जानलेवा कोरोना वायरस के चलते इस समय शहरों में खलबली मची है। कभी गांव खाली कर आए लोग घर को भागे जा रहे हैं। अब तक उत्तराखंड के 26 हजार से ज्यादा प्रवासी गांवों में लौट चुके हैं। स्पेशल ट्रेनों से उत्तराखंडियों को लाने की शुरुआत हो गई है। अनुमान के मुताबिक करीब 2 लाख लोग उत्तराखंड लौटकर आएंगे..।
सड़क तुम अब आई हो गांव, जब सारा गांव शहर जा चुका है…
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के कवि महेश चंद्र पुनेठा ने जब यह लाइनें लिखी थीं तो उनके दिल में गांव से शहरों की ओर पलायन का दर्द छिपा था। लोग रोजी-रोटी के लिए अपने पुरखों का गांव छोड़कर कंक्रीट के शहरों में सुनहरे सपनों की चाह में भागे जा रहे थे। पर… पलायन के इतने लंबे दौर के बाद आज वक्त ने कैसी पलटी मारी है। उत्तराखंड के जिन रास्तों से चलकर लोग शहरों के हो गए, अब बसों में भरकर उन्हीं रास्तों से गांव को लौटे आ रहे हैं।
कोरोना वायरस ने जैसे लोगों को अहसास दिला दिया है कि शहर की चकाचौंध से ज्यादा रोशन गांवों की आबोहवा और ठहराव है। शायद लोगों को समझ में आ गया है कि ‘अपने घर में भी है रोटी’। सुविधाएं भले थोड़ी कम हों पर नींद सुकून की आती है और सेहत के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ती है। छोटे-मोटे उपचार तो प्रकृति खुद कर देती है..।
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जरा ध्यान से देखिए यह तस्वीर। एक के पीछे कई बसें, शायद इनमें से किसी एक बस से ये लोग शहर गए रहे हों पर आज बस का मुंह गांव की ओर है। कहते हैं न कि जब मुश्किल समय आता है तो इंसान को भगवान और अपना घर ही याद आता है। कोरोना महामारी ने ऐसा दिन दिखाया कि लोगों को जान बचाने के लिए घरों में कैद होकर रहना पड़ रहा है। न कोई किसी से मिल सकता है, न कारखाने चल रहे हैं, लाखों लोगों के लिए न रोजी है न रोटी, वो सब चीजें बंद हो गई हैं जिसके लिए पहाड़ की खूबसूरत आबोहवा से दूर जाकर लोग दो कमरे के घरों में खुशी-खुशी सिकुड़ गए थे पर अब समझ में आ गया है कि जान है तभी तो जहान है न!
जान खतरे में पड़ी तो येन-केन प्रकारेण लोग ने सामान लिया और चल पड़े अपने गांव की ओर। कैसे पहुंचेंगे, सैकड़ों किमी कैसे पैदल चलेंगे, क्या खाएंगे… ये सब चिंताएं तो जैसे नगण्य हो गई हैं। दिख रहा है तो बस अपना गांव जैसे वह पुकार रहा हो। आओ हम बचाएंगे तुम्हें।
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प्रवासियों को संकट में देख उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बसों और अब ट्रेनों का प्रंबध किया और फिर यह तस्वीर देखने को मिली है। उत्तराखंड सरकार का अनुमान है कि देश के कोने-कोने से 2 लाख से ज्यादा प्रवासी घरों की ओर लौट सकते हैं। इनमें से 1 लाख 80 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। अब तक 23, 794 प्रवासी लौट चुके हैं। बसों से लोगों को वापस लाने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस बीच, 11 मई को ट्रेनों से भी प्रवासियों को उत्तराखंड लाने की शुरुआत हो गई। भारतीय रेलवे से 8 ट्रेनों की मंजूरी मिल गई है।
पहले की आलोचना अब जता रहे सरकार का आभार…
सीएमका प्रवासियों से अनुरोध –
‘प्रवासियों से विनम्र अपील है कि आप थोड़ा संयम और धैर्य बनाए रखें, जो जहां है, वहीं रहे। सरकार सभी उत्तराखंडवासियों को चरणबद्ध तरीके से राज्य में लाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्हें लाने का खर्च भी राज्य सरकार उठाएगी, ये सरकार आपकी है और आपके साथ है।’ – त्रिवेंद्र सिंह रावत
उत्तराखंड सरकार सर्वे करा रही है कि इनमें से कितने लोग गांव में ही बसना चाहते हैं? अब ताज्जुब नहीं है कि बड़ी संख्या में लोग शहर की जिंदगी से तंग आ चुके हैं, जान भी अब मुश्किल में है तो वे अपने पुरखों की धरती पर ही वापस बसना चाहते हैं।
कोरोना संकट से लड़ाई तो हम जीत ही लेंगे पर वीरान हुए गांव, निर्जीव से पड़ गए पेड़ और मायूस पहाड़ अपने बच्चों को देखकर खुश हो रहे होंगे। कौन चाहता है कि उनके अपने बच्चे दूर रहें। उम्मीद है ये तस्वीर अब नहीं बदलेगी।
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