सनातन और चार्वाक दर्शन….

सनातन और चार्वाक दर्शन….

जिस प्रकार आस्तिक दर्शनों में शैव (शंकर) दर्शन प्रमुख है उसी तरह नास्तिक दर्शनों में चार्वाक दर्शन है जो ईश्वर नाम की किसी वस्तु को संसार में नहीं मानता। इस प्रकार चार्वाक दर्शन मात्र शरीर केंद्रित होकर समस्त अलौकिक एवम पारलौकिक तत्वों से स्वयं को दूर कर नास्तिकता की परिकाष्ठा तक पहुंच जाता है जहां धर्म, अधर्म सब बराबर हो जाते हैं।

यावत जीवेत सुखं जीवेत, ऋणम कृत्वा घृतम पीबेत/भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनम कुतः।।
(अर्थात जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज करके भी घी पियो। शरीर के भस्म हो जाने के बाद फिर वह वापस थोड़ी ही आता है.. (चार्वाक दर्शन)।

सर्वप्रथम भारतीय मनीषियों की उदारता इस बात से ही सिद्ध हो जाती है कि एक विरोधी विचारधारा को भी ‘दर्शन’ का स्थान दिया गया।

क्योंकि इस चर्चित श्लोक में कर्ज लेकर भी घी पीने की बात कही गई है और अच्छे, बुरे कर्म करने का कोई भय नहीं है क्योंकि शरीर के भस्म होने के बाद वह वापस नहीं आएगा इसलिए जैसे भी कर्म कर लो, बस तुम्हें सुख और आनंद मिलना चाहिए। पाप करो या पुण्य आगे की कोई चिंता नहीं..।

उल्लेखनीय है कि चार्वाक (युधिष्ठिर का समकालीन) वैदिक जमाने में एक दार्शनिक था जो कालांतर के आदि गुरु शंकराचार्य के दर्शन (ब्रह्म सत्यं जगनमिथ्या) के विपरीत ‘जगत सत्यं, ब्रह्म मिथ्या’ पर विश्वास करता था। वह पूर्वजन्म, पाप-पुण्य में विश्वास नहीं करता था। वैसे चार्वाक ब्राह्मण ग्रंथों में एक काल्पनिक पात्र भी कहा जाता है जिसके अस्तित्व का कोई सबूत नहीं मिलता, न कोई ग्रंथ आदि।

चार्वाक दर्शन एक प्राचीन भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है जो मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है। खाओ-पियो-मौज करो का सिद्धांत। चार्वाक जो ईश्वर की कल्पना को अनावश्यक कल्पना मानता है। न स्वर्ग – नर्क, न पुनर्जन्म और न ही कर्मवाद, अधिकतम सुख प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य।

जिस प्रकार आस्तिक दर्शनों में शैव (शंकर) दर्शन प्रमुख है उसी तरह नास्तिक दर्शनों में चार्वाक दर्शन है जो ईश्वर नाम की किसी वस्तु को संसार में नहीं मानता। इस प्रकार चार्वाक दर्शन मात्र शरीर केंद्रित होकर समस्त अलौकिक एवम पारलौकिक तत्वों से स्वयं को दूर कर नास्तिकता की परिकाष्ठा तक पहुंच जाता है जहां धर्म, अधर्म सब बराबर हो जाते हैं।

यही कारण है कि इस मत के लोग नितांत निरंकुश होकर वेद सम्मत सभी मान्यताओं का रोचक शब्दों में पिरोकर खंडन करते हुए नजर आते हैं, ईश्वर की कल्पना को अनावश्यक कल्पना, कर्मकांड को व्यर्थ उपक्रम और स्वर्ग, नर्क को मात्र कल्पना मानते हैं।

किंतु यह जानना महत्वपूर्ण भी है कि नास्तिक होने पर भी जन्म, मृत्यु, विवाह आदि जैसे आयोजनों पर खुलेआम या चोरी-छिपे ही सही कर्मकांड करवा ही लेते हैं, इसलिए अपनी बात पर अडिग और स्पष्टवादी भी नहीं कहे जा सकते। बात तो तब है जब यह हिंदू धर्म से जुड़े सारे कर्मकांड छोड़ दें, हिंदू नाम रखना छोड़ दें।

आज चार्वाक और अन्य उसी सोच की विचारधाराएं आपस में मिलकर सनातन के विरुद्ध एकजुट हो रही हैं। एक ईमानदार शासक व शासन को घेरने के लिए विचारों में मतभेद होते हुए भी सब एकजुट हो रहे हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि यह सब हिन्दू धर्म से ही निकले हैं। हिन्दू धर्म से ही जुड़े इनके नाम और इनके परिवारजनों के नाम हैं। आज सनातन धर्म का यह विरोध कर रहे हैं आगे हिन्दू धर्म से जुड़े और भी विषयों को लेकर यह सब आपस में एकजुट हो जायेंगे। इसलिए हाल में जगद्गुरु रामभद्राचार्य (तुलसी पीठाधीश्वर) का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य है कि अगला चुनाव ‘धर्म और अधर्म’ के बीच होगा।

जिस प्रकार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि के सनातन पर कहे गए विचार के बाद देश में सनातन पर चर्चाएं और विवाद दोनों ही ज़ोर पर हैं। एक सनातनी और ग्रंथकार होने के नाते इस महत्वपूर्ण विषय पर मैंने भी अपने विचार रखने का स्पष्ट प्रयास किया है।

चार्वाक जैसे दर्शन को जान लेने के बाद सनातन की बात करे तो सनातन धर्म का अर्थ है शाश्वत या सदा रहने वाला धर्म, जिसे हिंदू धर्म, वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना गया है जो बहुईश्वरवादी धर्म तथा भारत का सबसे बड़ा धर्म है। सत्य के मार्ग को बताने वाला, बहुत उदारवादी धर्म ही सनातन धर्म, हिन्दू धर्म है। सिक्ख, बौद्ध, जैन धर्मावलंबी भी सनातन धर्म का ही हिस्सा हैं।

प्राचीनकाल में भारतीय सनातन धर्म में पांच संप्रदाय गाणपत (गणपति), शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर (सूर्य) रहे। बाद में चार्वाक भी इसमें शामिल हुआ। जो अभी लुप्तप्राय है, किंतु जिसके अन्य विचारधाराओं के साथ मिले हुए अनुयायी आज भी समाज में व्याप्त हैं। जिनकी कोई स्पष्ट नीति, सिद्धांत नहीं है, कोई धर्म-अधर्म के कार्य उनके लिए मायने नहीं रखते।

सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत (भारतीय उप महाद्वीप) तक व्याप्त रहा। मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप तप, यम नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है।

इस धर्म में ईमानदारी, परोपकार, सभी प्राणी मात्र के प्रति सहृदय रहना, पवित्रता, धैर्य, सद्भावना, सहनशीलता, आत्मसंयम, उदारता आदि जैसे तमाम गुण शामिल हैं। इतनी खूबियों वाले सनातन धर्म को आगे ले जाने वाले हम इसके संवाहक हैं। हमें गर्व है अपने सनातन धर्म और संस्कृति पर। वह भी बिना डरे और बिना झुके…।

डॉ. हेमा उनियाल

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