एक्सक्लूसिव इंटरव्यू : उग्रवाद विरोधी अभियान चलाकर शांति और सुरक्षा बनाये रखना प्राथमिकता: लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा

एक्सक्लूसिव इंटरव्यू : उग्रवाद विरोधी अभियान चलाकर शांति और सुरक्षा बनाये रखना प्राथमिकता: लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा

असम राइफल्स की स्थापना 1835 में  हुई थी। 189 सालों से असम राइफल्स लगातार अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रहा है। वर्तमान समय में असम राइफल्स की 26 बटालियनें उग्रवाद ग्रस्त इलाके में तथा 20 बटालियनें अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सीमा सुरक्षा के कार्य में तैनात हैं। लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा के पदभार संभालने के बाद उनसे उनकी प्राथमिकताओं और चुनौतियों को लेकर हिल मेल पत्रिका के संपादक वाई एस बिष्ट ने खास बातचीत की है। इस बातचीत के अंश इस प्रकार हैं –

लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने 01 अगस्त को असम राइफल के महानिदेशक का पदभार संभाला। उनका जन्म 26 फरवरी 1969 को हुआ है। वह 9 जून 1990 को भारतीय सेना की सिख लाइट इंफैंट्री में कमीशन हुये। लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा संघर्ष विराम से पूर्व नगालैंड में भी सेवाएं दे चुके हैं। उन्हें जम्मूकश्मीर और असम में आतंकवाद विरोधी अभियानों की योजना बनाने और संचालन का व्यापक अनुभव है। इससे पहले वह असम राइफल्स के इंस्पेक्टर जनरल (नॉर्थ) की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उन्हें 5 जून 2022 को आईजीएआर (नॉर्थ) नियुक्त किया गया था। वह सेना के वरिष्ठ अधिकारी हैं और उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला में डिविजनल ऑफिसर और सामरिक प्रशिक्षण अधिकारी, जीओसी-इन-सी के सैन्य सलाहकार, मुख्यालय पूर्वी कमांड, स्टाफ ऑफिसर और सेना प्रमुख के उप सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य किया है। 

सवाल: असम राइफल्स के डीजी के तौर पर आपकी क्या प्राथमिकताएं होंगी ?

जवाब: असम राइफल्स के महानिदेशक के तौर पर मेरा ध्यान कुछ प्राथमिक फोकस क्षेत्रों पर हैं। जिनमें उग्रवाद विरोधी अभियान, सीमा सुरक्षा, जनहित कार्यक्रम, बल का आधुनिकीकरण, मानव संसाधन प्रबंधन, अंतर-एजेंसी समन्वय और पूर्व सैनिकों का कल्याण इत्यादि शामिल हैं। मैं आपको इनके बारे में विस्तार से बताता हूं।

(i) उग्रवाद विरोधी अभियानः असम राइफल्स मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में काम करती है। यहां उग्रवाद का इतिहास रहा है। मुख्य ध्यान उग्रवाद विरोधी अभियान चलाकर शांति और सुरक्षा बनाए रखने पर है। इसमें खुफिया जानकारी जुटाना, सामरिक योजना बनाना और उग्रवादियों के खतरों को बेअसर करने के लिए ऑपरेशन को अंजाम देना शामिल है।

(ii) सीमा सुरक्षाः भारत: म्यांमार सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी असम राइफल्स की है। इसके लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि बल सतर्क रहे और अंतरराष्ट्रीय सीमा की पवित्रता को बरकरार रखे इसके इलावा सीमा पार से अवैध गतिविधियों, तस्करी और घुसपैठ को रोकने में बल सक्षम रहे।

(iii) जनहित कार्यक्रमः असम राइफल्स स्थानीय आबादी के दिल और दिमाग को जीतने के लिए जनहित कार्यक्रमों में भी संलग्न है। असम राइफल्स पूर्वोत्तर में समुदायों के बीच विश्वास और स‌द्भावना बनाने के उद्देश्य से चिकित्सा शिविरों, शैक्षिक सहायता, बुनियादी ढांचे के विकास और आपदा राहत जैसी गतिविधियों में सहायता प्रदान करती है।

(iv) बल का आधुनिकीकरणः फोर्स अपनी ऑपरेशन संबंधी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए बल के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करती है। इसमें आधुनिक हथियार, संचार प्रणाली और निगरानी से जुड़ें उपकरण प्राप्त करना, साथ ही कर्मियों के प्रशिक्षण और कल्याण में सुधार करना शामिल है।

(v) मानव संसाधन प्रबंधनः असम राइफल्स कर्मियों की भलाई, मनोबल और व्यावसायिक विकास सुनिश्चित करना फोकस का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्रशिक्षण, पदोन्नति, कल्याण योजनाओं और सैनिकों की शिकायतों को संबोधित करने से संबंधित पहल में भी मेरा ध्यान है।

(vi) अंतर-एजेंसी समन्वयः ऑपरेशन और खुफिया जानकारी साझा करने में उचित समन्वय सुनिश्चित करने के लिए असम राइफल्स अन्य सुरक्षा एजेंसियों जैसे भारतीय सेना, खुफिया एजेंसियों और राज्य पुलिस बलों के साथ मिलकर काम करती है। इस अंतर-एजेंसी समन्वय को साझा करना भी मेरा प्रमुख उदेश्य है।

(vii) शांति और विकास की पहलः असम राइफल्स पूर्वोत्तर में शांति बनाए रखने और विकास में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। असम राइफल्स उन प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करती है जो सुरक्षा बनाए रखने के साथ-साथ क्षेत्र के सामाजिक आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।

(viii) पूर्व सैनिकों का कल्याण: मेरा फोकस पूर्व सैनिको के कल्याण के लिए रहेगा। जो की यह सुनिश्चित करेगा की हम उनको हर प्रकार की सुविधा प्रदान करें।

प्रश्न: आप इससे पहले भी फ्रंटियर रेंज असम राइफल्स में रहे है। यहां किनकिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तरः IGAR (N) कोहिमा में मेरा टेन्योर 2 साल और 4 महीने का रहा। इस दौरान हमारे इलाके में आने वाले चुनौतियां कुछ इस प्रकार थी :-

(i) भारत-म्यांमार सीमा की अलग तरह की चुनौतियां- ये निरंतर बदलती और घुसपैठ की संभावना वाली सीमा और अपनी तरह का एकमात्र मुक्त आवागमन की व्यवस्था फ्री मूव रीजिम (एफएमआर) केवल भारत-म्यांमार सीमा पर लागू होते हैं। किसी भी अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमा की तुलना में ये सीमा प्रबंधन को जटिल बनाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पेट्रोलिंग और एम्बुश आदि जैसे विभिन्न ऑपरेशन को लॉन्च करने के लिए आधार के रूप में उपयोग किए जाने वाले कंपनी ऑपरेटिंग बेसेस पर आधारित असम राइफल्स की तैनाती होती है।

(ii) भारत-म्यांमार सीमा के साथ भूभाग और बुनियादी ढांचा- भारत-म्यांमार सीमा के साथ जुड़ा भूभाग अत्यधिक ऊंचा-नीचा, ऊबड़-खाबड़ और घने जंगलों वाला है जो भारत-म्यांमार सीमा के साथ के इलाके में आवाजाही को रोकता है। भारत-म्यांमार सीमा से सड़क संपर्क सीमित है और बुनियादी सुविधाएं बहुत कम हैं। इस क्षेत्र की ऊंचाई पश्चिम में 200 मीटर से लेकर पूर्व में 2000 मीटर तक है।

(iii) जनसांख्यिकी, जनजातीय और जातीय संबंध- इलाके की प्रकृति और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण भारत-म्यांमार सीमा के किनारे बहुत कम गांव हैं। ज्यादातार आबादी भारत-म्यांमार सीमा केंद्र से 25-30 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत-म्यांमार सीमा के किनारे रहने वाले स्थानीय लोगों के बीच गहरे जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध हैं और भारतीयों के पास म्यांमार में सीमा पार भूमि भी है।

(iv) उग्रवादी समूहों के शिविरों की उपस्थिति- म्यांमार में भारत-म्यांमार सीमा पर उग्रवादी समूहों के शिविरों की मौजूदगी से उन्हें भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने, हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने और अपने सुरक्षित ठिकानों में लौटने में आसान बनाती है।

(v) गोल्डन ट्राइंगल से भौगोलिक निकटता- भारत-म्यांमार सीमा की गोल्डन ट्राइंगल से निकटता ने इसे एक माध्यम बना दिया है जिसके माध्यम से अफीम, हेरोइन और अन्य सिंथेटिक दवाओं की देश के अंदर और बाहर तस्करी की जाती है।

(vi) मणिपुर में अशांति- मणिपुर में असम राइफल्स सेना के साथ बहुत अच्छा काम कर रही है और स्थिति को नियंतरण में लाने में काफी सफलता पा चुकी है और आगे भी इसी तरीके से यही प्रयास जारी रखेगी ताकि मणिपुर में शांति बहाल हो सके।

सवाल: आपको कई सालों तक भारतीय सेना में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अब आप डीजी असम राइफल्स की कमान संभाल रहे हैं, आप इन उपलब्धियों को कैसे देखते है?

जवाब: असम राइफल्स की कार्य प्रणाली और काम करने का तरीका इंडियन आर्मी जैसा ही है। असम राइफल्स में 80 प्रतिशत अफसर इंडियन आर्मी से हैं। मैंने इंडियन आर्मी में 34 साल का तर्जुबा हासिल किया और असम राइफल्स में मुझे 2 साल 4 महीने हो गये हैं। इंडियन आर्मी की ट्रैनिंग और अलग-अलग इलाकों में पोस्टिंग इंडियन आर्मी ऑफिसरों को हर तरह की चुनौती का सामना करने मे सक्षम बनती है। यहां तक की असम राइफल्स ऑफिसर्स की ट्रेनिंग भी इंडियन आर्मी की ट्रेनिंग एस्टाब्लिशमेंट्स में होती है। मैं अपने आप को भाग्यशाली समझता हूं कि इंडियन आर्मी के तजुर्बे और असम राइफल्स के तजुर्बे के साथ में इस फोर्स का नेतृत्व कर रहा हूं।

सवाल: आप अपने बारे में बताइये। आप किस गांव में पैदा हुए, आपकी पढ़ाईलिखाई कहां हुई, परिवार में कौन लोग हैं और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संघर्ष देखा?

जवाब: मेरा जन्म पुरानी टिहरी में हुआ था। मेरा सौभाग्य था कि मुझे देश भर के स्कूलों में पढ़ने का अवसर मिला। मणिपुर से शुरूआत कर जम्मू-कश्मीर, वहां से राजस्थान, फिर मध्य प्रदेश और अंत में डीएवी पीएस कॉलेज, देहरादून से ग्रेजुएशन किया। मुझे तो कोई तकलीफ नहीं उठानी पड़ी, परंतु मेरे पिता जो टिहरी गढ़वाल के छोटे से गांव जकलाड से निकलकर सभी तरह की परेशानियों के बावजूद भारतीय सेना में अधिकारी बने, उन्होंने काफी तकलीफ उठाई। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मैंने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया।

सवाल: हमारी पत्रिका का एक मोटो हैएक अभियान पहाड़ों की ओर लौटने का। आप उत्तराखंड के लिए क्या कर रहे हैं और आगे क्या करना चाहते है ?

जवाब: उत्तराखंड एक प्रगतिशील राज्य है। काफी साल पहले पहाड़ों सें रोजगार के लिए काफी लोग मैदान इलाके में जाया करते थे लेकिन अब सड़क के निर्माण, टूरिज्म के विकास व चारधाम यात्रा के वजह से हमारे पहाड़ों में रोज़गार व टूरिज्म से जुड़े हुए एवं रोजगार के अवसर बड़ गए है। उत्तराखंड की आबादी का एक बड़ा हिस्सा फौज और असम राइफल्स में भी कार्यरत है। हमारे बहुत से पूर्व सैनिक भी उत्तराखंड में हैं और असम राइफल्स ने एक ARESA सेंटर भी यहां बनाया है जो पूर्व सैनिकों के वेलफेयर और उनकी पेंशन से सम्बंधित समस्यों का हल करता है। मैं चाहूंगा की आगे जाके हमारे पूर्व सैनिकों को अच्छी मेडिकल फैसिलिटीज और उनके आश्रितों को अच्छी क्वालिटी शिक्षा की सुविधाएं प्रदान कर सकें। मैं जल्द ही हमारे पूर्व सैनिकों को यहां आकर मिलूंगा।

सवाल: आप नई पीढ़ी के युवाओं, खासकर पहाड़ के युवाओं के लिए क्या सन्देश देना चाहते हैं?

जवाब: उत्तराखंड के युवाओं के लिए यह संदेश हो सकता है ‘भविष्य की ओर कदम बढ़ाते समय अपनी विरासत को अपनाएं और अपनी जड़ों की ताकत का उपयोग करें।’ उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता, संस्कृति और लचीलापन आपकी विरासत है, एक टिकाऊ, समृद्ध और नए कल के निर्माण के लिए उनका उपयोग करें। ईमानदारी के साथ नेतृत्व करें, अपने समुदाय से जुड़े रहें, और आपके कार्य ऐसे हो जो देवभूमि से होने का गौरव दर्शाते हों। आपकी ऊर्जा और सृजनात्मक क्षमता राज्य और उससे बाहर भी एक उज्ज्वल भविष्य को आकार देने की कुंजी है।

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