हर्बल रंगों के साथ खेलें होली, ऋषिकेश की ईशा चौहान दे रहीं हैं महिलाओं को हर्बल रंग बनाने का प्रशिक्षण

हर्बल रंगों के साथ खेलें होली, ऋषिकेश की ईशा चौहान दे रहीं हैं महिलाओं को हर्बल रंग बनाने का प्रशिक्षण

विगत वर्षों की भांति इस बार खदरी श्यामपुर में ईशा कलूडा चौहान के द्वारा हर्बल होली के रंग के साथ, गाय के गोबर से निर्मित गोमय रंगों के साथ गुलाल बनाना सिखा रही हैं।

ईशा चौहान द्वारा कई समूह की महिलाओं के साथ स्थानीय महिलाओं को इन रंगों के बारे में उनकी शुद्धता व गुणवत्ता को कैसे बनाए रखना है उसके बारे में बताया गया। उनके द्वारा अभी तक 6 ग्राम संगठन 15 समूह को हर्बल बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण दिया गया है और हरिपुर, श्यामपुर, खदरी, गड़ी मयचक के समूह व संगठन के लोग इन रंगों को बनाकर अपनी आजीविका का संवर्धन कर रहे हैं। जिसके लिए महिलाओं को सशक्त कर रोजगार से जोड़ने हेतु उत्तराखंड के राज्यपाल द्वारा सम्मानित भी किया गया चुका है।

अभी वर्तमान में नारी शक्ति महोत्सव देहरादून 2024 में उनके द्वारा उत्तराखंड मुख्यमंत्री के समक्ष रिंगाल के प्रोडक्ट बनाने का लाइव प्रसारण भी दिया गया है। जिसके लिए एनआरएलएम ब्लॉक डोईवाला द्वारा सक्रिय महिला के रूप में उन्हें सम्मानित भी किया गया।

ईशा चौहान भीमल, पीरुल हर्बल साबुन, मोमबत्ती, जूट के प्रोडक्ट, डिजाइनर राखियां, हर्बल होली के कलर, गाय के गोबर के प्रोडक्ट, आर्टिफिशियल फ्लावर ज्वैलरी, और रिंगाल से बने प्रोडक्ट पर काम कर रही है। उनका उद्देश्य है कि प्रत्येक व्यक्ति नेचुरल वस्तुओं पर काम कर सके जिससे प्रकृति के साथ समायोजन करके इको फ्रेंडली वस्तुओं का उत्पादन करके व उत्तराखंड की वस्तुओं को वैश्विक स्तर पर एक पहचान मिल सके। उन्होंने सरस्वती जन कल्याण संस्थान देहरादून के माध्यम से रिंगाल से बनी वस्तुओं को सीखा, उनसे जुड़कर महिलाएं रिंगाल पर काम कर रही है और स्वरोजगार से जुड़ रही है।

ईशा चौहान के साथ जुड़ी रुचि बंदोलिया का कहना है कि उनके साथ जुड़कर मैंने घर पर रहकर ही स्वरोजगार करके अपनी आजीविका को जोड़ा है। उन्होंने कहा है हर्बल रंग बनाने की प्रक्रिया थोड़ा महंगी और लंबी है वहीं दूसरी और गुलाल बनाने की प्रक्रिया बहुत आसान है आप अरारोट में नील या कपड़ों में डालने वाले उजाला को मिक्स करके आप गुलाल को बना सकते हैं लेकिन यह रंग हर्बल रंग की श्रेणी में नहीं आते हैं उनके द्वारा बनाए गए गोबर से निर्मित गोमय रंग होलिका दहन के लिए बहुत खरीदे जाते हैं जो इको फ्रेंडली होते हैं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं होती है, पिछले वर्ष उनके 20 किलो हर्बल होली के रंग कनाडा विदेश की धरती में भी पहुंच चुके हैं, लोग गणेश चतुर्दशी के लिए स्पेशल ऑर्डर पर उनसे रंगों को मंगवाते हैं वह कुछ नामी गिरामी विद्यालय हैं जो अपने स्कूल व स्टाफ के लिए उनके द्वारा रंगों को खरीदते हैं, जिससे उनसे जुड़ी हुई महिलाएं स्वरोजगार कर सके।

ईशा चौहान ने बताया कि इस बार ऋषिकेश एआईआईएमएस स्टाफ द्वारा बहुत अधिक मात्रा में रंगों की खरीदारी हुई। उनके पास पहले से ही रंगों की बुकिंग शुरू हो जाती है। ईशा चौहान ने बताया कि यह सब करना इतना आसान नहीं था।

इन कसौटी में खरा उतरने के लिए उन्होंने अपने कार्य में पारदर्शिता लाई, वस्तु की शुद्धता व गुणवत्ता पर काम किया। इस बार रुचि बंदोलिया, सोनिया बलोदी, ज्योति उनियाल, नंदिनी, दिव्या, सुमन रानी, रेखा, प्रियांशु चौहान ने तीन प्रकार के होली के रंग बनाने की इन बारीकियों को आसानी से सीखा।

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