माउंट एवरेस्ट… दुनिया का सबसे ऊंचा शिखर। इस चोटी को छूने की आस लेकर सैकड़ों पर्वतारोही हर साल इस जोखिम भरे अभियान पर निकलते हैं। इनमें से कुछ ही सफलता हासिल कर पाते हैं। लेकिन दो नाम ऐसे भी हैं, जिन्होंने भले ही एवरेस्ट के शिखर को न छुआ हो लेकिन दोनों ही पर्वतारोहण की दुनिया के शिखर पुरुषों से कम नहीं हैं। ये कहानी है बहुगुणा ब्रदर्स की। एक को पर्वतारोहण के लिए अर्जुन पुरूस्कार और पद्मश्री मिला और दूसरे को कीर्ति चक्र, सेना मेडल और दो बार विशिष्ट सेवा मेडल। दोनों पहली बार में एवरेस्ट के बेहद करीब पहुंचे और दूसरी बार के अभियान में जान गंवा दी। वो भी एक ही जगह…लेकिन 14 साल के अंतराल पर। ये कहानी है मेजर हर्षवर्धन बहुगुणा और मेजर जयवर्धन बहुगुणा की।
उत्तर की ओर अपने पहाड़ी गलियारे के साथ दुनिया के कई ऊंचे और बड़े शिखरों का घर होने के कारण भारत ऐसी जगह है, जहां पर्वतारोही खिंचे चले आते हैं। भारत में हर खेल की तरह, पर्वतारोहण में भी नायकों की एक अलग फेहरिस्त है। ऐसी कई कहानियां हैं, जो पीढ़ियों तक रोमांच की चाह रखने वाले लोगों तक पहुंचती रहेंगी। ऐसी ही कहानी दो सैन्य अफसर भाइयों मेजर हर्ष वर्धन बहुगुणा और मेजर जयवर्धन बहुगुणा की है, जो पर्वतारोहण के इतिहास में अमर हो गए।
उत्तराखंड में जब भी माउंट एवरेस्ट अभियानों का जिक्र होगा, बहुगुणा बंधुओं की कहानी बड़े अदब और फख्र से सुनाई जाएगी। जहां बड़े भाई मेजर हर्षवर्धन बहुगुणा ने 1971 में एवरेस्ट के एक अंतरराष्ट्रीय अभियान के दौरान अपनी जान गंवाई, वहीं उनके छोटे भाई मेजर जयवर्धन बहुगुणा ने 14 साल बाद अक्टूबर 1985 में सेना के एवरेस्ट अभियान के दौरान अपनी जान गंवाई। यह एक त्रासदी ही तो है कि छोटा भाई बड़े भाई का एवरेस्ट छूने का सपना पूरा करने के लिए पर्वतारोही बना लेकिन 14 साल बाद उसी दक्षिण कोल के इलाके में जान गंवा दी, जहां बड़े भाई की मौत हुई थी।
मेजर हर्षवर्धन बहुगुणा का जन्म 1939 में गढ़वाल में हुआ था। उनकी शिक्षा एलन मेमोरियल स्कूल, मसूरी में हुई थी। 1956 में वह भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून पहुंचे। उन्हें 1958 में आर्मर्ड कोर में कमीशन और सेंट्रल इंडिया हॉर्स में तैनाती मिली। उन्होंने 1962 में एचएमआई दार्जिलिंग में अपना बेसिक कोर्स किया और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आठ वर्षों के भीतर वह देश के सबसे लोकप्रिय पर्वतारोहियों में से एक बनकर उभरे। 1962 में कोर्स के तुरंत बाद लियो पारगियल (22,280 फीट) के अभियान में शामिल हुए। अगले वर्ष उन्हें हाई एल्टीट्यूट एंड वारफेयर स्कूल गुलमर्ग में स्कीइंग एवं पर्वतारोहण का प्रशिक्षक नियुक्त किया गया। 1964 में वह नंदा देवी (25,645 फीट) के सफल अभियान में शामिल हुए। इसके बाद वह राथोंग (21,911 फीट) पर चढ़े। 1965 मेजर हर्षवर्धन के लिए कई घटनाओं वाला साल रहा। वह 1965 के प्रसिद्ध भारतीय एवरेस्ट अभियान का हिस्सा बने। यह मेजर बहुगुणा का दुर्भाग्य था कि उन्हें शिखर से सिर्फ 400 फीट की दूरी पर मेडिकल दिक्कत हुईं और उन्हें पीछे हटना पड़ा। वह इसी साल भारत-पाक युद्ध में शामिल हुए और शादी भी की। इसके बाद 1969 में उन्होंने भारत-ब्रिटेन एक्सपीडिशन चंबा का नेतृत्व किया। 1970 में उन्होंने सासेर कांगड़ी (25,170 फीट) अभियान का नेतृत्व किया। मार्च 1971 में वह अपने पुराने ख्वाब को पूरा करने एवरेस्ट पहुंचे। लेकिन 18 अप्रैल, 1971 को 22,900 फीट की ऊंचाई पर वेस्ट रिज पर उनकी मौत हो गई। वह हमेशा के लिए उस हिमालय के आगोश में चले गए, जिसे वह सबसे ज्यादा प्यार करते थे।
1948 में देहरादून में पैदा हुए मेजर जयवर्धन बहुगुणा ने बंगाल सैपर्स (बाद में 1 पैरा) में शामिल होने के बाद अपने बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए पर्वतारोहण को अपनाया। मेजर जयवर्धन बहुगुणा के नाम नंदा देवी, लियो पारगिल, कंचनगंगा और हिमालय के कई शिखरों पर चढ़ने का रिकॉर्ड है। अपने बड़े भाई मेजर हर्षवर्धन की तरह ही उन्होंने पर्वतारोहण की दुनिया में कई कारनामों को अंजाम दिया। 1982 में वह दूसरी अंटार्कटिका एक्सपीडन टीम का हिस्सा थे। मेजर जयवर्धन 1984 में पहली बार एवरेस्ट अभियान पर पहुंचे थे। यह अभियान पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बचेंद्री पाल के एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए याद किया जाता है। यदि मेजर जयवर्धन और अभियान दल के एक अन्य सदस्य मेजर किरण इंदर कुमार ने खेल भावना और टीम भावना का परिचय नहीं दिया होता तो बचेंद्री पाल एवरेस्ट पर पहली भारतीय महिला के रूप में रिकॉर्ड बुक में कभी भी जगह नहीं बना पातीं। दरअसल, उस दिन जयवर्धन और किरण कुमार दोनों को शिखर पर पहुंचना था, लेकिन बचेंद्री पाल को शीर्ष पर पहुंचाने के लिए दोनों ने अग्रिम शिविर में जाने का विकल्प चुना क्योंकि वहां ऑक्सीजन का पर्याप्त भंडार नहीं था। उन्होंने बछेंद्री पाल को अपने हिस्से की ऑक्सीजन का इस्तेमाल करने दिया ताकि वो शिखर पर चढ़ सकें, जिससे पहली भारतीय महिला को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का श्रेय मिल सके।
मेजर जयवर्धन बहुगुणा का दूसरा एवरेस्ट अभियान 1985 में हुआ। इस अभियान के दौरान भारतीय सेना के पांच अधिकारियों की मौत हुई। अक्टूबर 1985 के अभियान के दौरान उनके पूर्व अभियान के साथी किरण कुमार दक्षिण पूर्व रिज मार्ग पर गिर गए। उसके सिर में चोट आई और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। चार दिन बाद 10 अक्टूबर को चार अन्य सदस्यों मेजर जय बहुगुणा, कैप्टन विजय पाल सिंह नेगी, मेजर रंजीत सिंह बख्शी और लेफ्टिनेंट एमयूबी राव की अत्यधिक खराब मौसम और निचले शिविरों में सुरक्षित न पहुंच पाने के कारण मौत हो गई। दुर्भाग्य की बात यह थी कि मेजर जयवर्धन बहुगुणा की मौत भी साउथ कोल में हुई थी, ठीक उसी स्थान के पास जहां चौदह साल पहले उनके बड़े भाई की मृत्यु हुई थी।
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