पूरा होने जा रहा है 14 साल का इंतजार, विशाल टिहरी झील के ऊपर इंजीनियरिंग का शाहकार

पूरा होने जा रहा है 14 साल का इंतजार, विशाल टिहरी झील के ऊपर इंजीनियरिंग का शाहकार

टिहरी झील के ऊपर बनाया जा रहा डोबरा चांठी पुल का निर्माण कार्य पूरा होने से 3 लाख से ज्यादा की आबादी को जिला मुख्यालय तक आने के लिए 100 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी। टिहरी आने वाले पर्यटक प्रतापनगर भी आ सकेंगे।

उत्तराखंड के टिहरी जिले के तीन लाख से ज्यादा लोगों को 14 साल के लंबे इंतजार के बाद एक धरोहर मिलने जा रही है। टिहरी के प्रतापनगर क्षेत्र को सड़क मार्ग से जोड़ने वाला देश का सबसे लंबा झूला पुल डोबराचांठी जल्द ही शुरू हो जाएगा। विशाल टिहरी झील के ऊपर 440 मीटर लंबे इंजीनियरिंग के इस शाहकार का विहंगम नजारा देखते ही बनता है। यह पुल भारत, दक्षिण कोरिया और चीन के इंजीनियरों के हुनर की देन है। देखने से ही लगता है कि इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारना आसान काम नहीं था। पुल के टावर की ऊंचाई कुतुबमीनार से महज 34 फीट कम है। इतनी ऊंचाई से इस पुल को बनाने में इंजीनियरों ने अपना समूचा ज्ञान और अनुभव झोंक दिया।

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सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने फेसबुक पर पुल की तस्वीरें शेयर की हैं। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, ’14 साल के लम्बे इंतजार के बाद प्रतापनगर के लोगों के लिए जल्द ही वह शुभ अवसर आने वाला है जिसका उन्हें वर्षों से इंतजार था। टिहरी को प्रतापनगर से सीधे जोड़ने के लिए निर्माणाधीन डोबराचांठी पुल बनकर तैयार है। प्रतापनगरवासियों की पीड़ा और डोबरा चांठी पुल की अहमियत को समझते हुए हमने इसे अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखा। इसके लिए एकमुश्त बजट जारी किया गया। इसका परिणाम हम सभी के सामने है।’

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ये वही डोबरा-चांठी पुल है, जो कभी खराब इंजीनियरिंग और कथित भ्रष्टाचार के लिए देशभर में बदनाम रहा। इस परियोजना को सबसे पहले 17 अप्रैल 2006 को मंजूरी मिली। टिहरी बांध पुनर्वास निदेशालय को इसका जिम्मा सौंपा गया। पुल निर्माण के लिए करीब 89 करोड़ रुपये मंजूर हुए। फिर आठ दिसंबर 2008 को लागत बढ़ाकर 128.53 करोड़ रुपये कर दी गई। उस समय इस मोटर झूला पुल की लंबाई 532 मीटर प्रस्तावित थी। अब निर्माणाधीन डोबराचांठी पुल की कुल लंबाई 725 मीटर है,  जिसमें 440 मीटर सस्पेंशन ब्रिज हैं तथा 260 मीटर आरसीसी डोबरा साइड एवं 25 मीटर स्टील गार्टर चांटी साइड है।

टिहरी जिले में टिहरी बांध बनने के बाद लगभग 40 किलोमीटर बड़ी जो झील बनी उसमें इस इलाके को जोड़ने वाले तमाम पुल और रास्ते झील के पानी में डूब गए, जिसके बाद से यह पुल बनाने की मांग की जा रही थी।

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