अच्छे बीज कम कर सकते है जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव : डा. महापात्रा

अच्छे बीज कम कर सकते है जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव : डा. महापात्रा

पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने के तरीके अभी भी वैज्ञानिक नहीं है। टेरेस फार्मिंग होती है परन्तु पानी नाली में रूका रहे इस हेतु मेड़ नहीं बनायी जाती है, जिस कारण बरसात के दिनों में खेत से पानी के साथ-साथ पोषक तत्व भी बह जाते है।

प्रसार एवं शिक्षा निदेशालय, गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पन्तनगर एवं पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 विषय पर ‘प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम’ का आयोजन डा. रतन सिंह आडिटोरियम, पशुचिकित्सा महाविद्यालय में किया गया।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अध्यक्ष, पी.पी.वी. एण्ड एफ.आर.ए., भारत सरकार एवं पूर्व सचिव, डेयर तथा महानिदेशक, आई.सी.ए.आर. डा. त्रिलोचन महापात्रा, विशिष्ट अतिथि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार के कुलपति डा. परविन्दर कौशल, कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान, निदेशक प्रसार शिक्षा डा. जे.पी. जायसवाल, उपकुलसचिव, पी.पी.वी. एण्ड एफ.आर.ए. श्री यू.के. दूबे मंचासीन थे। कार्यक्रम में आईसीएआर-वीपीकेएएस के निदेशक डा. लक्ष्मीकान्त, उत्तराखण्ड जैव प्रौद्योगिक, यूकोस्ट, हल्दी के निदेशक डा. संजय कुमार, आईसीएआर-एनबीपीजीआर के क्षेत्रीय केन्द्र भवाली की प्रभारी, डा. ममता आर्या, विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता एवं निदेशकगण, संकाय सदस्य, विद्यार्थी एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, काशीपुर, ज्योलिकोट एवं अल्मोड़ा के वैज्ञानिक एवं पहाडी एवं मैदानी क्षेत्रों से लगभग 150 कृषक उपस्थित थे। एफ.पी.ओ. एवं स्वयं सहायता समूह के लोगों ने भी भाग लिया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. त्रिलोचन महापात्रा द्वारा पी.पी.वी. एण्ड एफ.आर.ए. के अन्तर्गत कृषकों के हित में चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने 60 के दशक में देश में व्याप्त भुखमरी की समस्या का भी संस्मरण करते हुए तथा बढ़ती हुई जनसंख्या के मद्देनजर खाद्य उत्पादन में निरंतर वृद्धि की आवश्यकता, लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा दिये गये नारे तथा देश की सुरक्षा में खाद्यान्न की महत्ता पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि अच्छे उत्पादन के लिए अच्छे बीज, गुणवत्तायुक्त बीज, कम पानी में उपज देने वाले बीजों के विकास की आवश्यकता है। अच्छे बीज के कारण उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि होती है। जलवायु परिर्वतन के कारण नयी बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप बढ़ रहा है और अच्छे बीज के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है। खेती में आने वाले लागत को कम कर आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

कृषकों से उनके मध्य बहुत लम्बे समय से प्रयोग की जा रही कोई किस्म अथवा लैड रेस जिसमें कोई विशेष गुण हो, का विश्वविद्यालय में परीक्षण कराकर पी.पी.वी. एण्ड एफ.आर.ए. में उसके पंजीकरण हेतु आवेदन भेजने का सुझाव दिया तथा समुदाय स्तर पर भी इस प्रकार की गतिविधियों को आगे ले जाने हेतु सुझाव दिया जिससे कि केवल एक किसान को ही नहीं बल्कि पूरे समुदाय को उसका लाभ मिल सके। उनके द्वारा विभिन्न किसानों के स्तर पर सफलता की कहानियों को कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से अन्य कृषकों के मध्य भी पहुचाएं जाने का आह्वान किया। पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की समस्या के निदान हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र, ज्योलिकोट, नैनीताल के प्रयासों को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

कुलपति डा. मनमोहन सिंह चैहान ने अध्यक्ष के कृषकों के प्रति असीम स्नेह के लिए उनकों धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने के तरीके अभी भी वैज्ञानिक नहीं है। टेरेस फार्मिंग होती है परन्तु पानी नाली में रूका रहे इस हेतु मेड़ नहीं बनायी जाती है, जिस कारण बरसात के दिनों में खेत से पानी के साथ-साथ पोषक तत्व भी बह जाते है। इस संदर्भ में के.वी.के. काशीपुर द्वारा जल संग्रहण के सफल प्रयासों की चर्चा करते हुए अन्य स्थानों पर भी उसको अपनाये जाने का सुझाव दिया।

डा. परविन्दर कौशल ने किसानों द्वारा उठाये गये लैटाना कैमरा खरपतवार की समस्या का संज्ञान लिया और कहा कि इसकी अच्छी खाद बनती है और खाद बनाने के रूप में प्रयोग कर लैटाना कैमरा के समस्या से निजात पाया जा सकता है। साथ ही किसानों द्वारा उठाये गये जंगली जानवरों की समस्या के बारे में सामुदायिक स्तर पर सोलर फैन्सिंग करने हेतु भी सुझाव दिया।

उमाकांत दूबे ने पीपीवी एण्ड एफआरए की गतिविधियों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला और बताया कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसान एवं वैज्ञानिक दोनों के अधिकारों की सुरक्षा होती है। उन्होंने कृषकों के लिए तीन स्तर पर प्राधिकरण द्वारा स्थापित पुरस्कारों यथा समुदाय स्तर पर पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार 10 लाख रूपये, पादप जीनोम संरक्षक कृषक प्रतिदान 1.5 लाख तथा पादप जीनोम संरक्षक सम्मान प्रमाण-पत्र 1 लाख रूपये के बारे में बताया तथा नवीन आवेदन को 16 अगस्त 2023 तक प्रेषित करने का सुझाव दिया।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रसार शिक्षा निदेशक, डा. जे.पी. जायसवाल किया गया। विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रभारी, उनके वैज्ञानिक, निदेशक जैव प्रौद्योगिक, यूकोस्ट, हल्दी, डा. संजय कुमार, मुख्य महाप्रबंधक फार्म, डा. जयंत सिंह, टीडीसी हल्दी के मुख्य बीज उत्पादन अधिकारी डा. दीपक पाण्डे आदि ने कृषकों को कार्यक्रम में प्रतिभाग करने हेतु प्रोत्साहित किया।

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