हिल-मेल और ओहो रेडियो की विशेष पेशकश ‘बात उत्तराखंड की’ में हमारे साथ जुड़े भाजपा सुशासन विभाग उत्तराखंड के संयोजक और इंडिया फाउंडेशन के निदेशक शौर्य डोभाल। उत्तराखंड की मौजूदा चुनौतियों, भविष्य के विजन, आर्थिक गतिविधियों और रोजगार के अवसरों पर अर्जुन रावत और आरजे काव्य से विस्तार से हुई बातचीत के कुछ अंश-
काव्य- उत्तराखंड राज्य को 21 साल पूरे होने वाले हैं, उत्तराखंड की विकास यात्रा को किस तरह से देखते हैं?
मैं जब उत्तराखंड को बैकग्राउंड से देखता हूं तो प्रसन्नता होती है कि आज हमारी एक पहचान है। पारिवारिक रूप से हमारी अलग-अलग पहचान होती है। सोशल लेवल पर हम अलग-अलग भूमिका में होते हैं। लेकिन हमारी एक अलग पहचान बनी 2000 में कि हम उत्तराखंड के लोग हैं। हम पहाड़ के रहने वाले हैं। ये कुछ चीजों का प्रतीक भी बन जाती हैं जैसे- ईमानदारी, कठिन परिश्रम, बहादुरी… ऐसी कई चीजें। आज 20 साल बाद हम जब देखते हैं तो हमें संतुष्टि होती है कि आप उस कड़ी का एक भाग है। यह एक गर्व का विषय है।
अर्जुन रावतः कोरोना संकट के दौर से हम गुजर रहे हैं, दूसरी लहर थम रही है लेकिन तीसरी लहर का खतरा बना हुआ है, कोरोना ने हमारे हेल्थ सेक्टर को सवालों के घेरे में ला दिया, या हमने तैयारियां करने में ज्यादा समय ले लिया, क्या कहेंगे आप?
इस कोरोना ने हमें एक वॉर्निंग दी है। हमारा हेल्थ सेक्टर कितना कमजोर है। एक बिल्डिंग होती है, दीवारें होती हैं। यह दीवार इतनी कमजोर है कि थोड़ी सी हवा में यह ढह सकती है। आने वाले समय में यह बहुत आवश्यक है कि हम इस विषय पर गंभीरता से सोचे। हमारा हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्टर 1 करोड़ उत्तराखंडियों के लिए पर्याप्त नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। हमने अस्पताल बनाए हैं और बहुत से काम हुए हैं लेकिन जब आप सिस्टम का मूल्यांकन करते हैं तो उस खतरा या अवसर के लिए क्या वह पर्याप्त है? मेरा मानना है कि आने वाले समय अगर इस तरह की आपदा आए तो क्या हमारा सिस्टम संभाल पाएगा जिससे ज्यादा से ज्यादा जानें बचाई जा सकें। हमें ईमानदारी से ऑडिट करने की जरूरत है।
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अर्जुन रावतः हमारे स्थानीय या जिला स्तर पर जो अस्पताल हैं वे फौरी तौर पर इलाज के लिए पूरी तरह से संसाधन संपन्न नहीं हैं,क्या कहेंगे कितनी जल्दी हमें ये तैयारियां करनी होंगी?
देखिए, उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उत्तराखंड के पास संसाधन ही नहीं हैं। जब आपके पास संसाधन ही नहीं है तो हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में कैसे निवेश करेंगे। अगर आप रेगुलर तरीके से चलेंगे तो अगले 20 साल तक हालात नहीं सुधरेंगे। आपने सही कहा कि प्राइमरी हेल्थ सेंटर के लिए डॉक्टर और मेडिकल उपकरण कहां से लाएंगे। दुनिया की टेक्नोलॉजी कहां से लाएंगे, जो लोगों के काम आ सके। वे इसलिए नहीं ला सके क्योंकि वहां के लोगों की इतनी आर्थिक क्षमता ही नहीं है कि वे इन चीजों को एफॉर्ड कर सकें। हम एक सर्किल में फंसे हैं। इतनी आर्थिक गतिविधि नहीं है। सरकार के पास संसाधन नहीं है। हमें पारंपरिक नहीं कुछ अलग तरीके से इसका हल निकालना होगा। इनोवेटिव तरीके से…. जैसे मैंने एक सजेशन दिया था। उत्तराखंड के डॉक्टर काफी प्रसिद्ध हैं। दुनियाभर में अच्छा काम कर रहे हैं। ठीक हैं, उत्तराखंड आज उनको एफॉर्ड नहीं कर सकता है कि वह अमेरिका, चेन्नई, बेंगलुरु या कहीं और से छोड़कर देहरादून, मुक्तेश्वर, रुद्रप्रयाग में काम करें। लेकिन उनका दिल तो उत्तराखंडी है। क्या हम टेली-मेडिसिन के माध्यम से उन लोगों की क्षमताओं का उपयोग कर सकें। वे पैसे भी नहीं मांग रहे। ऐसे में हम गांव के उस आदमी के लिए मेडिकल सुविधा ला सकेंगे जो कभी यह अफॉर्ड नहीं कर सकता।
हमें नए तरीके से सोचना होगा। तीसरी लहर ही नहीं कोई और आपदा भी आए तो हम बस यही कहते रहेंगे कि हमने अच्छी कोशिश की। लेकिन वह कोई पक्का समाधान नहीं है। हमें यह लड़ाई जीतनी है केवल कोशिश नहीं करनी है।
काव्य- बहुत सारे राज्यों में बिजनेस समिट या इन्वेस्टर समिट होती है, उत्तराखंड में भी एक दफा हुई थी, अगर हम छोटे-छोटे जिलों में बाहरी कंपनियों से निवेश करवाएं क्या यह एक अच्छा तरीका हो सकता है?
मैं इस बात को कई बार सार्वजनिक भी कर चुका हूं। यह बात कहना थोड़ा पॉलिटिकली इनकरेक्ट भी है। लेकिन आपने मुझसे पूछा था कि उत्तराखंड के 20 साल को देखते हैं तो कैसा लगता है। देखिए उत्तराखंड ने आइडेंटिटी का इश्यू तो स्टैबलिश हो गया है। लेकिन मेरा मानना है कि 20 साल बाद भी उत्तराखंड का कोई आर्थिक मॉडल नहीं है। ये छोटे-छोटे काम करके कि हम कहीं पर टूरिज्म करेंगे… हमारे पास ऐसी बातें करने का सीधा जवाब है कि हमारे पास संसाधन नहीं हैं। मैं गरीब हूं इसलिए कुछ नहीं कर सकता। मेरा मानना है कि उत्तराखंड ने 20 साल का समय बर्बाद किया है। कोई आर्थिक मॉडल नहीं बना पाए। जब तक उत्तराखंड की लीडरशिप बैक टू बेसिक नहीं करेगी… हर प्रकार की पॉलिटिकल, सोशल, इकॉनमिक, ब्यूरोक्रेटिक तब तक हम इस विषय का बैंडेज सॉल्यूशन कर सकते हैं। आप कैंसर को बैंडेज से थोड़ी रोक सकते हैं। पिछले 20 साल से यही चलता आ रहा है। एक आर्थिक विजन के अभाव में अच्छे लोग जो मेहनत कर रहे हैं काम भी पूरा कर रहे हैं। मैं क्रॉस पॉलिटिकल बातें बोल रहा हूं, लोगों ने मेहनत भी बहुत की है लेकिन अगर हम मूल्यांकन करें तो आज उत्तराखंड न तो टूरिज्म के लिए जाना जाता है, ना वो किसी इंडस्ट्री के लिए जाना जाता है, ना वो किसी ऐसी चीज के लिए जाना जाता है जिसके आधार पर आप कह सकते हैं कि अगले 20 साल तक आप एक मॉडल दे सकते हैं जो सर्वाइव करेगा और उत्तराखंड के लोगों में खुशहाली आएगी जिससे वे स्कूल, सड़क, अस्पताल बना सकेंगे।
जब-जब ऐसी बात आती है तो कहा जाता है पैसा नहीं है। आपको उत्तराखंड का बजट भी देखने की जरूरत है कि कैपिटल इन्वेस्टमेंट के लिए कोई पैसा नहीं है। हम ऐसे तो थोड़ा ही बदलाव ला सकेंगे। मुझे लगता है कि समय ना बर्बाद करते हुए, अब वक्त आ गया है कि हम बैक टू बैसिक जाएं और किसी एक निर्णय पर पहुंचे कि ऐसा क्या करें कि जिससे चीजें बिल्कुल बदले। इसमें हमारा युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मेरा मानना है कि चार धाम सड़क बनी है उसे सड़क न सोचकर एक स्ट्रैटिजिक एसेट के तौर पर सोचें जो पीएम मोदी ने दिया है। इसकी प्लानिंग 25 साल की करनी चाहिए जिससे उत्तराखंड में समृद्धि आएगी। अगर हमने यह नहीं किया तो आप देखिएगा 5-10 साल बाद छोटे होटल वगैरह बनेंगे पर उससे कोई बड़ा फायदा नहीं होगा।
आप एक टैंक से बकरी को मार सकते हो, आप कह सकते हो कि हमने गोला यूज किया और बकरी को मार दिया लेकिन टैंक बकरी मारने के लिए नहीं बना है। अच्छा जनरल वो है जो कोई बड़ा काम करके दिखाए। हमारा मकसद प्रदेश में छोटे-छोटे टैक्टिकल इशूज सॉल्व करने का नहीं है, हमें अब बड़ा इकनॉमिक ब्लूप्रिंट बनाने की जरूरत है। राजनीतिक सहमति के साथ लोगों को तैयार करने की जरूरत है।
अर्जुन रावतः आप किस सेक्टर को मानते हैं कि वह अगले 20 साल में उत्तराखंड के लिए गेमचेंजर बन सकता है?
मेरा मानना है कि उत्तराखंड के लिए टेक्नोलॉजी गेमचेंजर बन सकता है। अगर उत्तराखंड थोड़ा बहुत इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करे जैसे एयर कनेक्टिविटी। उत्तराखंड के लोगों में बहुत प्रतिभा है। अगर हमने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें तो भले ही हमारे पास जमीन नहीं है, ज्यातार पहाड़ ही है, बड़े उद्योग नहीं लगा सकते है लेकिन हम नया मॉडल तैयार कर सकते हैं। चाहे वह सेमीकंडक्टर मैनुफैक्चरिंग हो, फ्रूट्स, एग्रीकल्चर हो या हाई एंड सर्विसेज हो।
काव्य- उत्तराखंड को एक्सपर्ट पॉलिटिशियन की जरूरत है, आप इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में आने की कब सोच रहे हैं?
देखिए, मेरा मानना है कि पॉलिटिक्स बहुत महत्वपूर्ण है जिसके माध्यम से आप ये काम कर सकते हैं जिनके बारे में मैं बात कर रहा हूं। जब तक आप सिस्टम में नहीं है, आप मशविरा ही दे सकते हैं। इसी कारण मैंने एक्टिव पॉलिटिक्स जॉइन की है। मेरा या परिवार का पॉलिटिक्स से कोई लेना-देना नहीं है। मैं खुद प्रोफेशनल हूं। मैं बीजेपी उत्तराखंड में आया हूं। मुझे कुछ काम मिले हैं। प्रॉसेस शुरू हो चुका है। अभी इसके लिए कुछ कहना कि इलेक्टोरेल पॉलिटिक्स कब आएगी, अभी इसमें समय है। ये सब चीजें पार्टी के लोग तय करेंगे कि कैसे इस्तेमाल करना है। लेकिन मेरी पॉलिटिक्स का आधार कोई उद्देश्य है। मैं पॉलिटिक्स में कोई करियर बनाने के लिए या कोई सेल्फ प्रमोशन के लिए नहीं आया हूं। ना मेरी ऐसी कोई महत्वाकाक्षाएं हैं। लेकिन मैं पॉलिटिक्स में एक्टिव प्लेयर बनने के लिए आया हूं। मुझे लगता है कि इन विषयों पर ही नेताओं को काम करना चाहिए और इन्हीं सब पर लड़ना-झगड़ना चाहिए। बाकी समय आने पर देखा जाएगा।
अर्जुन रावतः हम देखते हैं कि आईटी इंडस्ट्री में उत्तराखंड के बहुत सारे यूथ होते हैं तो आईटी इंडस्ट्री को पहाड़ तक लाने के लिए क्या किया जा सकता है?
आपका विजन क्या है। अगले 10 साल में आप उत्तराखंड की पर कैपिटा इनकम को 2 या 4 गुना करना चाहते हैं। उसके लिए मुझे क्या-क्या करना होगा। उदाहरण के लिए आईटी एक ऐसा सेक्टर है जिसमें हम ये कर सकते हैं। तो सबसे पहले हमें पैसा खर्च करके कनेक्टिविटी देनी होगी। जब तक मैं इन्फ्रास्ट्रक्चर से बैंडविड्थ नहीं पहुंचा सकता तो मैं किस आईटी की बात कर रहा हूं। 3 साल बाद वाली चीज के लिए आपको अभी से इन्फ्रास्ट्रक्चर के बारे में सोचना है।
हो सकता है कि आप 2-3 बीपीओ कंपनियों को बुलाएं और वे 2-3 सेंटर खोल देंगी। हो सकता है 5-10 हजार लोगों को रोजगार मिले लेकिन समझना है कि उसका उद्देश्य क्या है। हमें समझना होगा कि भारत के इकॉनमिक ग्रोथ में उत्तराखंड केवल सर्विसेज में योगदान कर सकता है। क्योंकि जो कुछ उत्तराखंड बना सकता है उससे सस्ते में गुजरात और तमिलनाडु लगा सकते हैं। भविष्य में इकॉनमी ज्यादातर डिजिटल और टेक्नोलॉजी इकॉनमी होगी। मतलब इस क्षेत्र में ज्यादा ग्रोथ होगी।
हमें कुछ हार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए होगी। उत्तराखंड की जनता पढ़ी-लिखी है, टेक्निकल है। उन्हें इंसेंटिव मिलेगा तो उत्तराखंड की प्रतिभा राज्य में ही रुकेगी। टैक्स मिलेगा तो सरकार और भी इन्वेस्ट कर पाएगी। फिर बातें शुरू होंगी – दिल्ली वाला बोलेगा कि अगर रुद्रप्रयाग के गांव में बैठकर कोई करोड़पति बन सकता है तो मैं यहां क्यों बैठा हूं। एक विचारधारा बदलेगी। इन चीजों को अपनी नीतियों में लाने की जरूरत है।
अर्जुन रावतः उत्तराखंड में स्वरोजगार को लेकर काफी कदम उठाए गए, लेकिन वह रफ्तार नहीं पकड़ सका, आप क्या कहते हैं कि उसमें कमियां कहां रह गईं?
देखिए उसमें सबसे बड़ा काम महिलाओं और बुजुर्गों का है जिसमें हमको एक बड़ी मुहिम चलानी चाहिए लोगों को समझाने की। सरकार या सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से सोशल एजुकेशन का प्रोग्राम चलना चाहिए कि हमें उत्तराखंड की जनता को शिक्षित करना है। स्वरोजगार में सबसे बड़ी समस्या लोगों का एटीट्यूड है। पुरानी इकॉनमी में हम लेबर क्लास थे। इसीलिए मां-बाप का यही सोचना है कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें कहीं नौकरी मिल जाए। सरकार में नहीं तो प्राइवेट सेक्टर में ही सही। स्वरोजगार से लोग डरते हैं। उन्हें लगता है कि इससे घर में जो कुछ है वह भी लुट जाएगा। इस मानसिकता को बदलना होगा पहले मां-बाप में। उनके बाद यूथ बदलेंगे क्योंकि हर मां-बाप अपने फायदे के साथ अपने डर भी बच्चों को दे देता है। मेरा इस पर मानना है कि उत्तराखंड में जो प्रतिभा है, वह डरी हुई है। लोग समझेंगे कि स्वरोजगार में बहुत इज्जत है। हम सफल होंगे तो समाज और सरकार भी सम्मान देगी। इसके लिए हमें मानसिकता बदलनी होगी। सरकार की स्कीम से वो नहीं बदलेंगी। उत्तराखंड में अभी लोगों में अभी अवेयरनेस नहीं है। ऐसे में दूसरे राज्यों की स्कीम लाने से प्रभाव नहीं पड़ेगा।
काव्य- ओहो रेडियो उत्तराखंड का पहला एप बेस्ड रेडियो स्टेशन है, जब मैं इसके लिए बैंकों के पास गया तो उन्होंने पूछा कि क्या इसे पहले किसी ने किया है, मैंने कहा नहीं, तो जवाब मिला- फिर तो बहुत मुश्किल है, हमारे यहां आइडियाज पर निवेश नहीं है, क्या कहना चाहेंगे?
बिल्कुल 100%, इस दुनिया में सारी लड़ाई आइडियाज की है। मेरा इंडिया फाउंडेशन शोध संस्थान है। उसे क्रिएट ही इसीलिए किया गया था कि लड़ाई विचारों की है। अगर हम वह जीते तो जमीन पर जीतेंगे ही। इसीलिए हम कह रहे कि अगर हम 10-20 साल तक अपन पहचान में ही फंसे रहे तो पीछे रह जाएंगे। बैंक वाले की सोच अभी मनीऑर्डर इकॉनमी तक ही है। मुझे खुशी है कि आपसे एक लाख लोग जुड़े हैं। आपको देखकर और लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। हमें इन्हीं चीजों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ऐसे हमें 1-2 नहीं 5 या 10 हजार आइडियाज चाहिए। उसे भी फिर समाज और सरकार को उसी स्पीड से आगे बढ़ाना चाहिए। अगले 20 साल उत्तराखंड के लिए फोकस इकॉनमिक ग्रोथ पर होनी चाहिए।
काव्यः राजधानी पहाड़ में होती तो ज्यादा ग्रोथ होती, इसे कितना महत्वपूर्ण मानते हैं आप, कितना जरूरी हो जाता है छोटे-छोटे शहरों का ग्रोथ कराना?
बहुत आवश्यक है। हमारे लिए एक नई स्टेट कैपिटल बनाना एक मैटर ऑफ प्राइड का विषय है। देहरादून कैपिटल के लिए नहीं बना था। लेकिन सवाल वही है कैसे बनाएंगे, आपके पास संसाधन ही नहीं है। हमारे पास आइडियाज के अभाव में हम अपने संसाधन कभी जोड़ नहीं पाते हैं। यही समस्या व्यक्तिगत, परिवार, समाज, राज्य और देश के लेवल पर होती है। आप मोदी जी से राजनीतिक रूप से सहमत हों, न हों लेकिन वह देश के स्तर पर देश को रीइमेजिन कर रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त भारत, सशक्त भारत, 5 ट्रिलियन …. लीडरशिप का काम होता है इस तरह के विजन देना जिससे समाज और लोग उस दिशा में आगे बढ़ें। उत्तराखंड के पहाड़ में स्टेट कैपिटल बनना आवश्यक है। केवल दिखावे के लिए नहीं वास्तविक रूप से हमें इस पर काम करना होगा जिससे हमारी पहचान भी मजबूत हो।
अर्जुन रावत: हमारे पास सेना के रिटायर्ड लोग हैं, वे एक अच्छा एसेट हैं, डिफेंस प्रोडक्शन और सर्विस सेक्टर में कैसा भविष्य है उत्तराखंड का और कैसे उनका इस्तेमाल किया जा सकता है?
बहुत स्कोप है। आज देश का अरबों डॉलर का रक्षा बजट है। देश स्थानीय निर्माण (मेक इन इंडिया) व्यापक स्तर पर करने जा रहा है। हवाई जहाज से लेकर, बंदूकें, सेना- एयरफोर्स-नेवी सबके लिए बड़ी खरीद होती है, जिसे अब खुद बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है। परमाणु पनडुब्बी बन रही है। इन कामों को चलाता कौन है- उत्तराखंड के लोग। चाहे वह एयरमैन, एयर वाइस मार्शल हो या जनरल हो। इंटेलेक्चुअल कैपिटल हमारे पास है। हां, हमारे पास फैक्ट्री बनाने के लिए जमीन नहीं है, पैसे नहीं हैं। लेकिन स्टील और दूसरे मेटल तो लोग खरीद लेंगे पर बनाएं कैसे। उसके लिए टैलेंट चाहिए। आज वह कहीं डिफेंस कॉलोनी में रह रहा है, रुद्रप्रयाग में रह रहा है। आप उन्हें एक साथ लाकर यह स्थिति तैयार कर सकते हैं कि बन कहीं भी रहा हो पर उसका अनुसंधान और विकास का काम उत्तराखंड में होगा। भारत जैसे-जैसे बड़ा देश बनता जाएगा, उसकी रक्षा जरूरतें उसी हिसाब से बढ़ती जाएंगी। आपने 75 साल तक देश की सेना को मैन पावर उपलब्ध कराई। उस समय लड़ाई में मैन पावर की जरूरत थी। आप कहते हैं कि हम राष्ट्रवादी स्टेट हैं। जब भी देश को जरूरत होगी हम खून देने को तैयार हैं। लेकिन अगले 25 साल की लड़ाई टेक्नोलॉजी की लड़ाई होगी। हमारी लड़ाई का मैदान बदल गया है। आप भी अपना अप्रोच बदल दीजिएगा। उन्हें लोग नहीं दिमाग चाहिए तो आप अपना दिमाग दीजिए। हम इसमें अच्छी शुरुआत कर सकते हैं। आत्मनिर्भर भारत में रक्षा उत्पादन में आर एंड डी सेक्टर में। इसमें फैक्ट्री या पैसे की भी जरूरत नहीं है। इसमें हम व्यापक स्तर पर शुरू कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास सेना के दिग्गज लोग हैं, 75 साल का इंटेलेक्चुअल कैपिटल पड़ा है, बस हमें उसे संगठित करने की जरूरत है।
काव्य- पॉलिटिकल लीडर्स के एक्सपोजर को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं, कोई विधायक हो या मंत्री उसे दुनिया के बारे में जानकारी हो?
यह जरूरी नहीं, बहुत आवश्यक है। आप पिछले सालों की डिबेट उठाकर देख लीजिए। अगर हमें मुद्दों के बारे में जानकारी या समझ नहीं होगी तो हम सही मुद्दों पर बात नहीं करेंगे और फिर समाधान तक कैसे पहुंचेंगे। उत्तराखंड में कई काबिल लोग हैं। मेरा उनसे काफी इंटरैक्शन हुआ है। मैं उनकी संवेदनशीलता और कुछ करने की लगन से काफी प्रभावित हूं। अपने लेवल पर वह अच्छा काम भी कर रहे हैं। लेकिन बड़ा एक्सपोजर सचमुच में उनकी मदद करेगा। नए तरीके मिलेंगे, नई सोच से हम तेजी से आगे बढ़ेंगे। अब भी आप उत्तराखंड में घूमेंगे तो 20 साल बाद भी मायूसी देखने को मिलेगी। एक्सपोजर से हमें अपने विकास कार्यों और योजनाओं को लोगों की अपेक्षाओं से आगे या कम से कम साथ रखना होगा। इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि हमारी पॉलिटिकल लीडरशिप को नए-नए आइडियाज का एक्सपोजर दिया जाए और उनके बीच में भी बहस का माहौल और दिशा बदले।
काव्य- आपको क्या लगता है कि डिजिटली दौर में राजनीति का स्वरूप कितना बदल गया है?
बहुत ज्यादा और मुझे लगता है पारदर्शी और जवाबदेह की तरफ देश का सिस्टम बढ़ रहा है। यह टेक्नोलॉजी वैसे में गेमचेंजर है। पहले कोई कुछ कहता था कोई कुछ लेकिन आज मैंने जो बात कह दी वह ऑन रिकॉर्ड हो गई। 15 साल बाद भी कोई निकालेगा तो कहेगा कि आप तो ऐसा कहते थे। आदमी पकड़ लेगा कि आप सच या झूठ बोल रहे हैं। इसके साथ ही इमेज और रिएलिटी का अंतर भी खत्म हो गया है। एक बात और अगर मैं पहाड़ में घूमूं तो अपनी बातों को पहुंचाने में काफी समय लगेगा लेकिन इस वर्चुअल, ऑनलाइन माध्यम से लाखों लोगों तक जा सकता हूं और अपनी बात कह सकता हूं। इसके साथ ही जवाबदेही भी बढ़ गई है। यह आगे और भी बदलेगा और उत्तराखंड में भी इसका असर दिखेगा।
अर्जुन रावतः कोरोना में पहाड़ों पर बहुत सारा टैलेंट वापस आ गया है, उन्हें होल्ड करने के लिए क्या किया जा सकता ह?
एक ही चीज है। हमें उनके साथ बात करना चाहिए। हमें समझना होगा कि वे चाहते क्या हैं। हमें लोगों में जाकर डिबेट कर पूछना होगा कि बताइए हम आपकी कैसे मदद कर सकते हैं। आज दुनिया बदल गई है। वे तभी रुकेंगे जब उनकी उम्मीद और आकांक्षाओं की पूर्ति होगी। अभी तो हमें पता ही नहीं है कि उनकी आकांक्षाएं क्या हैं। ऐसे में हम उन्हें नहीं रोक पाएंगे क्योंकि वे मजबूरी में रुके हैं और जिनकी मजबूरी कम हुई वे लौट भी गए हैं। आज के समय में पहाड़ ही नहीं कोई भी प्रदूषण, महामारी से बचते हुए अच्छा जीवन जीना चाहेंगे। लेकिन किसी ने सही कहा है कि यहां महामारी से मरेंगे तो वहां भूख से मर जाएंगे। हमें जल्द से जल्द संवाद शुरू करना चाहिए। यह अच्छा मौका भी है।
सोशल मीडिया से सवाल
विजय प्रसाद ममगांई, गैरसैंणः यहां से काम करना चाहें तो भी नहीं कर सकते, ऐसे में डिजिटली हम उस स्तर पर कब पहुंचेंगे कि पहाड़ से अपना काम कर सकें?
देखिए, उसके लिए हमें 15, 20, 25 साल का विजन बनाना चाहिए। जब हिंदुस्तान की आजादी के 100 साल होंगे तो देश की क्या तकनीकी जरूरतें होंगी। उसके बाद हमको उत्तराखंड के बेस्ट ब्रेन को दुनियाभर में जहां कहीं भी हों, वैज्ञानिक, इंजीनियर, आईटी कंपनी के सीईओ हैं उनसे कहना चाहिए कि हमारी मदद कीजिए और 25 साल का ब्लू प्रिंट दीजिए टेक्नोलॉजी का। वहां से काम शुरू होना चाहिए। इसे करने के लिए हमें 5 लाख करोड़ (एक उदाहरण के तौर पर) रुपया चाहिए। लेकिन उतने पैसे हमारे पास तो नहीं हैं तो हम कहेंगे दुनिया के बेस्ट फाइनेंस के लोगों से कि बताइए क्या किया जाए। फिर हम राजनीतिक सहमति विकसित करेंगे कि सरकार किसकी भी हो इन विषयों पर काम नहीं रुकना चाहिए। इसके बाद हम ब्यूरोक्रेटिक कंसेसस बनाएंगे। कनेक्टिविटी का इशू बड़ा है। ऐसे तो हम सोचेंगे कि गांव तक हमें कनेक्टिविटी करनी है और गांव में लोग नहीं है… ऐसे में हम यही सोचते रहेंगे कि शुरू कहां से करें। आखिर में ऐसे ही चलता रहेगा। हम कहेंगे कि जितने संसाधन हैं उसमें आप चलाइए, फिर हम चलाएंगे और ऐसे ही चलता रहेगा।
देवेंद्र असवाल, दिल्लीः भ्रष्टाचार पर सख्त कानून पर लागू करना होगा, अभी एक्शन कम दिखता है?
भ्रष्टाचार निश्चित तौर पर एक प्रशासनिक मसला है। इसमें सुधार होना चाहिए। लेकिन आप देखिए तो यह उतना बड़ा इश्यू नहीं है, इससे पहले और भी बड़े मुद्दे हैं। आप बात कर रहे हैं कि ट्रेन की सफाई होनी चाहिए और ट्रेन चल ही नहीं रही है। बहुत सफाई कर लोगे तो ट्रेन तो स्टेशन पर खड़ी है और वह इसके लिए थोड़ी बनी थी। वह तो एक स्थान से दूसरे जगह ले जाने के लिए बनी है। हां, भ्रष्टाचार एक मुद्दा है लेकिन उत्तराखंड को उससे बड़े मसलों पर पहले काम करना होगा।
2 comments
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Subhash Chander Badola
June 30, 2021, 1:57 pmThe outcome of this interview/ interaction appears to be a big ZERO. Make beginning to arrest the route cause i.e. high level of corruption. There should be strict surveillance on loan distribution system/ financial support by Govt to start a small business. Hang the engineers, contractors and the officials involved in compromising the safety of the roads and flyovers. Focus on enhancing tourism by giving small concessions. Dairy farming may contribute a lot in development of the state. Identify talent in each and every village following a fair system of identification, make different groups of such talents at block level and the government shall extend full support to such talented groups. Based on the specific areas of talent encourage these groups to start a small business in UK. Senior retired officers can also be involved for interaction with the Government on behalf of these groups. Establish Civil Services coaching centres at Pauri, Almora, Haldwani and Kotdwar with a nominal tution fee. Faculty can be retired or serving Civil Services officers from UK or those interested to do it as a volunteery service.
REPLYShishRam kanswal
July 1, 2021, 7:04 amबहुत सुंदर।सौंदर्य डोभाल नामक महान उत्तराखंडी का इंटरव्यू अर्जुन रावत जी द्वारा लिया गया है। मेरी नजर में बस एक कमी रह गई।आम का मौसम होने पर भी सौर्या डोभाल से नहीं पूछा कि वे आम काटकर खाना पसंद करते हैं कि चूस कर। आम के बारे सवाल जबाव इस साक्षात्कार को कनैडियन नागरिक अक्षय कुमार द्वारा मोदी जी के इंटरव्यू को मात कर देता। मेरे विचार से सहमत होना जरूरी नहीं है
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