सेना से सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल अपने समाज सेवा के मिशन को और रफ्तार देने के लिए आम आदमी पार्टी से जुड़ गए हैं। उत्तराखंड को लेकर उनका एक अलग विजन रहा है, यही वजह है कि सियासी समर में उनकी आमद ने हलचल पैदा कर दी है। कोरोना काल में कर्नल कोठियाल की सक्रियता ने उनकी विजनरी शख्सियत को और पुख्ता किया है। वह युवाओं के रोल मॉडल हैं, युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाने के लिए उनके पास कई योजनाओं का ब्लूप्रिंट तैयार है। सेना, पर्वतारोहण, केदारनाथ का पुनर्निर्माण कर्नल कोठियाल की नेतृत्व क्षमता की कहानियां खुद बताते हैं।
सियासी संग्राम का हिस्सा बनने के बाद के हालात और उत्तराखंड को लेकर उनके विजन पर हिल-मेल ने कर्नल कोठियाल से विस्तार से चर्चा की। हिल-मेल और ओहो रेडियो उत्तराखंड के संयुक्त कार्यक्रम में आरजे काव्य की कर्नल (रिटा.) अजय कोठियाल से बातचीत।
यूथ फाउंडेशन ने शिमला बाइपास के पास एक मिनी अस्पताल तैयार किया है। उसके बारे में बताइए?
मैंने सोचा कि कोरोना महामारी में हम किस तरह से अपना रोल प्ले कर सकते हैं? ऐसे में हमने सबसे पहले देहरादून के बड़े डॉक्टरों से इस पर चर्चा की। एक डॉक्टर हैं, डॉ. अशोक लूथरा, मैंने उनसे सलाह ली और उन्होंने तीन चरण में इसे करने की सलाह दी। यूथ फाउंडेशन ने देहरादून में मिनी मिलिट्री मॉडल पर अस्पताल खड़ा किया। इसे सरकार ने भी मंजूरी दे दी है। शायद यह पहली बार हुआ है। हम इस तरह की हेल्थ फैसिलटी को पहाड़ों में भी लेकर जा सकते हैं जिससे हेल्थ डिपार्टमेंट को जो आज समस्या हो रही है, उससे निपटने में कुछ मदद हो सके। कोरोना महामारी से पहले ही यूथ फाउंडेशन के कैंप के लिए 650 लड़के सिलेक्ट हो चुके थे, जो सेना में भर्ती होने के लिए यहां प्रशिक्षण प्राप्त करते। अब उनकी कॉल आने लगी- सर, पाकिस्तान से तो तब लड़ेंगे जब कैंप में प्रशिक्षित होंगे और सेना में भर्ती होंगे। आप हमें महामारी में इस्तेमाल करिए, ऐसे में उनका जोश और हौसला देखकर मेडिकल सलाह पर ग्रुप बनाए और लॉन्च कर दिया। आज ये पहाड़ों में जाकर गांववालों की मदद कर रहे हैं, हर गांववाले को ये चेक करेंगे जैसे ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल, तापमान आदि। अगर लोगों की मदद की जरूरत है तो वे आगे भी सहयोग करेंगे। ये उत्तराखंड के हर गांव में पहुंचने की काबिलियत रखते हैं।
कितना मुश्किल होता है जब एक व्यक्ति के दो चेहरे हो जाते हैं। यूथ फाउंडेशन के साथ- साथ अब आप एक पार्टी का चेहरा है। कितना मुश्किल या आसान रहा?
आज आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने के बाद भी लोग हमसे उम्मीद करते हैं, जैसे पहले हमारी आंख में घूरते थे, अब भी करते हैं। उत्तराखंड के नवनिर्माण के जिस मकसद से हमने पार्टी ज्वाइन की है, उसके लिए राजनीतिक प्लेटफॉर्म है, जज्बा भी है और सब लोगों का सपोर्ट है।
जिंदगी छोटी है और काम बड़े करने हैं। क्या वाकई में आप मानते हैं कि जब इंसान एक्टिव पॉलिटिक्स में होता है तो पूरे वातावरण को बदल सकता है?
मुझे बैकग्राउंड नहीं पता है कि यहां के नेता कैसे रहे हैं। लेकिन मेरा 29 साल का सेना का अनुभव, 7-8 साल उत्तराखंड के सुदूर इलाकों में काम करने का अनुभव… जिसमें हमारा रोल चैलेंजिंग वाला रहा, चाहे वह केदारनाथ पुनर्निर्माण हो, धारी देवी मंदिर पानी में डूब गया था, चाहे यूथ को डायरेक्शन देने के लिए एक फाउंडेशन बनाना था। मुझे पता है कि ये सब अनुभव मेरे पास है और एक प्लेटफॉर्म है तो क्यों नहीं हम पुनर्निर्माण करें। क्यों न पुराने सफल मॉडल को उत्तराखंड में अपनाया जाए, जहां पहाड़ की बनावट अलग है, लोगों की सोच अलग है। उत्तराखंड को बने हुए 20 साल हो गए। अगर हमें लगता है कि चीजें ठीक नहीं हो रही हैं तो बैक टू बेसिक्स, 20 साल पहले जो सोचा गया था, जो सपने थे उसे पूरा करने के लिए कहां गलती हो गई उसे सही करेंगे।
उत्तराखंड के लिए आप हेल्थ को कितना बड़ा इशू मानते हैं?
आज पहाड़ों में स्वास्थ्य और शिक्षा ऐसे बड़े कारण हैं जिसके चलते लोग नीचे आने के लिए मजबूर हैं। हेल्थ से जुड़े जो काम करने वाले लोग हैं- जैसे आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताएं हैं, उनके काम को देखता हूं तो उनमें जज्बे की कोई कमी नहीं दिखाई देती है तो कहां प्रबंधन में गड़बड़ी हो रही है। आज यूथ फाउंडेशन और आम आदमी पार्टी के वॉलंटियर आशा वर्कर और आंगनवाड़ी की महिलाओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि एक ब्रिज बनाने की जरूरत है तो पहाड़ों की सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी। पहाड़ में प्रसव के दौरान महिला की मूलभूत जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती हैं। ऐसे में दुर्भाग्यवश मौत भी हो जाती है। कोरोना काल में हेल्थ को लेकर जो तरीका हम अपना रहे हैं, उसके बाद भी हम पहाड़ों में अपनाने की कोशिश करेंगे। भारतीय मेडिकल एसोसिएशन के बड़े अच्छे डॉक्टर हैं, हम उनके सामने हम परेशानियों को रखेंगे और उनके सुझाव पर हम ग्राउंड टीमें तैयार करेंगे।
पार्टी ज्वाइन करने के बाद क्या किसी ऐसे राजनेता से बात हुई, जो पहले से सक्रिय हैं? क्या कहा उन्होंने?
हम वो लोग हैं कि अगर एक बार फैसला कर लिया तो हम पीछे नहीं हट सकते हैं। हमको तो कई लोगों ने पार्टी ज्वाइन करने से पहले और बाद में अप्रोच किया लेकिन एक बार कदम बढ़ा दिया तो अब पीछे हटने का सवाल नहीं। हां, मैंने उन लोगों से यह जरूर कहा कि आप हमें अच्छा मानते हैं और हम उसी तरह से काम करेंगे। आप हमें सपोर्ट करो और सलाह दो। हम तरक्की वाली पॉलिटिक्स करने वाले हैं। हम करके दिखाने में यकीन करते हैं और उसे आगे लेकर चलते हैं। हम इस चीज में नहीं पड़ते हैं कि किसी ने खिलाफ बोल दिया तो हम उसमें पड़ें। हम अपनी जो रचनात्मक ऊर्जा है, उसे किसी भी दूसरे की डिस्ट्रक्टिव एनर्जी में क्यों वेस्ट करें।
फौजी हैं, यूथ फाउंडेशन अच्छा चल रहा है राजनीति में क्यों जा रहे हैं, जो लोग अलग बैकग्राउंड से आते हैं तो कहा जाता है कि राजनीति इनके लिए नहीं है तो आखिर किसके लिए होती है?
एक फेमस बुक है नंदन नीलेकणि की… इमेजिनिंग इंडिया। मैंने पढ़ी है। मोटी बुक थी तो मैंने सोचा इंट्रोडक्शन पढ़ता हूं और वह इतनी अच्छी लगी कि मैंने पूरा पढ़ लिया। इंट्रोडक्टरी में लिखा था कि नीलेकणि अपने ऑफिस में बैठे हैं और एक अमेरिकी आता है और बोलता है मिस्टर नंदन मुझको तो मजा आ गया। क्या सेटअप है आपका, ऑफिस परिसर में आया, गेट पर आया तो वह अपने आप खुल गया। अंदर जो पेड़-पौधे लगे हैं, तो वहां फूल, फल और छाया देने वाले हैं। मधुमक्खियां और चिड़िया यहां आ रही हैं। रिसेप्शन पर लेडी ने एक कार्ड दिया और उसमें अपने आप दिशा पता चलती गई और मैं आपके पास आ गया। आपके ऑफिस में देख रहा हूं तो बड़ा सा दफ्तर कोई फाइल नहीं। आपने चार मशीनें रखी हैं- एक चाय, एक कॉफी, एक कोक और एक पानी के लिए। अपने आप आओ और पियो। इससे अच्छा वर्क कल्चर तो कहीं नहीं हो सकता है। अमेरिकी बोलता है- मैं आपको सैल्यूट करता हूं। इस पर नीलेकणि बोलते हैं- थैंक्यू। तब अंग्रेज बोलता है- लेकिन ये बताइए जब मैं एयरपोर्ट पर उतरा। आपने मर्सिडीज भेज रखी थी। ये जो 76-77 किमी की दूरी थी। बीच में सड़क में मैंने गड्ढे देखे, मुर्गियां सड़क पार कर रही थीं। बैल और सांड आराम से सड़क पर बैठे थे। बिजली के खंभों के तार ऐसे उलझे थे कि बारिश में उसके नीचे खड़े हो जाओ तो गीले नहीं होगे। एक पान की दुकान पर साइकिल खड़ी है उसकी वजह से ट्रैफिक जाम हो रहा है। आगे गया तो एक चुंगी पर ड्राइवर ने 100 रुपये दिए। उसने अंदर देखा तो अंग्रेज को देखकर बोला- 100 नहीं हजार रुपये दो। अंग्रेज ने पूछा कि ये क्या तरीका है। नीलेकणि बोले- हम तो अंदर ही देख सकते हैं। बाहर तो पॉलिटिक्स है। तो वह अंग्रेज बोलता है कि फिर आप यहां क्या कर रहे हो, जाइए और राजनीति ज्वाइन कीजिए। अगर यूथ फाउंडेशन ही मुझे देखना है और बाहर कुछ और हो रहा है तो मैं ऐसे 10 यूथ फाउंडेशन कैसे बनाऊंगा। नंदन नीलेकणि की किताब में उस विदेशी ने जो मैसेज दिया है। मुझे भी सुनने को मिलता रहता है कि क्या कर रहे हैं। पर वो है न …खिलाफ में हवा नहीं चलेगी तो पतंग उड़ेगी कैसे। मोटिवेशन के लिए क्या जरूरी है, आजकल कर्नल कोठियाल को जब टीम बताती है कि सुबह ये मैसेज आए हैं, सोशल मीडिया पर किसी ने ये कहा है।
आपकी हर सुबह की शुरुआत किस मोटिवेशन के साथ होती है?
देखिए, टफ टाइम तो है। प्रयास भी काफी करने पड़ते हैं। कोविड के खिलाफ जंग में हम पूरी तरह से लगे हुए हैं। लोगों की आंखों में देखिए अगर वे उम्मीद से देख रही हैं तो मोटिवेशन अपने आप मिल जाता है। एक हमारे सीनियर ने कहा था कि अगर देशभक्ति समझनी है तो 1962 की लड़ाई में शहीद लोगों के लिए जो गाना लता मंगेशकर ने गाया था- ऐ मेरे वतन के लोगों… सुनो। अगर वह गाना सुनकर तुम्हारे रोंगटे खड़े होते हैं तो तुम्हारे अंदर देशभक्ति है। उन्होंने कहा था कि अगर सुबह 6 बजे पीटी के लिए निकले और जो सिपाही सबसे पहले मिला और बोलता है- जय बद्रीविशाल श्रीमान तो इसका मतलब आपसे ये उम्मीद की जा रही है कि आप पीटी के दौरान नए तरीके की एक्सरसाइज करेंगे। उस मोटिवेशन को देखने की जरूरत है।
जब आप एक पार्टी का हिस्सा होते हैं तो अपनी पार्टी के अलावा भी तो कुछ नेता ऐसे होते होंगे, जो अच्छा काम करते हैं?
अच्छे लोगों की कमी नहीं है। चाहे वो समाज में हों, राजनीति में हो, बाबा हो, या सेना में होगा। लेकिन दुर्भाग्यवश जो 10 प्रतिशत निगेटिव एलीमेंट ऐसा वातावरण बना देते हैं कि पॉजिटिव एलीमेंट साइलेंट हो जाते हैं। कुछ निगेटिव हैं और ज्यादा पॉजिटिव हैं। लेकिन पॉजिटिव सोच के विधायक जल्दी से पहचाने नहीं जा पाते। मैं उम्मीद करता हूं कि दूसरी पार्टियों से पॉजिटिव सोच वाले हमारे साथ भी आएं क्योंकि हम आपस में भी यार-दोस्त हैं। कई लोग तारीफ कर रहे हैं। हम तो यहीं के हैं। आने वाले समय में देखेंगे।
वो कुछ चीजें जिस पर आपका चुनाव बाद ज्यादा फोकस रहेगा, अगर आपको जिम्मेदारी मिलती है?
हेल्थ सेक्टर, एजुकेशन, रोजगार और फ्री का बिजली-पानी। ये इंग्लैंड और कनाडा का मॉडल है। मॉडल अलग होंगे पर उत्तराखंड के लिए होंगे।
दो टूक –
नेशनल पार्टी बनाम क्षेत्रीय दल
कई बार लगता है कि स्टैबलिश्ड पार्टी है, उसमें काम करने वाले कार्यकर्ता और लीडर हैं। पर मुझे समझ में नहीं आता कि इतनी स्टैबलिश्ड पार्टियां बेसिक्स को उस मोड में क्यों नहीं ले जा पा रही हैं कि सोसाइटी की बेसिक जरूरतें पूरी हों। अगर उन स्टैबलिश्ड पार्टी के बीच में एक नई पार्टी है, पर अनुभवी है। इस पार्टी के पास प्रबंधन और संगठन के साथ सरकार चलाने का अनुभव है। दो पार्टियों के बीच में इस पार्टी को स्टैबलिश करने में समस्या आती है, वेल विशर को यह समझाने में थोड़ी चुनौती आती है कि सर ये क्या कर दिया और पर जब उन्हें बात समझ में आती है, तब लगता है कि अच्छा सर ने ये किया है।
उत्तराखंड नवनिर्माण के मायने
मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं। यह पहाड़ी इलाका है जंगल हैं और लगभग हर साल आग लगती है तो करीब एक महीने पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पेज पर पहाड़ के जंगल की आग पर डेटा था। उसमें लिखा था कि उत्तराखंड ही नहीं, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी जंगल में आग लगती है। उत्तराखंड में आग से तबाही ज्यादा है। यहां चीड़ के पेड़ की वजह से आग लगने की बात बताई जाती है। रिपोर्ट में बताया गया था कि 60-70 फीसदी पोस्ट खाली हैं और वह उन लोगों की है जो जंगल में आग लगने पर आगे जाकर आग बुझाते हैं। यह बड़ी सिंपल सी चीज है कि अगर हमने इन वैकेंसी को भर दिया तो 3 करोड़ रुपया साल का एक्स्ट्रा खर्च आ गया। लेकिन जो 100 करोड़ का नुकसान जंगल में आग लगने की वजह से हो रहा है तो अब 20 करोड़ का ही होगा, 80 करोड़ बचेंगे। जब मैं इंडियन मिलिट्री एकेडमी में था तो हमें सिखाया गया था मैप रीडिंग। उस समय जीपीएस नहीं होते थे तो कैसे आप जमीन की बनावट को देखकर एक टारगेट से दूसरे तक पहुंच सकते थे। उसमें एक कॉमन लैंडमार्क है फायर लेन। अगर आप जंगल में चल रहे हो तो 8-10 मीटर चौड़ी सड़क बनी होती है तो वह केवल चलने के लिए नहीं होती। वह इसलिए होती है कि अगर आग बाईं और लगी है तो दाहिनी ओर न जा पाए। हमें बस इतना करना है कि बीच में कोई पेड़ उग गए हों तो उसे काट दो। सूखी घास इकट्ठी हो रही है तो उसे अलग कर दो। अगर जंगल में आग लगती है तो एक आग पीटने, एक हुक जिससे लकड़ी हटा सकें, गीला कंबल आदि से हम निपट सकते हैं। इसकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 1 करोड़ होगी और इससे कई करोड़ का नुकसान बच जाएगा। पर्यटन की बात करें, तो जैसे डोडीताल 6 लोगों का एक ग्रुप जा रहा है हम जो गाइड या सहयोगी मुहैया कराते हैं। उनसे यह कहना है कि तुम एक कहानी भी सुनाओ। डोडीताल में आखिर में जब पहुंचते हैं तो अगोड़ा का लड़का कहानी सुनाता है कि यहां लाल रंग का बुरांश का फूल है। हमारे यहां इसका जूस भी बनता है। इसकी जड़ों की वजह से जमीन मजबूत होती है। आगे जाने पर सफेद और नीले रंग का भी बुरांश दिखाई देता है। वह लड़का कहानी सुना रहा है लेकिन जो ट्रेकिंग वाला आया है वह डोडीताल के साथ उस लड़के के स्टोरी नरेशन से और ज्यादा प्रभावित होगा। अगले साल जब वही ग्रुप आता है तो वह किसी टीम से नहीं बल्कि उसी लड़के के साथ जाना पसंद करेगा और कहेंगे कि वह लड़का जब फ्री होगा तब ट्रैकिंग के लिए जाएंगे।
सोशल मीडिया से दर्शकों के सवाल
कुलदीप सिंह बिष्ट का सवाल- सर, आप प्रेरणा हैं लोगों के, लेकिन आपने इस बार पार्टी गलत चुन ली।
देखिए कई बार ये नैरेटिव बनाए जाते हैं। अब वो नैरेटिव ऐसे बन जाते हैं कि कोई ऊपर उठ रहा है तो उसे डाउन कैसे किया जाए, तो उसके लिए निगेटिविटी खड़ी की जाती है। आज सोशल मीडिया के जरिए हमारी कनेक्टिविटी बहुत बढ़िया है। बिना ज्यादा जाने हम किसी इंसान या पार्टी के बारे में एक धारणा बना लेते हैं। चूंकि हम लोग पहाड़ के समझदार लोग हैं क्योंकि हमने बचपन से चुनौतियों का सामना किया है। ऐसे में हमें उस नैरेटिव को समझने की जरूरत है जो गलत तरीके से हमारे सामने रख दिया जाता है और इस वजह से उत्तराखंड में प्रोग्रेसिव सोसाइटी बन नहीं पा रही है। लोग बोलते हैं दिल्ली की पार्टी, हम बोलते हैं- दिल्ली का शिक्षा मॉडल, दिल्ली का हेल्थ मॉडल। मैं तो कहता हूं दिल्ली ही क्यों लुधियाना क्यों नहीं। वहां सबसे अच्छे ऊनी कपड़े बनते हैं। गरम कपड़े आर्टीफिशियल वूल तो कहीं भी मिल सकते हैं। वहां काम करने के लिए उत्तराखंड के लड़के जाते हैं। स्वेटरों का मार्केट कहां है जहां सबसे ज्यादा ठंड होती है मतलब हिमालय में। अब देखिएगा उत्तराखंड के लड़कों ने लुधियाना में काम किया, ऊनी कपड़े तैयार हुए और वे देहरादून या उधमसिंह नगर आए। वहां से पहाड़ों में ऊपर जाता रहता है। मतलब
केवल दिल्ली मॉडल नहीं, लुधियाना जैसे भी मॉडल हैं जिस पर हमें काम करना होगा। हमें बॉम्बे का मॉडल भी लाना है कि कैसे हम होटल में बर्तन धोने वाले नहीं हैं हम वह प्रबंधन भी सीखते हैं और उसे आगे बढ़ाना है।
जगजीत का सवाल- मान लीजिए आप जीत जाते हैं और आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं बनती तो क्या जो दूसरी सरकार बनेगी उसके साथ जुड़ेंगे?
मुझे दोनों चीजें देखनी हैं। जो मेरे काम करने के प्लान और तरीके हैं जो मैं फॉलो करूंगा, और मुझे राजनीति में निगेटिव वातावरण को भी समझना है। जगजीत मेरे शुभचिंतक हैं। जगजीत ने केवल सवाल नहीं किया है उन्होंने कहा है कि सर, ये चीजें भी समझना, जो आगे आएंगी। लेकिन आप अपने फोकस से नहीं हटना।
क्षितिज पांडे का सवाल- आम धारणा है हिंदू विरोधी पार्टी या फौज से सबूत मांगने वाली पार्टी, ऐसी चीजें बार-बार लिखी जाती हैं तो इसे कैसे लेते हैं?
अगर बोलते हैं हिंदू विरोधी पार्टी… मैं एक उदाहरण देता हूं। 26 फरवरी 2020 को मैं बर्मा में था। मुझे पता नहीं था कि दिल्ली में दंगे हो गए हैं। उस दंगे में उत्तराखंड में पैठाणी क्षेत्र का लड़का था दिलबर नेगी। वहां दिल्ली में एक मिठाई की दुकान में काम करता था। वहां आग लगने से मौत हो गई। दिल्ली पुलिस केंद्र के अधीन आती है। वहां का जो विधायक था वह मुसलमान था। आम आदमी पार्टी का था। मैंने हालात को चेक किया। जब पार्षद पर आरोप लगे, पार्टी ने हटा दिया। जहां दिलबर नेगी की मौत हुई है, वहां का विधायक बीजेपी का था, नाम मोहन सिंह बिष्ट। वह उत्तराखंड का है, किसी ने देखा ही नहीं। वहां कपिल मिश्रा हैं, उन्होंने कहा कि दिलबर के घरवालों को हम तीन लाख रुपये देंगे। मेरी एक फॉलोअर है, उसका नाम है नेहा जोशी। मैं चाहता हूं कि वह अच्छा करे तो उससे यूथ और अच्छा करेंगे।
वह हमारी रेजीमेंट के गणेश जोशी की बेटी हैं। नेहा ने एक लाख रुपये दिलबर के घरवालों को दिए। उत्तराखंड सरकार ने भी 5 लाख रुपये दिए। दिल्ली में क्योंकि दिलबर की डेथ हुई थी, ऐसे में आम आदमी पार्टी ने 10 लाख रुपये दिए। 26 फरवरी को 3-4 महीने के बाद एक और घटना घटती है। दिल्ली में मिंटो ब्रिज के पास ऑटो चलाकर एक आदमी जा रहा था। ऑटो डूब जाता है। 2 दिन के बाद बॉडी मिलती है। वह था पिथौरागढ़ का कुंदन सिंह। उसकी जब मौत हुई तो न कपिल भाई आए, न नेहा आई, न उत्तराखंड सरकार आई। आम आदमी पार्टी ने 10 लाख रुपये दिए। ऐसी वाली चीजें सुनकर कभी भी नैरेटिव नहीं बन सकते। मैं
बोलना चाहता हूं कि अरविंद केजरीवाल ने आईआईटी खड़गपुर से अपनी इंजीनियरिंग करी। उन्होंने मदर टेरेसा की संस्था के तहत कोलकाता में समाज सेवा की। उन्होंने इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज ज्वाइन की। वहां से प्री-मैच्योर रिटायरमेंट लिया। वह शख्स जब एक लाइन बोलता है तो इंडियन आर्मी वाले खुश होते हैं कि केजरीवाल ने ये बोला। जब एयर स्ट्राइक भारत ने की तो हमारी मोदी सरकार ने तगड़ा फैसला लिया। इससे पहले इजरायल ही ऐसा करता था और घुसकर मारता था। अरविंद केजरीवाल सेना की तारीफ करते हैं लेकिन उनके वीडियो से दो लाइन काटी और उसका अलग मतलब निकालकर नैरेटिव अलग सेट कर दिया गया। अगर अजय कोठियाल को बोला जाए राष्ट्रवाद की बात… तो जिस आदमी के शरीर में गोलियां हैं, जो शादीशुदा नहीं है। जो आदमी अपनी इच्छा से कुछ मकसद से आगे जाना चाहता है, उसे किसी ने सिलेक्ट किया है। क्या उस अजय कोठियाल को बोला जा सकता है कि वह गैर राष्ट्रवादी है। अगर कोई बोलेगा तो लोग हंसेंगे। इन चीजों पर ज्यादा पड़ना नहीं चाहिए लेकिन पढ़े-लिखे को जरूर अपनी नॉलेज बढ़ानी चाहिए। नैरेटिव बनाकर सोशल मीडिया के चक्कर में नहीं फंसना है। हम उत्तराखंडी समझदार
लोग हैं। हमें उत्तराखंड को बनाना है। पता है, जब सेना की गढ़वाल राइफल पूरी तैयारी के साथ दुश्मन के पोस्ट पर अटैक करती है और जब आखिर के 200 मीटर बचते हैं तो कोई ट्रेनिंग काम नहीं आती है। उस आखिरी 200 मीटर की लड़ाई केवल जज्बे से लड़ी जाती है। उस समय जब गढ़वाली सोल्जर अंदर घुसता है तो वह बोलता है बोल बद्रीविशाल की जय, यह जानते हुए कि इन तीन में से केवल एक ही बचेगा, दो मारे जाएंगे। फिर भी वह घुसता है।
आशीष डंगवाल का सवाल- पार्टी ज्वाइन करने के बाद आपकी निजी जिंदगी में क्या बदलाव आए हैं?
कुछ कमिटमेंट बढ़ गए हैं। अब कॉल और मैसेज आने ज्यादा हो गए हैं। निजी जिंदगी में असर तो डालते हैं। पहले टाइम ही टाइम था तो बात हो जाती थी, अब व्यस्तता बढ़ गई है। 5 दिन से अपने पिताजी से बात नहीं हुई है। लेकिन व्हाट्सएप पर मैसेज चलते रहते हैं। ये कुछ बदलाव निजी जिंदगी में आते हैं। वो कहते हैं न कि साधु बनने के लिए कई चीजें छोड़नी पड़ती हैं। कपड़े चेंज करने पड़ते हैं, हिमालय में अकेले बैठना पड़ता है लेकिन उसे कहते हैं जुनून, पैशन, उसका मजा अलग है।
इंद्रमणि जोशी का सवाल- कर्नल साहब से अनुरोध है टिहरी झील पर टिहरी से उत्तरकाशी पर जलमार्ग बनाया जाए। आपका ड्रीम प्रोजेक्ट है। कृपया इस पर कुछ बताइए?
इन चीजों पर हमें सोचने की जरूरत है। अगर मैं बोलूं टिहरी झील में जब पानी भर रहा था तब हम छोटे थे। उस समय एक गांव डूब रहा था, एक आदमी 90 साल का था। उसने कोट पहन रखे थे उसमें लेफ्ट शोल्डर पर मेडल लगे थे। वह गढ़वाल राइफल्स का रिटायर्ड सोल्जर था। उसके सामने गांव का छोटा सा मंदिर बाढ़ के पानी से थोड़ा ऊपर दिखने लगा था। टिहरी डूब क्षेत्र की भावना वैसी ही है। 70 किमी तक वहां जलमार्ग में आवागमन हो सकता है। हिमालय से मलबा आता है पर उसे हटाया जा सकता है। आध्यात्मिक पर्यटन हो सकता है, टिहरी झील में गंगा का पानी है उस पर अगर इंसान चले तो उसे सुकून मिलेगा। खैट पर्वत की कहानी है जब 19-20 साल के बच्चे रंगीन कपड़े नहीं पहनते, उस समय कोई यंत्र नहीं बजाते। वनदेवी की यात्रा ऊपर से निकलती है। खैट पर्वत के पीछे कितनी बढ़िया गाथा है। लोग उस कहानी से प्रभावित होंगे। लोग ज्यादा समय वहां गुजार सकेंगे। जरूरी नहीं, वहां प्लेन लैंडिंग कराएं। उसके बाद लोगों को क्या दिखाएं यह समझना है। उस गंगा नदी के बने सागर में एक थी टिहरी, ऊपर है खैट पर्वत, बाएं तरफ प्रताप नगर है। एनआईएम को शामिल करके पैरा ग्लाइडिंग कराई जा सकती है। टिहरी में नदी के साथ चलने में उसे काफी आनंद आएगा।
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