती कला को भी नई पहचान दे रही है।

बात करते है हल्द्वानी की अभिलाषा पालीवाल की। अभिलाषा का जन्म रुद्रपुर( उधम सिंह नगर) में हुआ। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने की बाद डिजाइनिंग में रुचि होने के चलते उन्होंने देहरादून से डिजाइनर का कोर्स किया। कोर्स खत्म करने के बाद उन्होंने दिल्ली में 4 साल नौकरी भी की। नौकरी के दौरान जब वह दिल्ली हाट में गयी तो उन्हें वहां हर राज्य की संस्कृति, कलाकृति नजर आयी।

इन सबके बीच अपने उत्तराखंड की कला को ना पाकर उनके मन मे एक टिस उठने लगनी । जिसके बाद उन्होंने मधुबनी आर्ट को देखकर ऐपण आर्ट को दुनिया के सामने लाने का विचार किया। बचपन से ही दादी नानी के द्वारा ऐपण बनते देखने वाली अभिलाषा बचपन से ही इस कला के प्रति आकर्षित थी। जिसके बाद उन्होंने इस कला को और बेहतर तरीके से सीखने की ठानी और परिणाम आज हम सबके सामने है। आज अभिलाषा ऐपण की कला को नई पहचान दिलाने में सफल हो रही है। उन्होंने नौकरी छोड़ ऐपण के बैग, साड़ी, सूट ,दुप्पटा , शाल आदि बना सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।

अभिलाषा अलग अलग शहरों राज्यों व देश विदेशो में भी ऐपण की कला को पहचान दिलाने में सफल रही है। कुछ ही समय में उनकी कला को इतना पसंद किया जाने लगा की अलग अलग जगहों से उनकी बयाने प्रॉडक्ट की डिमांड आने लगी। उन्होंने न सिर्फ लुप्त होती संस्कृति को बचाया बल्कि बाजार में ऐपण की विक्रेता की सम्भावना को भी बढ़ाया।

तोरण से बनाई नही पहचान

उत्तराखंड की कला को अभिलाषा ने कुछ नए प्रोडक्ट के साथ ऐपण को बाजार में उतारा। बता दें कि अभिलाषा ने लद्दाख़ के तोरण मे उत्तराखंड की झलक डाली। बताते चले कि लदाख के तोरण से प्रेरणा लेकर अभिलाषा ने पहाड़ व हिन्दू प्रतीकों को शामिल कर तोरण बनाने की तरकीब निकाली। जब मार्किट में तरह तरह के तोरण अभिलाषा द्वारा निकाले गए तो उनके इस भिन्न काम को लोगो तक पहुँचने या यूं कहें कि लोगो को समझने में थोड़ा वक्त लगा।लेकिन कहते है ना जहां मेहनत होती है वहां सफलता एक न एक दिन जरूर मिलती है। ऐसा ही अभिलाषा के साथ हुआ। जब लोगो ने तोरण को हिन्दू प्रतीकों व अलग अलग डिजाइन के साथ देखा तो उन्होंने अभिलाषा की इस पहल को स्वीकार कर बहुत सराहा। परिणामस्वरूप अभिलाषा की इस सोच और इस पहल को लोगो का प्यार मिलने लगा और धीरे धीरे मार्केट में उनके इस प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने लगे। अभिलाषा ने दरवाजे पर टांगने, गाड़ी पर लगाने से लेकर घर की साज सज्जा जैसे तोरण बनाये और मार्केट में उतारे। अभिलाषा से प्रेरणा लेकर आज कई लोग तोरण बनाना सीख रहे है। कहीं न कहीं अभिलाषा की इस पहल ने कई युवाओं व को रोजगार का अवसर भी दिया है। साथ ही यह भी साबित किया है कि जहां चाह वहां राह खुद ब खुद बन जाती है।

आज अभिलाषा के प्रोडक्ट्स को बहुत वाहवाही व सराहा जा रहा है। उनकी एक पहल ने ऐपण व तोरण को अलग पहचान दी है। आज उनके बनाई साड़ियां, तोरण व अन्य सामग्रियों की मार्किट में बहुत डिमांड चल रही है। अभिलाषा उन महिलाओं के लिए उम्मीद की भांति सामने आई जो अपने हुनर के दम पर आगे बढ़ने का हौसला रखती है। अभिलाषा के इस काम को काफी सराहना भी मिली। साथ ही कई पुरस्कार व सम्मानो से भी उन्हें नवाजा गया है।

अभिलाषा ने न केवल ऐपण व तोरण को नई पहचान दिलाई। बल्कि उत्तराखंड की बेटियां कहाँ तक पहुँच सकती है ये भी बतलाया। आज भी अभिलाषा ऐपण को लेकर नए नए प्रयोग करती है और साथ ही बाकी लोगो को भी अपनी संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है।

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