कैबिनेट मीटिंग के बाद सीएम तीरथ सिंह रावत ने गैरसैंण कमिश्नरी का दर्जा खत्म कर दिया है। पिछली सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हुआ था। बीजेपी के नेताओं ने भी कहा था कि उनसे इस बाबत चर्चा न कर अचानक फैसला ले लिया गया।
मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत अपनी ही पार्टी के पिछले सीएम के फैसलों को लगातार पलट रहे हैं। दरअसल, जब बीजेपी ने अचानक उत्तराखंड में अपना सीएम और प्रदेश अध्यक्ष बदला था तो कहा गया था कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही थी। ऐसे में पार्टी ने अगले विधानसभा चुनाव से एक साल पहले ही प्रदेश में अपने प्रमुख चेहरे बदल दिए।
अब नए सीएम तीरथ एक-एक कर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के फैसलों की समीक्षा कर रहे हैं। पिछले 24 घंटों में उन्होंने दो बड़े फैसले को पलटा है। उन्होंने प्रदेश के 51 मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया है। त्रिवेंद्र सरकार के इस फैसले के बाद साधु-संत काफी नाराज हो गए थे।
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दूसरे बड़े फैसले के तहत तीरथ सरकार ने गैरसैंण मंडल की घोषणा पर ब्रेक लगा दिया। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैंण में बजट सत्र के दौरान गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा की थी। इस पर भी काफी नाराजगी थी। नेतृत्व परिवर्तन होते ही इस पर दोबारा विचार होने लगा था।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया और एक साल बाद अचानक गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का निर्णय ले लिया। इसमें गढ़वाल मंडल के दो जिले चमोली और रुद्रप्रयाग और कुमाऊं मंडल के दो महत्वपूर्ण जिले अल्मोड़ा और बागेश्वर को मिलाकर नई कमिश्नरी के गठन की घोषणा हुई।
राज्य में दो कमिश्नरी गढ़वाल और कुमाऊं थीं। इन दो कमिश्नरियों के लोगों को गढ़वाली और कुमाऊंनी के तौर पर जाना जाता है। अल्मोड़ा जिले से कुमाऊं के लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं। इसे कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी भी कहते हैं। त्रिवेंद्र सरकार के फैसले से कुमाऊं के लोगों को लगने लगा कि उनकी पहचान खत्म हो जाएगी। गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की घोषणा से कुमाऊं, गढ़वाल के कई विधायक और मंत्री भी नाराज हो गए थे।
मंत्री-विधायकों की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह थी कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले किसी से विचार-विमर्श नहीं किया गया। अब सरकार ने पूर्व सरकार की इस घोषणा को रद्द कर दिया है।
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