उत्तराखंड में जिमनास्टिक में भी कुछ किया जा सकता है, यह कल्पना बहुत कम लोग ही करते होंगे लेकिन टिहरी गढ़वाल के मनोज पंवार ने ईमानदारी से यह प्रयास कर रहे हैं। एक महीने में ही उनकी कोशिश के नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं।
कहते हैं हुनर से आप नाम कमाते हैं और अपने अनुभव को समाज को लौटाकर सम्मान। कुछ ऐसी ही कहानी है टिहरी जिले के थौलधार ब्लॉक के रत्नो मल्ला गांव के 29 साल के मनोज पंवार की। कोरोना काल में हुए लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में उत्तराखंड के लोग गांव लौटे, किसी ने स्थानीय स्तर पर रोजगार खोज तो किसी ने स्वरोजगार के तरीके तलाशे…। पहाड़ की ओर लौटे ज्यादातर युवाओं के मन में अब यह बात तो बैठ गई है कि गांव में रहकर भी बेहतर किया जा सकता है। मनोज कोरोना काल में अपने गांव के बच्चों को जिमनास्टिक की बारीकियां सिखा रहे हैं।
मनोज गुड़गांव में एक जिमनास्टिक, योगा एंड एरोबिक सेंटर में कोचिंग देते हैं। कोरोना काल में जिम और फिटनेस सेंटर बंद हुए तो वह भी अपने गांव आ गए। यहां आकर उन्होंने अपनी प्रैक्टिस जारी रखी। मनोज को प्रैक्टिस करता देख बच्चों में दिलचस्पी बढ़ी। फिर क्या था, मनोज ने गांव में ही शुरू कर दी जिमनास्टिक क्लास। गांव में सीमित संसाधनों और अनोखे तरीकों से गांव के कई बच्चे उनसे जिमनास्टिक की बारीकियां सीख रहे हैं। मनोज बच्चों को निशुल्क ये ट्रेनिंग दे रहे हैं।
हिल-मेल से बातचीत में मनोज ने कहा कि जिमनास्टिक में स्ट्रैंथ और फ्लैक्सीबिलिटी होना बहुत जरूरी है। पहाड़ के बच्चों में ये दोनों ही जबरदस्त होती हैं। बस उन्हें थोड़ी सी ट्रेनिंग देने और मोटिवेट करने की जरूरत है। वह किसी भी खेल में बेहतर कर सकते हैं। अगर हम गांवों में बच्चों को हर तरह के खेलों की सुविधाएं दे पाएं तो यहां से टैलेंट बाहर नहीं जाएगा और बच्चे अपनी परफॉर्मेंस से अपने गांव और उत्तराखंड का नाम भी ऊंचा करेंगे। हमने ट्रेडिशनल खेलों से आगे जिमनास्टिक जैसे खेलों की सुविधाएं विकसित करने पर भी सोचना चाहिए।
मनोज के जिमनास्टिक से जुड़ने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई गांव से की। यहां उन्हें जिमनास्टिक के बारे में कुछ नहीं पता था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख कर लिया। वहां अपने दोस्तों को स्टंट करते देख मनोज की दिलचस्पी भी स्टंट में जगी। इसकी बारीकियां सीखते हुए उनका झुकाव जिमनास्टिक की तरफ बढ़ गया। इसके बाद गंभीरता से इसे सीखने का सिलसिला शुरू हो गया। मनोज बताते हैं कि जब गांव से चला था तब कभी यह नहीं सोचा था कि इस फील्ड में जाऊंगा। हालांकि कुछ समय में जब सर्किल बढ़ा तो अच्छे जिमनास्टिक कोचों और ट्रेनरों के संपर्क में आया। हालांकि किन्हीं कारणों से मैं 2016 के बाद दो से ढाई साल तक अपने जिमनास्टिक के सफर को आगे नहीं बढ़ा सका। हालांकि मैंने हिम्मत नहीं हारी और नॉर्मल प्रैक्टिस जारी रखी। इसके बाद भारत के जिमनास्टिक कोच रहे प्रवीण शर्मा से मिलने का मौका मिला। वह साल 2010 में भारत के कोच थे। जब उन्होंने द्वारका सेक्टर 24 में एकेडमी खोली तो मुझे उनसे सीखने का मौका मिला। वह कहते हैं कि इतने बड़े कोच से सीखना मेरा सौभाग्य रहा।
मनोज ने कहा कि वह होली के बाद 14 मार्च को गांव से दिल्ली लौटे, इसके कुछ दिन बाद ही यह चर्चा शुरू हो गई कि किसी बीमारी के चलते लॉकडाउन लगने वाला है। इसके बाद वह अपने गांव आ गया। फिर सोचा कि जो मुझे आता है, वह अपने गांव के बच्चों को सिखा पाया तो इनमें से कोई आगे चलकर बड़ा खिलाड़ी बन सकता है। भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। वह कहते हैं कि हमें अपने स्कूलों में बच्चों को बेसिक ट्रेनिंग की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि बच्चों का रुझान इस खेल की ओर बढ़ सके।
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garima negia
August 22, 2020, 10:43 pmbahut se sundar karya
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