किसी को मंदिर में पूजा करने से रोकने पर हो सकती है 6 महीने की सजा

किसी को मंदिर में पूजा करने से रोकने पर हो सकती है 6 महीने की सजा

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 इसे स्पष्ट करता है। इस अधिनियम की धारा 3 में साफ कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को मंदिर में पूजा स्थान में जाने से रोका जाता है तो ऐसा करने वालों को एक से 6 महीने तक की सजा हो सकती है। वहीं जनप्रतिनिधि कानून 1951 के अनुसार यदि कोई नागरिक अधिकार संरक्षण कानून 1955 में दोषी पाया जाता है, तो वह 6 वर्ष चुनाव नहीं लड़ सकेगा।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ मंदिर में तीर्थ पुरोहितों द्वारा दर्शनों से रोके जाने पर बवाल मचा हुआ है। देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे तीर्थ पुरोहितों ने सोमवार को केदारनाथ मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाए, उनके साथ बदसलूकी की और उन्हें पूजा नहीं करने दी गई। ऐसे में यह जानना अहम हो जाता है कि किसी धार्मिक स्थल पर किसी व्यक्ति को दर्शन करने से रोका जाता है तो उसके लिए कानून में क्या प्रावधान हैं।

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नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 इसे स्पष्ट करता है। इस अधिनियम की धारा 3 में साफ कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को मंदिर में पूजा स्थान में जाने से रोका जाता है तो ऐसा करने वालों को एक से 6 महीने तक की सजा हो सकती है। वहीं जनप्रतिनिधि कानून 1951 के अनुसार यदि कोई नागरिक अधिकार संरक्षण कानून 1955 में दोषी पाया जाता है, तो वह 6 वर्ष चुनाव नहीं लड़ सकेगा।

क्या कहता है अधिनियम

नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 [अस्पृश्यता का प्रचार और आचरण करने] और उससे उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करने और, उससे संबंधित बातों के लिए दंड विहित करने के लिए अधिनियम…

भारण गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: –

(1) यह अधिनियम [सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम,] 1955 कहा जा सकेगा ।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।

धार्मिक निर्योग्यताएं लागू करने के लिए दंड-जो कोई किसी व्यक्ति को, –

(क) किसी ऐसे लोक-पूजा स्थान में प्रवेश करने से, जो उसी धर्म को मानने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए खुला हो, जिसका वह व्यक्ति हो, अथवा

(ख) किसी लोक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा, किसी पुनीत तालाब, कुएं, जलस्रोत या [जल-सरणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान] उसी रीति से और उसी विस्तार तक करने से, जिस रीति से और जिस विस्तार तक ऐसा करना उसी धर्म को मानने वाले या उसके किसी विभाग के अन्य व्यक्तियों के लिए अनुज्ञेय हो, जिसका वह व्यक्ति हो,

अस्पृश्यता” के आधार पर निवारित करेगा [वह कम से कम एक मास और अधिक से अधिक छह मास की अवधि के कारावास से और ऐसे जुर्माने से भी, जो कम से कम एक सौ रुपये और अधिक से अधिक पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा] ।

स्पष्टीकरण-इस धारा और धारा 4 के प्रयोजनों के लिए बौद्ध, सिक्ख या जैन धर्म को मामने वाले व्यक्ति या हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास को मानने वाले व्यक्ति, जिनके अंतर्गत वीरशैव, लिंगायत, आदिवासी, ब्राह्मो समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज और स्वामी नारायण संप्रदाय के अनुयायी भी हैं, हिन्दू समझे जाएंगे ।

 

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