भांग उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की पारंपरिक धरोहर रही है। वेदों में इस पौंधे के तत्वों का विभिन्न प्रकार के कार्यो में उपयोग किए जाने का वर्णन है। पारंपरिक खानपान व औषध में यह बहुत उपयोगी रहा है। सब्जी, दूध, नमक, चटनी इत्यादि में लगभग उपयोग में लाया जाता रहा है। अंग्रेजी में इन प्रजातियों को रुडालिस, इंडिका व सतीबा नाम से जाना जाता है।
सी एम पपनैं
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में विगत कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन किया जाता रहा है। माह नवम्बर 2023 में 42वां मेला आयोजित किया गया था। देश के सभी राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेश और विश्व के 13 देशों के विभिन्न उत्पाद निर्माताओं द्वारा आयोजित व्यापार मेले में शिरकत कर अपने देश-प्रदेश के छोटे-बड़े प्रमुख उत्पादों की प्रदर्शनी लगा कर निर्मित उत्पादों की न सिर्फ बिक्री की गई, उक्त उत्पादों की गुणवत्ता के बावत भी आम दर्शकों को अवगत कराया गया।
आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में लगभग वही उत्पाद प्रदर्षित होते देखे जाते रहे हैं जो विगत कई दशकों से प्रदर्शित होते रहे हैं। आयोजित 42वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में ‘उत्तराखंड व्यापार मंडप’ में कुछ नए उत्पाद ’न्योली इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ के माध्यम से पहली बार प्रदर्शित किए गए थे जो बाजार व्यवसाय की दृष्टी से एकदम नए व व्यावसायिक जगत में कुछ उम्मीद जगाते नजर आ रहे थे। इन नए उत्पादों में भांग दाना तेल (दर्द रोधक), व्यूटी स्किन केयर तेल (त्वचा संबंधी) तथा भांग खाना तेल मुख्य थे। हिंदुस्तान में नई टेक्नोलॉजी को इजात कर उक्त उत्पादों को पहली बार परिचय कराने व बाजार में उतारने का काम परिवर्धन डांगी पुत्र चंदन डांगी, ग्राम खैकट्टा (तीखुन कोट), डांगी खोला (मजखाली, रानीखेत) जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड द्वारा किया गया है।
उक्त उत्पाद निर्माता परिवर्धन डांगी की बेसिक शिक्षा राय स्कूल लोधी रोड नई दिल्ली, इंजीनियरिंग (मैकेनिकल) जी एल बजाज गौतम बुद्ध युनिवर्सिटी, मास्टर इन डिजाइन गांधीनगर गुजरात से हुई है। गुजरात के पुणे शहर में गोल्ड ज्वैलरी पर प्रिंटिंग का काम करने के दौरान इस शिक्षित व जागरूक युवा को उक्त शहर के आईएनडी में लगी एक प्रदर्शनी में भांग पौंधे के रेशे से बना कपड़ा देख दिमांग ठनक, ध्यान अपने उत्तराखंड के मूल गांव खैकट्टा (तीखुन कोट), डांगी खोला जिला अल्मोड़ा की बन्जर जमींन में लावारिस खड़े भांग के पौंधों की ओर गया, जिन्हें अक्सर गांव के लोग उखाड़ कर फैक देते हैं, सूख जाने पर आग लगा कर जला देते हैं।
उक्त प्रदर्शनी में भांग पौधा जिसे ‘कैनाबिस इंडिका’ के नाम से जाना जाता है उक्त पौंधे के रेशे से बने कपड़े से प्रेरित होकर परिवर्धन डांगी ने एक वर्ष तक पुणे में गोल्ड ज्वैलरी पर प्रिंटिंग कार्य करने के बाद पुणे से दिल्ली शिफ्ट होकर भांग पर डिजाइन वर्क शुरू करने का काम किया, उस पर 2016 से 2019 तक शोध कार्य कर जाना, भांग का पौंधा करिश्माई है, इसका उपयोग बहुत है। इस पौंधे से पचास हजार से ज्यादा उत्पाद बनाए जा सकते हैं।
इस युवा ने यह भी जाना, इंसान की पहली जरूरत भांग पौंधा पूर्ति करता है। रोटी, कपड़ा और मकान देता है। इसका बीज खाने के काम में, छाल कपड़ा बनाने तथा लक्कड मकान बनाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। यह ऐसा पौंधा है जिसे पानी कम, बंदर, सुअर से निजात मिलती है। देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। कहीं भी उगाया जा सकता है। सबकी पूर्ती कर रहा है। इस पौंधे का विभिन्न प्रकार से दोहन कर उत्पाद ईजाद कर रोजगार के साधन बढ़ाए जा सकते हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने का अच्छा साधन है। देश को इसकी सख्त जरूरत है।
भांग पौंधे के सैंकड़ों लाभ जान उत्पाद निर्माता परिवर्धन डांगी को धुन चढ़ी थी अपने अंचल के मूल गांव में कार्य कर एक अलख जगा, ग्रामीणों की आय बढ़ाने व रोजगार पैदा करने की। इस युवा ने बाल्यकाल में देखा था उसके दादा गोबिंद सिंह डांगी गांव के कास्तकारों के कृषाण थे, किसी को चोट-पटक लग जाने पर भांग से निर्मित पदार्थ का प्रयोग उस घाव पर करते थे, इसी प्रकार कई अन्य प्रकार के प्रेरक कार्य भी उन्हें करते हुए देखा था। दादा के गुरों को याद कर, उनसे सीख ले, विश्वास पूर्वक कदम आगे बढ़ाने के हौसले ने इस शिक्षित युवा को एक नई दिशा देने का कार्य किया। 2017-2018 में एक जुनून के साथ इस सिद्धहस्त युवा ने पूर्णरूप से अपनी चाहत को आगे बढ़ाया। भारतीय प्रबंध संस्थान काशीपुर में एक योजना के तहत भारत सरकार किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 2019 में भांग से निर्मित किए जाने वाले उत्पादों को चुन कर अपनी राह को आगे बढाना शुरू किया।
निर्मित भांग उत्पादों के नमूने पास करवाने हेतु उन्हें 2019 में भारत सरकार द्वारा नियंत्रित विभाग, भारतीय खाद्द्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई) के पास भेजा गया जो 2021 में संबन्धित विभाग से पास होकर आया। इस प्रकार परिवर्धन डांगी द्वारा स्थापित कंपनी के अथक प्रयास के बाद 2021 में भांग निर्मित उत्पादों को संबन्धित मानक प्राधिकरण द्वारा मान्यता प्राप्त हुई। भांग से निर्मित उत्पादों का परिचय कराने व मार्किट बनाने में परिवर्धन डांगी की कंपनी ’न्योली इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ का बड़ा योगदान रहा। भांग निर्मित उत्पादों को मान्यता मिलते ही कई अन्य कम्पनियां उक्त उत्पादों की खुलने लगी, जिसका श्रेय उत्तराखंड के इस युवा को दिया जा सकता है।
शुरुआती दिनों में परिवर्धन डांगी द्वारा उत्तराखंड रानीखेत के नजदीकी गांवों रिउनी, द्व्वारसौं, खाती, बबुरखोला, गोगिना, तुस्यारी, शीतलाखेत, एडीघो, दूनागिरी। बागेश्वर बैल्ट के गांवों कपकोट, झूनी, खलझूनी, लोहारखेत, बोगीना, मुनस्यारी गढ़वाल अंचल के ग्वालदम व देवाल के भीतरी गांवों की बेल्ट में जाकर भांग की खेती व उसके उत्पादों पर गहन अद्धययन मनन किया तथा उक्त गांवों के घरों से पच्चीस रुपया किलो भांग बीज क्रय कर इकठ्ठा किया। साथ ही भांग पौंधे के रेशों (छाल) की भी खरीदारी करी। भांग बीज जिसकी उक्त गांवों में कोई कीमत नहीं थी, बाजार भाव नहीं था। बाद के वर्षो में भांग बीज का महत्व जान ग्रामीणों द्वारा उक्त बीज संग्रहण पर रुचि लेनी आरंभ की गई। जिसका बाजार भाव चंद वर्षो में ही 150 रुपया किलो गांव से खरीद पर तथा हल्द्वानी में बाजार भाव चार सौ व प्रगति मैदान मेला दिल्ली में पांच सौ, छह सौ रुपया किलो के भाव बिकता हुआ देखा गया। भांग दाने इत्यादि का भाव गेहूं, धान व दालों के भावों को पछाड़ कई गुना बढ़ा हुआ देखा जा सकता है।
परिवर्धन डांगी के मुताबिक उनके द्वारा भांग दाने से निर्मित उत्पाद देश के बाजार में नए उत्पाद हैं। लोगों की धारणा बनी हुई है भांग गलत नशा है, जो धारणा गलत है। भांग बीजों में कोई नशा नहीं होता है। उनकी कंपनी के भविष्य के भांग दाने से निर्मित उत्पादों में दूध, पनीर, चाकलेट, ब्रेड, केक के साथ-साथ शैम्पू, क्रीम, सीरम, माइस्चराइजर, उड क्रीम, हैंड क्रीम, लोशंस, फेस वाश इत्यादि इत्यादि मुख्य होंगे जो देश में पहली बार जनमानस के मध्य परिचित होंगे।
भांग उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की पारंपरिक धरोहर रही है। वेदों में इस पौंधे के तत्वों का विभिन्न प्रकार के कार्यो में उपयोग किए जाने का वर्णन है। पारंपरिक खानपान व औषध में यह बहुत उपयोगी रहा है। सब्जी, दूध, नमक, चटनी इत्यादि में लगभग उपयोग में लाया जाता रहा है। भांग की अनेकों प्रजातियां हैं, जिन्हें उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में विभिन्न नामों से जाना जाता है। बण भांग, जंगली भांग, गनरा भांग। अंग्रेजी में इन प्रजातियों को रुडालिस, इंडिका व सतीबा नाम से जाना जाता है।
भांग पौंधे की अधिकतम ऊचाई बारह फुट से अठारह फुट तक आंकी जा सकती है। इंडिका प्रजाति का भांग पौंधा चौड़ी पत्ती वाला होता है जिसमें नशा ज्यादा होता है, मेडीकल लाइन में दवाईयां बनाने के लिए ज्यादा उपयुक्त है। रुडालिस प्रजाति मध्यम ऊचाई वाला पौंधा है। भांग पौंधे की अलग-अलग प्रजातियों का अलग-अलग महत्व व गुण हैं। उत्तराखंड में सतीबा की प्रजाति ज्यादा उत्पादित होती है। उक्त प्रजातियों में नर पौंधा कम रेशेदार होता है जिसे भंगेला नाम से जाना जाता है। बीज और नशीले पदार्थ का उत्पादन मादा पौंधे से ही होता है। छोटी पत्ती वाले भांग पौंधे की प्रजाति में रेशा ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिए बहुत उपयुक्त है।
समग्र रूप में भांग का इस्तेमाल खानपान, स्वास्थ, दवाइयों और हल्के नशे के लिए किया जाता रहा है। औषधीय प्रयोजन के लिए भांग को ज्यादा महत्व दिया जाता है। कैंसर जैसी कई बीमारियों में यह इस्तेमाल योग्य है। भांग का सबसे बड़ा उपयोग कुपोषण को दूर करने के लिए किया जाता है। भांग के तेल में हाई प्रोटीन के साथ-साथ ओमेगा 3 व ओमेगा 6 पाया जाता है। भांग पौंधे की अहमियत को पहचान ईस्ट इंडिया कंपनी ने भांग उत्पादों के व्यवसाय को कुमांऊ में शासन स्थापित होने से पहले ही अपने हाथों में ले लिया था।
उत्तराखंड की खाली पड़ी भूमि में यह स्वभाविक रूप से उग जाता है। नम जगह भांग पौंधों के लिए अनुकूल होती है। मिट्टी पर इसकी ग्रोथ डिपेन्ड करती है। वातावरण के हिसाब से कुदरतन भांग बीज के गुण बदल जाते हैं। इसकी दांती प्रजाति में बड़ा भांग दाना प्राप्त होता है जिसे काशत्कार बचा कर बीज के लिए इस्तेमाल करते हैं। खांटी प्रजाति जंगली प्रजाति है, जिसमें छोटा भांग दाना प्राप्त होता है। भांग दाने का महत्व जान काशत्कार अब प्रतिवर्ष भांग पौंधे की उत्तम प्रजाति की पैदावार की ओर अपने कदम बढ़ाता नजर आता है।
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल की कपकोट व पिंडारी बैल्ट में भांग का मोटा दाना मिलता है। यहां के भांग दाने से निकाले गए तेल के रंग में भी अंतर होता है। दसोली, गंगोली और दानपुर में निवासरत कुछ जातियां भांग रेशे से कंबल और कुथले का निर्माण करती हैं। आमतौर पर भांग के रेशों से गाजी, बोरा, कोथला और पुलों के लिए रस्सी का निर्माण भी किया जाता है। अंग्रेज अपने जहाजों की रस्सी व कपड़ा भांग रेसे से बनवा कर अपने देश ले जाते थे। भांग से बनाए कपड़ों का महत्व उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल की लोक कलाओं में भी बहुतायत में देखने को मिलता रहा है। गढ़वाल अंचल के चांदपुर क्षेत्र को भांग पौंधों का घर भी कहा जाता है।
अंग्रेजों द्वारा सोचा गया था भांग नशा देता है। उन्होंने भांग पौंधे के उत्पादों को नशे से जोड़ मादक पदार्थ में डालकर प्रतिबंध लगाने का काम किया था। बाद के वर्षो में दवाब बना कर वैश्विक फलक पर भांग पर प्रतिबंध लगा। भारत में भांग की खेती करने के लिए काश्तकारों को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एन.डी.पी.एस) एक्ट, 1985 के तहत सरकार से लाइसेंस लेना होता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक एकड़ में भांग की खेतों से लाखों रुपयों की आमदनी होती है। भारत में इसकी पत्तियों व बीजों के न्यूट्रिशनल इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
भांग पौंधों के फल और फूल वाला हिस्सा अवैध घोषित किया गया है। इसमें दो से दस फीसद तक की मात्रा में टीएचसी पाई जा सकती है। भांग की शाखा और पत्तों पर जमे राल को चरस कहते हैं। गांजा और चरस भांग पौंधें के इसी हिस्से से तैयार की जाती है, जिसे बार-बार लेने पर लत सी लग जाती है। साइंस की दुनिया में इसे ही लेकर सबसे ज्यादा शोध होते हैं। इस पौंधें के फल और फूल वाले हिस्से में कैमिकल कम्पाउंड होने के कारण इसकी खेती को व इससे जुड़े उत्पादों को वैश्विक फलक पर प्रतिबंधित किया गया था।
बाद के वर्षो में अमेरिका सहित विश्व की बडी अर्थ व्यवस्थाओं द्वारा भांग की खेती को लीगल घोषित कर पाबंदी हटा ली गई। भारत में भी वैकल्पिक फसल के रूप में कानूनी अनुमति की मांग की जा रही है। इस पौंधे पर हुए गहन शोध कार्यो के बाद भारत में इस पौंधें की पैदावार पर बने नियमों में ढील दी गई। भारत में तीन बार 1999, 2001 और 2014 में इससे जुड़े नियमों में तीन बदलाव किए गए। उक्त बदलावों के बाद भी भारत में इसके कई उत्पादों पर कड़े कानून हैं। औद्योगिक और गैर मादक उपयोग के लिए भांग की खेती शुरू करने के लिए सभी पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है।
भांग का बीज यूरोप व अमेरिकी देशों द्वारा उत्तराखंड से अपने देश ले जाकर तकनीक व शोध कार्यो के बल भांग पौंधों व इसके दानों से हजारों उत्पाद बना कर करोड़ो-अरबों का कारोबार कर आर्थिक उन्नति की गई है। विश्व के अनेकों देशों ने उक्त बीजों को अपना उत्पाद बनाकर पेटेंट बनाया है। उन देशों की व्यवसायिक चाहत रही है भारतीय काश्तकार उनके बीजों को खरीदे। भांग बीज अलग-अलग प्रकार का होता है। अमेरिका सहित अन्य अनेकों देश बंद कमरों व आर्टिफिसियल लाइट में भांग के पौंधों की पैदावार कर रहे हैं। इसके तने और जड़ों का इस्तेमाल इंडस्ट्रीयल यूज में कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं।
हमारे देश के नीति निर्माताओं द्वारा भी भांग पौंधों द्वारा निर्मित उत्पादों पर नीति नियोजन कर देर सवेर कदम जरूर बढ़ाया है। कुछ नियमों को काश्तकारों व उत्पाद निर्माताओं के हित में उदार भी बनाया गया है। लेकिन उत्पादित उत्पादों पर ठोस नीति बननी अभी बाकी है। उत्तराखंड सरकार द्वारा भी वर्ष 2016 में इस पौधे से बने उत्पादों व उत्पादन कर्ताओं को प्रोत्साहन देने हेतु नीति नियोजन किया गया था। भविष्य में जल्दी ही हित धारकों व देश-प्रदेश की अर्थ व्यवस्था को बढ़ाने के लिए नई पालिसी आने की उम्मीद जताई जा रही है।
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