भारत का एक खूबसूरत राज्य उत्तराखंड जिसे गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्धी मिली है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों का मन मोह लेते हैं इस राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड में कुदरत के कहर का आलम यह है कि सैकड़ों लोगों की जान मुश्किलों में फंसी हुई है। जगह-जगह पहाड़ ढह रहे हैं, सड़कें बंद हो चुकी हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
केदारनाथ की यात्रा करने आए लोग फंसे हुए हैं, जिनके रेस्क्यू के लिए ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इस ऑपरेशन में वायु सेना का चिनुक हेलीकॉप्टर भी तैनात है। वायु सेना ने 800 किलों राहत समग्री गिराई गई तो 94 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। केदारघाटी में फंसे लोगों को रेसक्यू करने के लिए वायुसेना के एमआई-17 और एएलएच गुप्तकाशी और चिनूक गौचर से लगातार उड़ान भर रहे हैं। तीन अगस्त तक केदारनाथ, भीमबली, लिंचोली और चीड़वासा से 1982 यात्री एयरलिफ्ट कराए गए हैं। वहीं चार अगस्त को लिंचोली और भीमबली से 560 लोग और केदारनाथ से 80 लोगों को हेलीकॉप्टर के जरिए सुरक्षित जगह पहुंचाया गया। पूरे ऑपरेशन में अभी तक 2622 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया है। वहीं पैदल और हैली के जरिये अभी तक कुल 10374 लोग सुरक्षित जगह पहुंचाए गए हैं।
वहीं अब लिंचोली में मात्र 50 यात्री, केदारनाथ में 350 यात्रियों को रेस्क्यू किया जाना बाकी है, जिसके लिए सोमवार को भी ऑपरेशन चलाया जा रहा है। 4 अगस्त को करीब 1300 लोगों का रेस्क्यू किया गया है। अभी भी करीब 400 यात्रियों का रेस्क्यू होना बाकी है। 4 अगस्त को हेलीकॉप्टर से 670, पैदल 660 लोगों को केदारघाटी से बाहर लाया गया। वहीं उत्तरकाशी में गंगोत्री हाइवे नेताला के पास मलबा आने से बन्द हो गया है, जिसे बीआरओ की मशीन खोलने में जुटी हुई है।
वहीं टिहरी में बारिश के चलते जिले का एक एसएच ओर 11 ग्रामीण रोड बंद हो गया है। दो दिन पूर्व ही केदारनाथ के पास बादल फटने के कारण मंदिर में दर्शन करने आए लगभग साढ़े नौ हजार श्रद्धालु फंस गए थे। अभी तक इनमें से 9000 लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया है, वहीं 500 लोग अब तक फंसे हैं। रुद्रप्रयाग के सोनप्रयाग में हुए हादसे में 6 लोगों की मृत्यु हुई है। जबकि कुछ लोग लापता हैं। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में भी बादल फटने के कारण 6 लोगों की मौत हुई है। जम्मू कश्मीर में बादल फटने से किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो गई है।
सोनप्रयाग की घटना पर उत्तराखंड सरकार ने आधिकारिक बयान दिया है। राज्य सरकार के अनुसार केदारघाटी में बादल फटने की वजह से लगभग साढ़े नौ हजार लोगों पानी से घिरे थे। इनमें से अब तक 9000 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है, शेष बचे 500 लोगों को रेस्क्यू करने के लिए राहत टीम कोशिश में जुटी है। राहत कार्य में चिनूक और एमआई-17 के हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं। मौसम खराब होने के कारण ये हेलीकॉप्टर भी ज्यादा मदद नहीं कर पा रहे हैं। राहत कार्य के साथ-साथ प्रशासन पैदल पुल फिर से निर्माण कर रहा है।
इसके अलावा गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा केदारनाथ सहित अन्य स्थानों पर फंसे हुए लोगों को भोजन व्यवस्था उपलब्ध करवाई जा रही है। पुलिस अधीक्षक रुद्रप्रयाग ने बताया कि पैदल मार्ग काफी स्थानों पर क्षतिग्रस्त हुआ है। हालांकि लगातार रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नेटवर्क न रहने की वजह से काफी लोगों का उनके परिजनों से संपर्क नहीं हो पाए रहा था। रेस्क्यू के उपरांत लोगों का उनके परिजनों से संपर्क हो गया। उत्तराखंड में बादल फटने से जान माल का नुकसान हुआ है। राज्य के अलग अलग हिस्सों में तबाही का मंजर साफ देखा जा सकता है।
केदारनाथ जाने वाले 1000 यात्री अभी फसें हुए है। अब तक करीब 9 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं को निकाल लिया गया है। आखिरी दिनों में उत्तराखंड में भयंकर बारिश हुई और कुदरत ने जमकर उत्पात मचाया था। राज्य के केदारघाटी में बादल फटने की और भूस्खलन की घटनाओं के बाद केदारनाथ धाम जानें वाला पैदल रास्ता कई जगह क्षतिग्रस्त हो गया था। मार्ग क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण लगभग 10 हजार तीर्थयात्री अलग अलग जगहों में फंस गए थे।
इस प्राकृतिक आपदा ने राज्य के कई हिस्सों में भयंकर तबाही मचाई थी। अचानक भारी बारिश से मंदाकिनी नदी उफान में आ गई जिससे बचने के लिए तीर्थयात्रियों ने जंगलों की तरफ भागकर जान बचाई। जिससे हजारों लोग अलग अलग जगहों में फंस गए थे। इनके राहत एवं बचाव कार्य के लिए राज्य सरकार पिछले चार दिनों से एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और आपदा प्रबंधन विभाग की 882 सदस्यीय टीम के माध्यम से फंसे तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए मस्स्कत कर रही है। लेकिन सरकारी आंकड़े जो हकीकत बयां कर रहे हैं, वो बेहद चौंकाने वाले तो हैं ही साथ ही भयावह भी हैं। दरअसल, जहां दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का असर देखा जा रहा है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। जिज्ञासा और सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देकर, हम अपने समय की चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं और भावी पीढ़ियों के लिए एक अधिक समृद्ध और टिकाऊ दुनिया बना सकते हैं।
लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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