हिल-मेल ब्यूरो, देहरादून बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामना उत्तराखंड वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। राज्य में हर महीने औसतन पांच लोग जंगली जानवरों के हमले में मारे जा रहे हैं। वर्ष 2019 में 58 लोगों ने जानवरों के हमले में अपनी
हिल-मेल ब्यूरो, देहरादून
बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामना उत्तराखंड वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। राज्य में हर महीने औसतन पांच लोग जंगली जानवरों के हमले में मारे जा रहे हैं। वर्ष 2019 में 58 लोगों ने जानवरों के हमले में अपनी जान गंवाईं, जबकि 259 लोग घायल हुए। ये आधिकारिक आंकड़े हैं। उत्तराखंड वन विभाग के सामने बजट, संसाधन, मैन पावर की कमी ही सबसे बड़ी चुनौती है। राज्य के ज्यादातर हिस्सों में इस दौरान ग्रामीणों ने जंगली जानवरों के हमलों में अपनों को गंवाने के बाद विरोध प्रदर्शन किए। इस समस्या का समाधान तभी मिलेगा जब विभाग और स्थानीय लोग एकजुट होकर कार्य करें।
आंकड़ें बताते हैं कि साल 2019 में सांप का डंक सबसे ज्यादा घातक साबित हुआ। लेकिन गुलदार की गुर्राहट पहाड़ के कई हिस्सों को डराती रही। इसके साथ ही भालू के बढ़ते हमले नई चिंता जगा रहे हैं। वन विभाग गुलदार से निपट नहीं सका है और भालू नई मुश्किल खड़ी कर रहा है।
वन विभाग द्वारा जारी किए गए इन आंकड़ों में वन्यजीवों के साथ सांप के काटने से होने वाली मौतें भी शामिल हैं। गुलदार के साथ भालू के हमले लगातार बढ़ रहे हैं।
वर्ष 2019 में वन्यजीवों की मौत
राज्य में 94 गुलदारों की मौत हुई है। इंसानों की मौत के बाद ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए पिछले वर्ष कई गुलदारों को मानव–जीवन के लिए खतरा भी घोषित किया गया है। पिछले वर्ष 11 बाघों की मौत हुई है। जिसमें चार नर, तीन मादा और 4 अज्ञात थे। आपसी संघर्ष में 5 बाघ मारे गए। जबकि कुल 21 हाथी इस दौरान मृत्यु के शिकार हुए। इसमें से 4 दुर्घटना में मारे गए।
तीन बिजली के तारों के चलते, 3 आपसी संघर्ष में, 8 प्राकृतिक तौर पर, 2 ट्रेन एक्सीडेंट में, एक की अज्ञात कारण से मौत हुई। शिकार की बात करें तो 2001 से अब तक आधिकारिक तौर पर 6 बाघ के शिकार और एक हाथी के शिकार को दर्ज किया गया है।
क्यों बढ़ रहा मानव-वन्यजीव संघर्ष
हम जितना ज्यादा जंगल के नज़दीक पहुंच रहे हैं ये समस्या उतनी ही अधिक बढ़ रही है। मध्य हिमालयी जंगल में भोजन की कमी की समस्या भी बनी हुई है। जिसके चलते गुलदार जैसे जानवर भोजन के लिए रिहायशी बस्तियों की ओर आ रहे हैं। जंगल में हिरन-कांकड़, जंगली मुर्गे जैसी जीवों की तादाद घटी है।
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी कहते हैं इस संघर्ष के बढ़ने के पीछे कचरा प्रबंधन न होना एक बड़ी वजह के रूप में सामने आ रहा है। जंगल के पास कचरा फेंका जाता है। जहां जानवरों को आसानी से भोजन मिल जाता है। गुलदार ही नहीं हरिद्वार में हाथी जैसे जानवर भी आसान भोजन के लिए कचरे की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
वन्यजीवों के पारंपरिक कॉरीडोर खत्म होना भी वन्यजीवों की आवाजाही को बाधित कर रहा है और उन्हें रिहायशी इलाकों से गुजरने पर मजबूर कर रहा है। वन क्षेत्रों में बिना सावधानी के बनायी गई सड़कें, नहर वन्यजीवों के रास्ते में आ रहे हैं।
उत्तराखंड में गुलदारों की संख्या में भी लगातार इजाफा हुआ है। प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलिफेंट की तरह अन्य वन्यजीवों की स्थिति के आंकलन की कोशिश नहीं की गई। वन विभाग को ये अनुमान तक नहीं है कि राज्य में कितनी संख्या में गुलदार होंगे। शिकारी जॉन हुकिल का अनुमान है कि राज्य में 6-7 हज़ार तक की तादाद में गुलदार हो सकते हैं। तो समस्या कितनी बड़ी है, गुलदार क्यों रिहायशी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं, इस पर काम करने की जरूरत है। न कि कोई घटना हो जाने के बाद उस पर प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई।
इसके साथ ही जंगल से लकड़ी, घास, चारे के इंतज़ाम के लिए लोग जाते हैं। बहुत से मामले ऐसे हैं जब जंगल के अंदर जानवर का हमला हुआ है। यहां लोगों को भी जागरुक किए जाने की जरूरत है।
संघर्ष कम करने के लिए हो रहे प्रयास
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी कहते हैं कि इस संघर्ष को कम करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जिस हिस्से में जिस जानवर की वजह से चुनौती है, हम उसके आधार पर योजना तैयार कर रहे हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए वन विभाग के साथ पुलिस, शिक्षा, कृषि, आपदा प्रबंधन जैसे विभागों को भी साथ लाने की कोशिश की जा रही है।
उत्तराखंड वन विभाग ने सिक्योर हिमालय परियोजना के सहयोग से वन्यजीव प्रबंधन, सूचना तंत्र और डाटाबेस केंद्र स्थापित किया है। वन्यजीव संघर्ष से संबंधित डाटा और वन विभाग से जुड़ी सूचना वन्यजीव-एमआईएस में इकट्ठा कर उसका आंकलन किया जा रहा है। साथ ही एक डैशबोर्ड की स्थापना भी की गई है। वन विभाग को उम्मीद है कि सूचना डाटाबेस केंद्र से जानकारी मिलने पर उस पर तत्काल प्रतिक्रिया की जा सकेगी।
जानकारी हासिल करने के लिए वन विभाग ने एक मोबाइल एप भी तैयार किया है। Wildlife Uttarakhand नाम से डेवलप किये गए इस एप पर स्थानीय लोग जानवर की गतिविधि से जुड़ी सूचना दे सकते हैं। जिससे विभाग समय पर कार्रवाई कर सके।
इसके साथ ही स्थानीय लोगों को साथ लेकर वॉलंटरी विलेज प्रोटेक्शन फोर्स बनाया जा रहा है। राजीव भरतरी के मुताबिक हरिद्वार और देहरादून के 60 गांवों में लोगों को वन्यजीवों के हमलों से बचने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये लोग ही अपने गांव के अन्य लोगों को प्रशिक्षित करने का कार्य करेंगे। राज्य क 400 गांवों में विलेज वालंटरी प्रोटेक्शन फोर्स बनाए जाएंगे।
मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने में जर्मनी की संस्था जीआईज़ेड भी उत्तराखंड वन विभाग को सहयोग दे रही है। संस्था की ओर से विभाग एक जिप्सी, हाथियों के लिए 10 रेडियो कॉलर, गुलदारों के लिए 15 रेडियो कॉलर समेत अन्य आधुनिक उपकरण दिए गए हैं। आने वाले वित्त वर्ष में वन विभाग अधिक रेडियो कॉलर खरीदने के लिए अपने बजट में भी इजाफा करेगा।
राज्य में जंगली जानवरों के बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारी भी बढ़ी है। मानव वन्यजीव संघर्ष उत्तराखंड से पलायन की वजहों में भी शामिल है। विभाग की ओर से किए जा रहे प्रयासों का असर धरातल पर बहुत अधिक नहीं दिख रहा। इसलिए जानवरों को भी इंसानों के गुस्से का खामियाज़ा उठाना पड़ रहा है। ग्रामीणों की शिकायत होती है कि सूचना देने के बावजूद वन विभाग के लोग समय पर नहीं पहुंचते। खुद वन विभाग में फील्ड ड्यूटी कर रहे कर्मियों के पास जंगल में कॉम्बिंग के दौरान जरूरी रक्षा सामाग्री नहीं होती। राजाजी टाइगर रिजर्व के पास एक फुलटाइम निदेशक तक नहीं है। राजाजी के निदेशक पीके पात्रो के पास देहरादून चिड़ियाघर की भी जिम्मेदारी है। संसाधनों और स्टाफ की कमी के चलते उत्तराखंड वन विभाग जंगल के नज़दीक रहने वाले लोगों का दोस्त नहीं बन पा रहा।
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