उत्तराखंड की खूबसूरती उत्तराखंड के पहाड़, जंगल, नदियां और यहां की संस्कृति, विरासत और तीर्थ स्थलों से मानी जाती है। यहां के पहाड़ो की ठंडी ठंडी हवा नई ताज़गी का एहसास करवाती है। कई लोग पहाड़ के इस सौंदर्य और ताज़गी भरी हवा को पाने पहाड़ पहुँचते है।
जल, जंगल, पहाड को संजोने के लिए अपना जीवन समर्पित कर अनूठी मिशाल पेश कर रहे है नैनीताल के चन्दन नयाल।
उत्तराखंड की खूबसूरती उत्तराखंड के पहाड़, जंगल, नदियां और यहां की संस्कृति, विरासत और तीर्थ स्थलों से मानी जाती है। यहां के पहाड़ो की ठंडी ठंडी हवा नई ताज़गी का एहसास करवाती है। कई लोग पहाड़ के इस सौंदर्य और ताज़गी भरी हवा को पाने पहाड़ पहुँचते है। सभी प्रकृति से ताज़गी, शुद्धता तो चाहते है, लेकिन क्या आप इस प्रकृति के सरक्षंण हेतु खुद को पर्यावरण प्रेमी बना सकते है? शायद नही, पूर्ण रूप से कोई भी खुद को पर्यावरण के प्रति न्यौछावर नही कर सकता। लेकिन इस असम्भव को सम्भव कर दिखाया पहाड़ के बेटे चन्दन नयाल ने।
नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक के नाइ गाँव के रहने वाले चन्दन नयाल अपने आसपास के गांवो में पेड़ लगाने की मुहीम शुरू की है।और अब नजदीकी गाँव की सभी लोग चन्दन की इस बेमिसाल मुहीम में शामिल हो चुके है।
बता दें कि चन्दन की स्कूली शिक्षा नैनीताल और हल्द्वानी से हुई। जब स्कूल की छुट्टियों के दौरान (विशेषकर गर्मियों में) घर जाते थे। गांव के आसपास पूरे क्षेत्र में चीड़ का जंगल था, जिसमें गर्मियों में आग लगती थी। सभी गांव वाले आग बुझाने जाते थे। ये सिलसिला काफी सालों तक चला। पाॅलिटेक्निक का डिप्लोमा लेने के दौरान भी जब वह गांव आते तो आग ही बुझाते थे। ऐसे में उन्हें बहुत बुरा लगता था। तब उन्होंने पर्यावरण का संरक्षण कर पहाड़ों को बचाने की ठानी।
माँ की मौत ने प्रकृति से ज्यादा जोड़ा।
किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले चन्दन जल, जंगल और पहाड़ से ज्यादा जुड़े हुए थे। चन्दन कहते है कि अपनी किशोरावस्था के दौरान, मैं पेड़ लगाने और क्षेत्र की पारिस्थितिकी को समझने जैसी प्रकृति संरक्षण गतिविधियों में शामिल हो गया। मैंने सीखा कि जंगल की आग भी वनों की कटाई का कारण बनती है, और जंगलों के प्राकृतिक पुनर्जनन की अनुमति देना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, भूविज्ञान के मूल निवासी अधिक ओक और देवदार के पेड़ों की जरूरत है, ”वह द बेटर इंडिया को बताता है।लेकिन 2010 में लंबी बीमारी के कारण चंदन ने अपनी मां को खो दिया था। जिसके बाद मन की शांति पाने के लिए मैं अक्सर पेड़ो की छाया में बैठ जाया करता। पेड़ो के नीचे बैठ मुझे शुकुन मिलता। जिसके चलते वन सरंक्षण की प्रतिक्रियों में मैं और अधिक शामिल होने लगा।
नौकरी छोड़ पर्यावरण के प्रति हुए समर्पित
नौकरी के चलते चंदन पर्यावरण के प्रति काम तो करते किंतु ज्यादा समय न मिलने के कारण वो बंधा सा महसूस करते। जब गांव वालों ने उनकी इस मुहिम पर सवाल उठाया तो चंदन ने अपनी मुहिम की खातिर या यूं कहें कि पर्यावरण के प्रति अपने इस जुनून के चलते उन्होंने 2016 में अपनी लेक्चरर की नौकरी छोड़ दी और क्षेत्र के जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए 12,000 से अधिक पेड़ लगाने के लिए घर लौट आए। उन्होंने जल संरक्षण गतिविधियों को भी हाथ में लिया। उन्होंने शोध के माध्यम से यह भी पाया कि 30% जल स्रोत और धाराएँ सूख गई हैं। चंदन कहते हैं, “लॉकडाउन के दौरान, हमने वन क्षेत्र में पानी के तालाब बनाए और कुछ सूखे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया।”
चन्दन ने छोटी छोटी चाल खाल , खंतीयो का निर्माण किया गया दूसरी ओर बड़े सूखे तलाबों 8000 से 30,000 लीटर जल धारण क्षमता के भी बनाये गये , ये सभी छोटे बड़े निर्माण वर्षा जल से लबालब भर गए है । इन्हें बनाते समय जल स्रोतों के कैचमेंट एरिया का ध्यान रखा गया है जिससे जल स्रोतों में पानी मात्रा बढ़ सके। साथ ही बांज के 100 पौधे भी रोपित किए गए हैं जो चन्दन नयाल ने अपनी ही नर्सरी में तैयार किए। बता दें कि जल संरक्षण के लिए काम करने के लिए पर्यावरण प्रेमी चंदन सिंह नयाल को जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार ने सम्मानित किया है। उन्हें फरवरी माह के वाटर हीरो का अवार्ड दिया है।
पर्यावरण प्रेमी चंदन ने बिना धन के भी प्रकृति को संजोए रखने में अहम भूमिका निभाई है। चंदन कहते है कि धन का होना आवश्यक है लेकिन मैं अपने इस काम और इस मुहिम से संतुष्ट हूँ। चंदन न सिर्फ पर्यावरण हमारे जल, जंगल, पहाड़ को संजोने का काम कर रहे है बल्कि लोगो को जागरूक करने का काम भी कर रहे है।
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