डीआरडीओ निदेशक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जनरल अनिल चौहान ने उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रदर्शन, सुधार, परिवर्तन, जानकारी और अनुरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति परिवर्तनशील है और राष्ट्रीय रणनीति का लक्ष्य बदलावों को इस तरीके से आत्मसात करना होना चाहिए ताकि चुनौतियों का सामना किया जा सके और अवसरों का लाभ उठाया जा सके।
नई दिल्ली में डीआरडीओ के वार्षिक कार्यक्रम, डीआरडीओ निदेशक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जनरल अनिल चौहान ने उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रदर्शन, सुधार, परिवर्तन, जानकारी और अनुरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया।
“युद्धक्षेत्र के अनुरूप तैयारी से उभरती प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं” का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी और रणनीति में श्रेष्ठता समय की मांग है और भारतीय सशस्त्र बल नई प्रौद्योगिकियों में निवेश कर रहे हैं। संयुक्तता, एकीकरण और युद्धक्षेत्र के अनुरूप तैयारी के सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए जनरल अनिल चौहान ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में युद्धक्षेत्र के अनुरूप तैयारी की अवधारणा एक मौलिक परिवर्तन है, जो शुरु की जाने वाली है।
जनरल अनिल चौहान ने कहा, “यह आज़ादी के बाद किए गए दूरगामी प्रभावों वाले सबसे महत्वाकांक्षी परिवर्तनों में से एक है। संयुक्तता और एकीकरण की दिशा में उठाए जाने वाले सही कदमों पर, इस यात्रा की शुरुआत निर्भर करती है। युद्धक्षेत्र के अनुरूप तैयारी में संघर्ष के पूरे परिदृश्य पर प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए तीनों सेवाओं वाले युद्धक्षेत्र विशिष्ट संरचनाओं का निर्माण शामिल है।”
सीडीएस ने कहा, भौतिक डोमेन में एकीकरण का उद्देश्य गुणात्मक प्रभाव प्राप्त करना है क्योंकि यह युद्ध लड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए एकीकृत प्रक्रियाओं और संरचनाओं के माध्यम से सेवाओं की विशिष्ट क्षमताओं को संयोजित करता है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने अपने उद्घाटन भाषण में युद्ध की प्रकृति में होने वाले बदलावों और उनमें शामिल गंभीरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया के लक्ष्य के अनुरूप सुधार और बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया।
जनरल चौहान ने डीआरडीओ की प्रणालियों और उप-प्रणालियों की दूसरी सूची जारी की, ताकि आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप उद्योग जगत इनका डिजाइन, विकास और निर्माण कर सकें। डीआरडीओ की यह दूसरी सूची, पहले जारी की गई 108 वस्तुओं की सूची का अगला क्रम है।
उन्होंने “उत्पादन समन्वय के लिए डीआरडीओ दिशा-निर्देश“ भी जारी किए, जो डीआरडीओ द्वारा विकसित सैन्य उपकरणों/प्लेटफार्मों/प्रणालियों के उत्पादन से जुड़े मुद्दों के उत्पादन समन्वय और समाधान की रूपरेखा तैयार करते हैं।
दिशा-निर्देश डिजाइनरों, उपयोगकर्ताओं, उत्पादन एजेंसियों, गुणवत्ता एजेंसियों और अन्य हितधारकों को शामिल करके इन प्रणालियों के उत्पादन से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए दो स्तरीय व्यवस्था प्रस्तुत करते हैं। यह पहल भारतीय रक्षा उद्योग के लिए आत्मनिर्भर भारत की दिशा में रक्षा प्रौद्योगिकियों/प्रणालियों को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
विभिन्न चिंतन शिविर बैठकों और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा इनके परिणामों की समीक्षा के बाद इस दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इसमें डीआरडीओ के शीर्ष अधिकारी भाग ले रहे हैं, जिनमें विभिन्न प्रौद्योगिकी के साथ-साथ कॉर्पोरेट कंपनियों के निदेशक, डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के निदेशक, डीआरडीओ मुख्यालयों के निदेशक और एकीकृत वित्तीय सलाहकार (आईएफए) शामिल हैं।
इसके छह तकनीकी सत्रों में “नई सरकारी नीतियों और उभरते परिदृश्यों के मद्देनजर डीआरडीओ की भूमिका को फिर से परिभाषित करना“ विषय के अनुरूप विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। प्रत्येक सत्र के बाद, एक पैनल चर्चा आयोजित की जाएगी।
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