भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के विरोधी भी थे कायल

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के विरोधी भी थे कायल

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की। जिन्होंने राजनीति की दुनिया में ना सिर्फ अलग मुकाम हासिल किया बल्कि अपनी कविताओं से भी लोगों के दिलों में खास जगह बनाई।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनेता तो थे ही साथ ही वो एक कमाल के कवि, लेखक भी थे। अटल जी की कई कविताएं आज भी बहुत प्रासंगिक है, जिसे कई मौके पर अब भी लोग सुनते हैं। अटल बिहारी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। वाजपेयी, पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था। वाजपेयी 3 बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। 1996 में पहली बार वो महज 13 दिनों के लिए पीएम पद पर रहे, दूसरी बार 1998 में प्रधानमंत्री बनें मगर वो सरकार भी 13 महीनें ही चली। तीसरी बार उन्होंने 1999 से 2004 तक पीएम का पद संभाला। उनका 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था।

अटल बिहारी वाजपेयी जब 10वीं की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्होंने एक कविता लिखी थी। उन्होंने इसके बारे में बात करते हुए खुद कहा था कि ’लोग कहते हैं वो कविता लिखने वाला वाजपेयी अलग था और राज काज करने वाला पीएम अलग है। इस बात में कोई सच्चाई नहीं है, मैं हिन्दू हूं ये मै कैसे भूलूं, किसी को भूलना भी नहीं चाहिए, मेरा हिन्दुत्व सीमित नहीं है संकुचित नहीं है। मेरा हिन्दुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे नहीं बंद कर सकता। मेरा हिन्दुत्व अंतर प्रांतीय, अंतर जातीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता। हिन्दुत्व वास्तव में बेहद विशाल है, मेरा हिन्दुत्व क्या है?’

‘भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर।
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!’

देश के पूर्व पीएम राजनीति में हर तरह के प्रयोग के लिए तैयार थे। उन्होंने भारतीय राजनीति में राष्ट्रवाद को खास तवज्जों दी। और बीजेपी को देश में लोकतांत्रिक विकल्प बताया। उन्होंने ने एक लेख भी लिखा था जिसमें उन्होंने हिंदुत्व की जगह भारतीयता पर जोर दिया। उस वक़्त भी संघ में भी वाजपेयी के चेहरे की अपनी अलग अहमियत थी। अटल बिहारी वाजपेयी की विचारधारा भले ही अलग ही लेकिन इसके बावजूद उनके चाहने वाले हर पार्टी में थे। जिससे पता चलता है कि उन छवि कितनी बड़ी थी।

दशकों की लंबी मांग के बाद अगर नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के मानचित्र पर अलग राज्य के रूप में वजूद में आया, तो इसमें सबसे निर्णायक भूमिका उन्हीं की थी। राज्य गठन के अलावा प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में वाजपेयी ने उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक पैकेज और विशेष राज्य के दर्जे से भी नवाजा। तो इसकी वजह यही है कि यहां के लोग अटल बिहारी वाजपेयी से अपार स्नेह करते थे देवभूमि उत्तराखंड से अटल बिहारी वाजपेयी का विशेष लगाव था। उत्तराखंड में अलग राज्य निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला। वर्ष 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था। वाजपेयी ने इस भरोसे को कायम भी रखा और नए राज्य की स्थापना वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान ही हुई। राज्य में पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी। उस वक्त, यानी वर्ष 2003 में प्रधानमंत्री के रूप में नैनीताल पहुंचे वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी के आग्रह पर उत्तराखंड के लिए दस साल के विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा की। यह उत्तराखंड के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने नवोदित राज्य को खुद के पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी को पहाड़ों की रानी मसूरी बहुत आकर्षित करती थी। जब भी अवसर मिलता, वह मसूरी आते और पहाड़ी की शांत वादियों में आत्ममंथन में समय गुजारते। देहरादून में उनके गहरे पारिवारिक मित्र नरेंद्र स्वरूप मित्तल रहते थे और जब भी वाजपेयी देहरादून आते, उनके पास खासा वक्त गुजारते। आज भी मित्तल परिवार के पास तस्वीरों के रूप में उनकी यादें कैद हैं। स्व। नरेंद्र स्वरूप मित्तल के पुत्र ने उनके साथ बिताए दिनों को स्मरण करते हुए बताया कि वे बचपन से ही अटल जी को घर आते हुए देखते रहे हैं। अटल जी जब भी देहरादून आते थे, उन्हीं के घर रुकते थे।

सरल व्यक्तित्व और ओजस्वी कंठ वाले अटल जी ऐसे थे कि अपने सामान का छोटा सा ब्रीफकेस भी खुद उठाते थे। वे ट्रेन से आते-जाते थे। उनके ब्रीफकेस में एक धोती-कुर्ता, अंतर्वस्त्र, एक रुमाल और एक टूथब्रश होता था। जमीन से जुड़े हुए अटल जी दून की सड़कों पर नरेंद्र स्वरूप मित्तल के साथ 1975 मॉडल के स्कूटर पर सैर करते थे। बाद में जब नरेंद्र स्वरूप मित्तल ने फिएट कार ले ली तो वे अटल जी को उसमें भी घुमाया करते थे। भारतीय राजनीति के अजातशत्रु व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले ही इस दुनियां में नहीं रहे, मगर नैनीतालवासियों के दिलों दिमाग पर हमेशा जिंदा रहेंगे। यह वाजपेयी के ही कवि हृदय का कमाल था कि नैनी झील समेत अन्य झीलों के उखड़े प्राण लौट आए।

वाजपेयी ने ना केवल झील संरक्षण के लिए दो सौ करोड़ की घोषणा की थी, इस बजट की बदौलत ही नैनी झील समेत आसपास के झीलें प्रदूषण मुक्त हो सकीं और देश-दुनियां के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होने के साथ ही स्थानीय लोगों की आजीविका व जीने का प्रमुख आधार बनी है। राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के अंतर्गत मार्च 2002 में ही झील विकास प्राधिकरण द्वारा डीपीआर तैयार की गई। जिसमें झील में ऑक्सीजन की कमी और एविएशन का प्रावधान किया गया। नैनीताल झील के साथ ही भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, खुर्पाताल को इसमें शामिल किया गया।

प्राधिकरण के परियोजना अभियंता बताते हैं कि नैनी झील के 47.56 करोड़ जबकि अन्य झीलों के लिए 16 करोड़ का प्रोजेक्ट मिला। भीमताल में एक्वेरियम समेत सुंदरीकरण आदि कार्यों का श्रेय पूर्व पीएम अटल बिहारी को जाता है। तब डीपीआर के अनुसार 65 करोड़ केंद्र सरकार ने जारी किया था। राजभवन में प्रवास के दौरान पूर्व पीएम वाजपेयी ने कालजयी कविताओं की रचना की। अल्मोड़ा की प्रसिद्ध सिंगोड़ी का भी स्वाद लिया। अटल जी का उत्तराखंड से विशेष अनुराग था। यहां की शांत वादियां उन्हें लुभाती थीं। अटल जी को एक राजनेता के रूप में भी उत्तराखंड के लोग बहुत पसंद करते थे। अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में उत्तराखंड की स्थापना कराकर वो राज्यवासियों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ गए। तीन बार के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की आज 6वीं पुण्यतिथि है।

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