मां पूर्णागिरि धाम मेले में पानी के लिए मचा हाहाकार

मां पूर्णागिरि धाम मेले में पानी के लिए मचा हाहाकार

चार दशक पहले तक मां पूर्णागिरि धाम के मुख्य मंदिर तक पहुंचने में टनकपुर से ही दो दिन लगते थे। पहले सड़क की कमी और अन्य सुविधाएं नहीं होने से देवी दरबार तक पहुंचने के लिए टनकपुर से पैदल आना होता था। तब सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्र में मुख्य रूप से तीर्थयात्री पहुंचते थे।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

समय की रफ्तार ने धर्म के स्वरूप को काफी बदला है। उत्तराखंड के प्रमुख धर्मस्थल मां पूर्णागिरि धाम की यात्रा के तरीके में भी बड़ा बदलाव आया है। सड़क व अन्य बेहतर सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण कभी टनकपुर से ही दो दिन में पूरी होने वाली मां पूर्णागिरि धाम की यात्रा अब महज कुछ घंटे में ही पूरी हो जाती है। लेकिन इस परिवर्तन और सुविधाओं के विस्तार के बीच आस्था के इस धाम में एक चीज नहीं बदली और वह है यहां मिलने वाली निशुल्क आवासीय व्यवस्था।

आज भी इस धाम में रात में ठहरने वाले श्रद्धालु को इसके लिए एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ता। देश के सुप्रसिद्ध मां पूर्णागिरि धाम का मेला चम्पावत जिले का सबसे बड़ा आध्यात्मिक धाम ही नहीं, बल्कि सबसे अधिक समय तक चलने के अलावा प्रदेश के सबसे बड़े कारोबारी मेलों में से एक है। इस धाम में धर्म तो है लेकिन अर्थ की चाह नहीं। हर वर्ष होली के बाद लगभग तीन माह के सरकारी मेला अवधि में 35 से 40 लाख के बीच देश के कोने-कोने व पड़ोसी देश नेपाल से श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। आस्था के इस मेले की सबसे बड़ी खूबी इसमें श्रद्धालुओं के लिए पुजारियों द्वारा की जाने वाली निशुल्क आवासीय व्यवस्था है। जमरानी सेलागाड़, भैरव मंदिर से मुख्य मंदिर तक के करीब 3 किलोमीटर क्षेत्र में श्रद्धालुओं को रहने के लिए किराये के रूप में एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ता है। पुजारी समाज की मेला क्षेत्र में करीब 250 दुकानें हैं। ज्यादातर दुकानें प्रसाद की है। इसके अलावा भोजन और अन्य दुकानें भी हैं।इन दुकानों में श्रद्धालुओं के लिए बिस्तर से लेकर ठहरने और स्नान व शौचालय की व्यवस्था पुजारी और व्यापारी करते हैं। मां पूर्णागिरि धाम की ये निशुल्क आवासीय व्यवस्था सदियों से चली आ रही है।

चार दशक पहले तक मां पूर्णागिरि धाम के मुख्य मंदिर तक पहुंचने में टनकपुर से ही दो दिन लगते थे। पहले सड़क की कमी और अन्य सुविधाएं नहीं होने से देवी दरबार तक पहुंचने के लिए टनकपुर से पैदल आना होता था। तब सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्र में मुख्य रूप से तीर्थयात्री पहुंचते थे। मां पूर्णागिरि धाम के पुजारियों का कहना है कि पूर्णागिरि के पुजारी समाज के लोग दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को यजमान मान रहने और खाने की व्यवस्था करते थे। तब से ये शुरू ये परंपरा आज भी जारी है। लेकिन इसमें उत्तराखंड में सदियों से लोगों की प्यास बुझाते प्राकृतिक जल स्रोत अब खुद प्यासे हो रहे हैं। पहाड़ों से निकलकर शहरों तक पहुंचने वाले स्वच्छ और निर्मल पानी को मानो किसी की नजर लग गई है। हालात ये हैं कि जल स्रोत सूखने लगे हैं। देश के कई राज्यों की प्यास बुझाने वाला उत्तराखंड अपने नागरिकों के गले ही तर नहीं कर पा रहा है।

उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र अपने आप में अकूत जल संपदा संजोए हुए है। प्राकृमतिक जल स्रोत, सदानीरा नदी तंत्र, गाड़़-गदेरे अमूल्य धरोहर को समेटे हुए हैं, जिनसे उत्तर भारत की अधिकतम पेयजल एवं सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति हेतु हाइड्रो प्रोजेक्ट से भरे पड़े इस क्षेत्र में इसके प्राकृतिक जल संपदा का कभी भी परोक्ष लाभ यहां के रैबासियों को नहीं मिल पाया है। पुराने समय से ही कहा जाता है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी यहां के काम नहीं आई है और कुछ एक अपवादों को छोड़कर यह बात सत्य भी है। वर्तमान परिदृश्य में हो स्थिति और भी खतरनाक हो रही है। ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं, नदी गाड़ गदेरों में पानी कम होता जा रहा है।

सरकारी तौर पर 26 मार्च से शुरू पूर्णागिरि धाम मेला 15 जून को संपन्न होगा। भीषण गर्मी और चढ़ते पारे से मेला क्षेत्र की व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं, खासकर बिजली और पानी की। तमाम दावों के बावजूद प्रशासन मेला क्षेत्र में इन असुविधाओं से निजात नहीं दिला पा रहा है। मेला क्षेत्र में पानी की किल्लत और बिजली की आंख-मिचौली सबसे ज्यादा सिरदर्द बन रहा है। पूर्णागिरि धाम के लिए पिछले साल ही चार करोड़ रुपये की पेयजल योजना बनी थी, लेकिन इतनी रकम खर्च होने के बाद भी पानी का संकट कम नहीं हुआ है। इस वक्त भैरव मंदिर से मुख्य मंदिर तक के 276 उपभोक्ताओं को रोज बमुश्किल एक घंटा पानी मिल पा रहा है। जल संस्थान इसकी वजह गर्मी में जल स्रोत में गिरावट बता रहा है। बताया जाता है कि कई जगह टंकी से कुछ लोगों को अतिरिक्त पानी देने से यह दिक्कत आ रही है। पानी के अलावा बिजली की किल्लत से भी मेला क्षेत्र जूझ रहा है। धाम के पुजारियों और मेले के दुकानदारों का कहना है कि पिछले कई दिनों से तपती गर्मी के बीच बिजली आपूर्ति एकदम अनियमित हो रही है।

बिजली की आंख-मिचौली और वोल्टेज मुसीबत बन रहा है। इससे श्रद्धालुओं को दुश्वारी होने के साथ ही कारोबार पर भी असर पड़ रहा है। इधर मां श्री पूर्णागिरि मंदिर समिति के अध्यक्ष का कहना है कि इन दिनों बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं, लेकिन पूर्णागिरि मेला क्षेत्र में पेयजल की जरूरत के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे मेला क्षेत्र की व्यवस्था और कारोबार दोनों पर असर पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए मंदिर समिति ने कारोबारियों को घोड़े-खच्चरों से पानी ढोने की सशर्त अनुमति देने का निर्णय लिया है। गर्मी और तपिश की वजह से जलकुनिया के स्रोत में 50 प्रतिशत पानी कम हुआ है। इस कारण पूर्णागिरि मेला क्षेत्र के 276 कनेक्शनधारियों को डेढ़ घंटे के बजाय एक घंटे ही पानी की आपूर्ति हो रही है। पेयजल वितरण में विसंगति रोकने के उपाय करने के साथ ही किसी भी तरह की अनियमितता को रोकने के लिए टंकी क्षेत्र में सुरक्षागत कारणों से सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

भीषण गर्मी होने के बाद भी इस समय देश के सुप्रसिद्ध मां पूर्णागिरि धाम मेले में श्रद्धालुओं की आवाजाही में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हर रोज 20 हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस समय मां पूर्णागिरि धाम में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इस समय मेला क्षेत्र में पानी की दिक्कत होने के कारण श्रद्धालुओं को भारी दिक्कतों से दो चार होना पड़ रहा है। पहाड़ के गांवों में सुविधाओं के साथ ही अब बूंद बूंद पानी का भी अकाल पड़ गया है। मूलभूत जरुरतों के लिए तरस रहे ग्रामीण अब पीने के पानी तक को मोहताज हो गए हैं। बारिश न होने प्राकृतिक जल स्रोत भी सूखते जा रहे हैं।

यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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