ई-रैबार : फिल्मी हस्तियां बोलीं, उत्तराखंड सिनेमा में संभावनाएं अपार, टैलेंट को तराशना होगा

ई-रैबार : फिल्मी हस्तियां बोलीं, उत्तराखंड सिनेमा में संभावनाएं अपार, टैलेंट को तराशना होगा

उत्तराखंड सिनेमा आज के समय में उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा है जितने देश के दूसरे और अपेक्षाकृत छोटे राज्य प्रगति कर रहे हैं। ऐसे में ई-रैबार के मंच पर हमने पहाड़ से निकलीं फिल्मी हस्तियों को बुलाया और उत्तराखंडी सिनेमा के उत्थान को लेकर विस्तार से चर्चा की….

हिल मेल के ‘ई-रैबार’ मंच पर गुरुवार यानी 7 मई 2020 को फिल्मी सितारों का संगम हुआ। जी हां, उत्तराखंड और हिंदी सिनेमा पर बात करने के लिए बॉलिवुड अभिनेता बृजेंद्र काला (Brijendra Kala), हेमंत पांडे (Hemant Pandey) और एफटीआईआई (FTII) के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला (Bhupendra Kainthola) एक साथ जुड़े। कार्यक्रम में मॉडरेटर की भूमिका अदा की अभिनेता और निर्देशक ओपी डिमरी ने। उत्तराखंड सिनेमा के उत्थान को लेकर ढेर सारी बातें हुईं।

बहुत कम काम हुआ… बॉलीवुड से तालमेल कम

फिल्म ऐक्टर बृजेंद्र काला ने कहा कि वास्तविकता यह है कि उत्तराखंड और बॉलीवुड फिल्म जगत में आपसी तालमेल अभी अच्छे तरीके से बन नहीं पा रहा है। उत्तराखंड का पूरी तरीके से बॉलीवुड अभी उपयोग कर ही नहीं पाया है। अभी गिनी-चुनी फिल्में ही उत्तराखंड के परिवेश में शूटिंग के लिहाज से बनी हैं। हाल-फिलहाल में थोड़ा काम बढ़ा है।

पढ़ें- अनुभवी मैनपावर लौटी उत्तराखंड, क्या रोजगार दे पाएगी सरकार

कारण समझाते हुए अभिनेता ने कहा कि जो निर्माता होते हैं और उत्तराखंड से जुड़े निर्माता जिनकी फिल्म जगत में ज्यादा दखलअंदाजी है, अगर वे रुचि लेते हैं तभी हम उस दिशा में बढ़ पाएंगे। बड़े रूप में हाल फिलहाल में ‘बत्ती गुल’ आई थी, धीरे-धीरे फिल्म बढ़ रही हैं पर उतना रफ्तार नहीं दिख रहा। केदारनाथ आपदा पर भी फिल्म बनी है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

आज की स्थिति शून्य, बीज बोने की जरूरत: पांडे जी

हेमंत पांडे ने कहा कि मैं तो जमीनी स्तर पर रहकर, जी कर आया है। मैं झेल कर आया कि एक फिल्म को बनाने के बाद उत्तराखंडी सिनेमा के लिए क्या दिक्कतें आती हैं, देखकर आया हूं। आज की स्थिति बहुत शून्य है। लेकिन किसी दूसरे राज्य के सिनेमा की तरह ही यहां भी संभावनाएं अपार हैं। मलयालम समेत अन्य क्षेत्रीय सिनेमा के टक्कर में हम कहीं नहीं है। उन्होंने हिल मेल की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि उत्तराखंड फिल्म को लेकर इस तरह की चर्चा एक महत्वपूर्ण कदम है।

पढ़ें- लॉकडाउन में सैकड़ों जरूरतमंदों को खाना खिला रही पहाड़ की बेटी

सरकार की तरफ से फिल्म विकास बोर्ड की शुरुआत की गई थी पर उसका काम आप देख ही रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब मैं फिल्म विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष था तब से लेकर अब तक सुझाव दे रहा हूं कि उत्तराखंड सिनेमा का हमें बीज पैदा करना है। एफटीआईआई जैसे बड़े संस्थानों से लोग सीख कर आ रहे हैं लेकिन हमारे राज्य में कोई ऐसी संभावना नहीं है कि एनएसडी या एफटीआईआई से कोई आता है तो उसकी शुरुआत कर सके।

उत्तराखंड सिनेमा से आगे डेढ़ लाख लोगों की भाषा में बनी फिल्म

FTII के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला ने कहा कि पांडे जी ने जो बात कही है वह महत्वपूर्ण बात है कि सिनेमा की बीज पैदा करने की जरूरत है। वहां ईको सिस्टम नहीं है। कम से कम 30-40 साल से गढ़वाली, कुमांउनी भाषा में बन रही हैं, 4 साल मैं नेशनल फिल्म अवॉर्ड का डायरेक्टर था दिल्ली में और उन चार वर्षों में छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में तो डेढ़ दो लाख लोगों में बोली जाने वाली भाषा की फिल्म आई और अवॉर्ड ले गई। वहां पर भी फिल्म को लेकर संवेदनशीलता है कि हमें फिल्म दिल्ली भेजनी चाहिए लेकिन 4 वर्षों में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में कोई फिल्म नहीं आई।

उन्होंने कहा कि एक हमें ईको सिस्टम तैयार करना है। उत्तराखंड मूल के फिल्ममेकर बाहर जाकर अच्छी फिल्म बनाते हैं लेकिन प्रदेश में ऐसा माहौल ही नहीं है कि वे कुछ बना पाएं जबकि पलायन जैसे संवेदनशील मसले पर बढ़िया फिल्म बन सकती है और वह एक दिल को छू लेने वाले मेसेज दे सकती है।

पूरा शो देखने के लिए आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें…

Please accept YouTube cookies to play this video. By accepting you will be accessing content from YouTube, a service provided by an external third party.

YouTube privacy policy

If you accept this notice, your choice will be saved and the page will refresh.

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this