रोशनी का पर्व दीपावली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि यह जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास खत्म कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाई जाती है। रोशनी का पर्व दीपावली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि यह जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। दीपावली का पर्व 3300 वर्ष पूर्व से लगातार मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भी इस पर्व को मनाते थे। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास खत्म कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। उस दिन पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया था। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व बन गया। वहीं, पूर्वी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में माता लक्ष्मी के बजाए इस दिन काली मां की पूजा की जाती है।
भारत के कई हिस्सों में हिंदू दीपावली को नये साल की तरह देखते हैं। बौद्ध धर्म में भी दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध 17 साल बाद अपने अनुयायियों के साथ गृह नगर कपिल स्वस्तु लौटे थे। उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई गई थी। साथ ही भगवान बुद्ध ने ’अप्पो दीपो भव’ का उपदेश देकर दीपावली को एक नया आयाम दिया था। हिंदुओं की तरह ही सिख समुदाय भी दीपावली का पर्व काफी धूमधाम से मनाते हैं। इसी दिन साल 1577 में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गई थी, जो सिखों के सबसे बड़े तीथों में से एक है। इसके अलावा सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह को इसी दिन कैद से रिहाई मिली थी।
जैन धर्म में भी दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। मान्यता है कि है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी को कार्तिक अमावस्या के दिन ही मोक्ष मिला था। इसी दिन उनके पहले शिष्य गौतम गणधर को ज्ञान की प्राप्ति हुई। जैन संप्रदाय के लोग दीपावली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म में पूजा का तरीका अलग है पर यहां भी हिंदू धर्म की तरह ही दीप जलाकर दीपावली मनाई जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में दीपावली का उत्सव अलग अंदाज में मनाया जाता है। लेकिन मूल अर्थ एक ही है। ’बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधेरे पर प्रकाश की जीत।
महाराष्ट्र में दीपावली की शुरुआत ’वासु बरस’ की रस्म से होती है। यह गायों के लिए होती है। आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि को श्रद्धांजलि देने धनतेरस मनाया जाता है। मराठी भाषी लोग दीपावली पर देवी लक्ष्मी की पूजा कर पति-पत्नी के प्यार का जश्न मनाते हुए ’दीपावली चा पड़वा’ मनाते हैं। ओडिशा में दीपावली पर लोग कोरिया काठी करते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें लोग स्वर्ग में अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। वह अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की छड़े जलाते हैं। दीपावली के दौरान उड़िया देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी काली की पूजा करते हैं।
बंगाल में दीपावली काली पूजा या श्यामा पूजा के साथ मनाई जाती है जो रात की जाती है। देवी काली को हिबिस्कस के फूलों से सजाया जाता है और मंदिरों और घरों में पूजा की जाती है। भक्त मां काली को मिठाई, दाल, चावल और मछली भी चढ़ाते हैं। कोलकाता में दक्षिणेश्वर और कालीघाट जैसे मंदिर काली पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, काली पूजा से एक रात पहले, बंगाली घरों में 14 दीये जलाकर बुरी शक्ति को दूर करने के लिए भूत चतुर्दशी अनुष्ठान का पालन करते हैं। इसके अलावा, ऐसा कहा जाता है कि मुगल अकबर के दौरान मुस्लिमों ने भी दीपावली मनाई थी। इसे जश्न-ए-चराग के नाम से मनाया जाता था।
दीपावली का महत्त्व धार्मिक सीमाओं से कहीं आगे है। यह पर्व लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने का काम करता है। इस मौके पर लोग अपने घरों को रंगोली, दीपक, और फूलों से सजाते हैं। आपसी भाईचारे और एकजुटता के प्रतीक के रूप में लोग एक-दूसरे को मिठाईयां और उपहार देते हैं। यह पर्व समृद्धि, उत्साह और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है। आज के समय में दीपावली केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं, बल्कि यह वाणिज्यिक और सामाजिक महत्त्व का भी हो गया है। लोग नए उत्पादों और सेवाओं की शुरुआत इसी दिन करते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर भी दीपावली के मौके पर भारी छूट और ऑफर दिए जाते हैं।
दीपावली अब केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक त्यौहार बन चुका है। विदेशों में भी भारतीय समुदाय इसे पूरे जोश और धूमधाम से मनाते हैं। चाहे वह अमेरिका हो, ब्रिटेन हो, या फिर आस्ट्रेलिया, हर जगह दीपावली की रोशनी और खुशियों की झलक देखने को मिलती है। जहां एक तरफ दीपावली खुशी और उत्साह का त्यौहार है, वहीं दूसरी ओर इससे प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। पटाखों की तेज आवाज से कई बार बुजुर्गों और पशुओं को परेशानी होती है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए हमें ईको-फ्रेंडली दीपावली मनाने पर जोर देना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए मिट्टी के दीपक जलाना, कम बिजली का उपयोग करना और ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए पटाखों का कम से कम उपयोग करना चाहिए।
दीपावली के अवसर पर कई तरह के विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं। इसमें प्रमुख रूप से लड्डू, गुजिया, काजू कतली, रसगुल्ले, और पानी पुरी जैसे मिठाई और नाश्ते शामिल होते हैं। लोग एक-दूसरे को मिठाई देकर इस त्यौहार की मिठास बढ़ाते हैं। दीपावली केवल त्यौहार ही नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन को प्रकाश और समृद्धि की ओर ले जाने वाला एक रास्ता है। यह हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी अंधकारमय स्थिति क्यों न हो, अगर हम अच्छाई और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं, तो जीत हमेशा हमारी होती है।
यह लेखक के निजी विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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