उत्तराखंड में क्या है सियासी गलियारों की कानाफूसी, क्या हो रहा है सरकारी महकमों में..। टी. हरीश के खास कॉलम ‘बकीबात’ में जानिये…ताजा अपडेट।
- टी. हरीश
फिर राज्य की कमान तो नहीं मिल रही पूर्व सीएम को
राज्य के पूर्व सीएम और पंजे वाली पार्टी के नेता जब भी राज्य सरकार के खिलाफ बयान देते हैं, राज्य में उन्हीं की पार्टी के नेताओं की घंटी बजने लगती है, क्योंकि बड़ी मुश्किल से तो पूर्व सीएम को मिलकर राज्य से बाहर कर दिल्ली की राजनीति में भेजा था, लेकिन जैसे ही वह बयान देते हैं, उनके राज्य में मौजूद विरोधियों को लगने लगता है कि नेता पता नहीं कब राज्य में वापस आ जाएं। वह राज्य में मौजूद नेताओं की तुलना में ज्यादा सरकार को घेरते रहते हैं। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के वर्चुअल रैली को संबोधित किया तो पूर्व सीएम मैदान में उतर आए। एक-एक कर उन्होंने कई तरह के सवाल कर दिए। अगले दिन अखबारों से लेकर टीवी तक छाए रहे। राज्य में मौजूद नेताओं समझ ही में नहीं आया कि ये आइडिया उन्हें क्यों नहीं आया। फिर बजने लगी घंटी कहीं..फिर राज्य में पार्टी की कमान तो नहीं मिल रही है पूर्व सीएम को।
विपक्षी पार्टी के भीतर विपक्ष
राज्य में विपक्ष की स्थिति ऐसी है कि कभी लगता ही नहीं कि राज्य में विपक्ष मौजूद है। स्थिति ऐसी है कि विपक्षी नेता आपस में ही इतना लड़ते रहते हैं कि लगता है जैसे सत्ता पक्ष और विपक्ष हो। अगर विपक्षी नेता इतना आक्रामक रूप सरकार के खिलाफ दिखाते तो पार्टी का पंजा लोगों के दिलों में राज तो कर ही लेता। पिछले दिनों राज्य में पंजे वाली पार्टी आपस में ही उलझ कर रह गई। पार्टी के युवराज के करीबी माने जाने वाले एक नेता जो राज्य से ताल्लुक रखते हैं, उन्होंने पार्टी की बड़ी नेता को सलाह दे डाली और उसके बाद दोनों में ज़ुबानी जंग शुरू हो गई। दिल्ली वाले नेता जी ने आरोप लगाया कि प्रदेश कांग्रेस के नेता सरकार को सही तरीके से नहीं घेर रहे हैं। फिर क्या था पार्टी की महिला नेता ने दिल्ली वाले नेता को नसीहत दे डाली और कह डाला कि वह पहले नेता बनकर दिखाएं। मामला इतना बढ़ गया कि प्रदेश अध्यक्ष को डैमेज कंट्रोल के लिए आगे आना पड़ा।
पुराने कांग्रेसी हैं मंत्रीजी, क्यों न हावी हो परिवारवाद
राज्य के एक कैबिनेट मंत्री और उनकी बहू आजकल राज्य में चर्चा है। असल में मामला ये है कि जिस विभाग के ससुर जी मंत्री उसी विभाग के एक बोर्ड की अध्यक्ष बहू को बना दिया गया। लेकिन ये मंत्री जी की मुसीबत बना जा रहा है। क्योंकि मामला अब कोर्ट में चला गया है। बोर्ड की स्थिति वैसे ही है, जैसे सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। क्योंकि बहू रानी का सिक्का न सिर्फ बोर्ड में चलता है बल्कि मंत्री जी के विभाग में भी उनका काफी दखल माना जाता है। किसी ने एक जनहित याचिका दाखिल कर कहा कि बोर्ड की योजनाओं का फायदा जनता को नहीं मिल रहा है। जबकि बहूरानी बोर्ड के पैसे का ‘दुरूपयोग’ कर रही हैं। लिहाजा शिकायत के बावजूद कभी कुछ नहीं हुआ, क्योंकि मंत्री जी पुराने कांग्रेसी हैं और परिवारवाद हावी होगा ही।
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