इंटरव्यू: प्राइड ऑफ उत्तराखंड – लेफ्टिनेंट जनरल जेएस नेगी (रिटा.) – चार दशक कहने को तो एक लंबा समय है लेकिन मैं अगर पीछे देखूं तो लगता है कि यह कल का बीता हुआ दिन था। कमीशन मिलने के बाद 40 साल सेना में कैसे निकले, ये पता ही नहीं चला। यह तभी ध्यान आता है जब मैं 30 सितम्बर को आईएमए से सुपर एनीवेट हुआ और उससे पहले मैं यह देखना शुरू करता हूं तो मुझे लगता है कि बस कुछ दिन पहले ही हमने इसको ज्वाइन किया था।
लेफ्टिनेंट जनरल जेएस नेगी ने सैन्य जीवन में हर वो मुकाम हासिल किया जिसका सपना एक युवा सैन्य अधिकारी आईएमए से पास आउट होने के बाद देखता है। उन्हें इंफ्रेंट्री की 16 डोगरा रेजीमेंट में कमीशन मिला। वह इस बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर रहे। ऑपरेशन पराक्रम के दौरान अपनी बटालियन की कमान संभाली। उत्तरपूर्व में काउंटर इंसरजेंसी, असम राइफल्स सेक्टर, लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्र में डिवीजन को कमांड किया। वेस्टर्न सेक्टर में 2 स्ट्राइक कोर की जिम्मेदारी संभाली। कई आतंकरोधी अभियान की कमान संभालने के साथ ही कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारतीय सैन्य ब्रिगेड के उप कमांडर और चीफ ऑफ स्टाफ के तौर पर तैनात रहे। उन्हें सैन्य सेवा में परम विशिष्ट सेवा मेडल, अतिविशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया है।
मूल रूप से चमोली जिले के पोखरी विकासखंड के कमद गांव के रहने वाले लेफ्टिनेंट जनरल नेगी ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा मेरठ के सेंट जॉन हायर सैकेंडरी स्कूल से की। उनके पिता दयाल सिंह नेगी बैंक के कार्मिक थे और मां सतेश्वरी नेगी गृहणी। 12वीं के बाद वर्ष 1977 में उनका चयन नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के लिए हुआ। एनडीए के बाद आईएमए से वह जून 1981 में पास आउट होकर सेना की 16 डोगरा रेजीमेंट में कमीशंड हुए। आईएमए की कमान संभालने से पहले वह स्ट्रैटजिक फोर्सेस कमांड में तैनात थे।
आप चार दशक तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे, अपने इस सफर को कैसे देखते हैं?
चार दशक कहने को तो एक लंबा समय है लेकिन मैं अगर पीछे देखूं तो लगता है कि यह कल का बीता हुआ दिन था। कमीशन मिलने के बाद 40 साल सेना में कैसे निकले, ये पता ही नहीं चला। यह तभी ध्यान आता है जब मैं 30 सितम्बर को सुपर एनीवेट हुआ और उससे पहले मैं यह देखना शुरू करता हूं तो मुझे लगता है कि बस कुछ दिन पहले ही हमने इसको ज्वाइन किया था। अगर हम एडीए और आईएमए की ट्रेनिंग का समय भी जोड़े तो 1977 में मैंने नेशनल डिफेंस एकेडमी ज्वाइन की थी और 13 जून को मैं पास आउट हुआ। मुझे इंफेंट्री बटालियन 16 डोगरा में कमीशन मिला और उसके बाद मैं एक युवा अधिकारी और कंपनी कमांडर होने के दौरान अलग-अलग फील्ड एरिया में गया। रेस्क्यू ऑपरेशन में गए, हाई एल्टीट्यूड में रहे और कुछ पीस स्टेशन में भी सेवाएं दीं। 1987 में लेह में था, उस दौरान शादी हुई। इसके बाद मुझे अपनी यूनिट 16 डोगरा को कमांड करने का मौका मिला। वेस्टर्न सेक्टर में ऑपरेशन पराक्रम यूनिट को मैंने कमांड किया। मैंने अपनी सर्विस के 6 टेन्योर जम्मू-कश्मीर में बिताए। तीन कार्यकाल मेरे लद्दाख के रहे। मुझे पहले बतौर कैप्टन, कर्नल और बाद में मेजर जनरल डिवीजन कमांड करने का मौका मिला। इंसरजेंसी में मैंने नॉर्थ ईस्ट में सर्व किया। मैं अच्छे कोर्स के लिए स्टॉफ कॉलेज गया, हाई कमांड कोर्स के लिए गया, इसके अलावा नेशनल डिफेंस कॉलेज भी गया, जिसमें विदेशी अधिकारियों के साथ काम करने का मौका मिला। मैंने कारगिल में डिवीजन कमांड किया, इसका मुझे बहुत गर्व है। एक इंफेंट्री ऑफीसर होने के नाते मैं इसे एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानता हूं। किसी भी ऑफीसर के लिए एक मैकेनाइज्ड कोर को कमांड करना गर्व की बात है। मुझे अंबाला की सेकेंड कोर को सर्व करने का सौभाग्य मिला। इसके अलावा मुझे स्ट्रेटिजिक फोर्स कमांड में काम करने का अवसर मिला। मैं अपने आप को बड़ा खुशकिस्मत समझता हूं कि मुझे आईएमए कमांडेंट बनने का अवसर मिला। जहां से मैं पासआउट हुआ था, वहीं से मैं 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हुआ। मेरे लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है। मैं भगवान और भारतीय सेना का शुक्रगुजार हूं कि मुझे सेवा का अवसर मिला। अगर मुझे फिर से मौका मिले तो मैं फिर से ग्रीन यूनीफार्म डालकर सेना में रहना चाहूंगा।
सैन्य जीवन का हर दिन वैसे तो रोमांच से भरा होता है, फिर भी कुछ ऐसी यादें, जो आपके दिल के बहुत करीब हैं?
कई ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें आप समझते हैं कि बहुत बड़ी घटनाएं हैं लेकिन वह एक रूटीन के तौर पर चली आती है। मेरी यादों में सबसे पहले नेशनल डिफेंस एकेडमी, फिर जो हमने कमीशन लिया, उसके बाद यूनिट में जाना। हर अधिकारी की इच्छा होती है कि वह जिस यूनिट में गया, उसके कमांड करे, मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैंने अपनी 16 डोगरा यूनिट को कमांड किया और वह भी कुछ इंसरजेंसी एरिया और कुछ ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वेस्टर्न बॉर्डर पर। मुझे एक चैलेंजिंग मौका मिला जब मैंने काउंटर इंसरजेसी ऑपरेशन के दौरान असम राइफल्स को कमांड किया। कारगिल की डिवीजन को कमांड करने का मौका मिला। इसके बाद अंबाला में स्ट्राइक कोर को कमांड किया। मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मैं जिस आईएमए से सेना में ऑफिसर बना और वहीं से सेवानिवृत्त हुआ। यह मेरे लिए बड़े गौरव की बात है। इस साल आईएमए के पास अंडरपास का शिलान्यास हुआ, जो पिछले 40 साल से नहीं हुआ था। इसमें देश के रक्षा मंत्री, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ वीडियो कांफ्रेंसिंग और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री देहरादून से शामिल हुए। मैं समझता हूं कि यह बहुत सारी अच्छी यादगार चीजें हैं। देश का वर्दीधारी सैनिक चाहे वह सेना में हो या अर्द्धसैनिक बल में, सभी देशवासी उसका सम्मान करते हैं। इससे बड़ा कोई ऐसा प्रोफेशन नहीं है कि जहां पर देश को गर्व है और जहां पर हर नागरिक हर सैनिक की दिल से इज्जत करता है, उसको मान सम्मान देता है। इसे मैं बहुत बड़ी एक उपलब्धि समझता हूं। इसके अलावा मैं अपने परिवार का, अपने दोस्तों का और विशेष तौर पर अपनी पत्नी का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में मेरे पूरे परिवार को संभाला, बच्चों का लालन पालन और शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी निभाई। मुझे अपने जीवन में बहुत अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला, चाहे वह हमारे सैनिक रहे हों, मेरे समकक्ष अधिकारी रहे हों, सभी का भरपूर सहयोग मिला।
कोरोना काल में आईएमए की पास आउट परेड कराना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
- आईएमए के कमांडेंट के तौर पर कोरोना काल में आईएमए में पासिंग आउट परेड का सफल आयोजन सभी अफसरों और सैनिकों के बिना संभव नहीं था। इसको सफल बनाने में हमारे कैडेट्स का भी अहम योगदान रहा और इन चुनौतियों का सामना करते हुए हम इसमें सफल हुए। कोरोना काल में सभी विदेशी कैडेट्स ने तय किया कि वह यहीं पर रहकर ट्रेनिंग लेंगे और इसके बाद ही यहां से जाएंगे, ये हमारे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही।
इस बार की पास आउट परेड में आपने एक नई पहल की, यह कैसे हुआ?
ट्रेनिंग के अंतिम पग के बाद आप ऑफिसर बनते हैं लेकिन हमारे आर्मी चीफ का एक संदेश आया कि इस बार कुछ इस तरह से पहल की जाए कि सोचो पहला कदम कैसा हो, उन्होंने गाइडलाइन दी और इस पर सोच विचार चलता रहा कि पहला कदम कहां पर रखा जाए, उसको कैसे थीम बेस बनाकर अमल में लाएं। उसके बाद हमने सोचा कि पहला कदम यानी कि ऑफिसर बनने के बाद। एक कैडेट ट्रेनिंग के अंतिम पग के बाद जब एक अधिकारी के रूप में सेना ज्वाइन कर रहा है, तो पीपिंग सैरेमनी के बाद उसका पहला कदम सेना के लिए है। हमने इसी सोच को आगे बढ़ाया। हमने ऑफिसर और टीम के साथ सोच विचार किया और उसके बाद अप्रूवल लिया। आर्मी हेडक्वाटर और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को बताया कि हमने यह सोच विचार किया हुआ है। हमने इसके लिए एक वातावरण बनाया जब वह आएगा तो क्या उम्मीद रखेगा, क्या अपेक्षा रखेगा। जब वह अंतिम पग पर जाता है तो वह स्लो मार्च से चलता है इसलिए हमने नया प्रयास किया कि वह एक जोश के साथ, गति के साथ, एक नई ऊर्जा के साथ, देश भावना के साथ, प्राइड के साथ, सेंस ऑफ एचीवमेंट के साथ सेना का हिस्सा बने। इस बार तो पीपिंग ऑफिसर लेडीज ने की। चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ खुद यहां मौजूद थे, जो सब कैडेट के लिए एक गर्व की बात होती है। उन्होंने खुद जेंटलमैन कैडेट की पीपिंग सैरेमनी की। पहला कदम उन्होंने खुद होते हुए देखा। यह आगे ऐसा ही चलता रहेगा।
आईएमए अंडरपास आखिरकार शुरु हो गया है, यह कैसे हो सका?
मैंने जो डॉक्यूमेंट में पढ़ा कि अंडरपास की शुरूआत 1976-77 के समय से शुरू हुई। पहले पूरा अंडरपास बनना था, नेशनल हाइवे में लगभग 2 किलोमीटर का बनना था। इसमें कुछ आर्थिक और टेक्नीकल चीजें आई, यह बात काफी समय तक चलती रही। फिर इस पर कार्रवाई तेज हो गई क्योंकि यहां पर डॉ अब्दुल कलाम आए, प्रधानमंत्री आए, आर्मी चीफ आए और इसके अलावा यहां पर देश और विदेश के कई सैन्य अधिकारी भी आते रहे। लेकिन इसकी शुरूआत सन् 2016-17 में शुरू हुई और तब यह प्रस्ताव हुआ कि यहां पर एक अंडरपास बनाया जाए। कुछ तकनीकी और आर्थिक कारण से पहले जो प्रस्तावित योजना थी उस पर अमल नहीं हुआ और अब यह अंडरपास बनाने के बारे में कागजी कार्रवाई 2017 में शुरू हुई। इसके लिए हमारे कमांड हेडक्वाटर से आर्मी हेडक्वाटर को पत्राचार किया गया। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से भी पत्राचार किया गया क्योंकि इस अंडरपास की फंडिंग तो रक्षा मंत्रालय को करनी थी और इसको बनाने का जिम्मा पीडब्ल्यूडी का था। इसके बाद 7 दिसम्बर 2019 को रक्षा मंत्री यहां आए तो उन्हें यहां पर आने वाली दिक्कतों के बारे में बताया गया। उन्होंने घोषणा की कि 44 करोड़ की लागत से इस अंडरपास को बनाया जाएगा। उसके बाद फिर इतना समय लग गया, क्योंकि पूरा प्रपोजल बनना था उसकी सेंक्सन आनी थी, हमारे इंजीनियरों के द्वारा, राज्य सरकार द्वारा, सेना मुख्यालय द्वारा और फिर यह रक्षा मंत्रालय ने किया। सभी लोगों के सहयोग से यह कार्य शुरू हुआ और आखिरकार 28 सितम्बर 2019 को इसके बनने की नींव रखी गई। यह सुरक्षा की दृष्टि से काफी अच्छा होगा। इसके अलावा यहां आने जाने वाले लोगों को जो परेशानी होती थी उनको इससे छुटकारा मिलेगा। इससे जो ईंधन की बर्बादी होती थी वह भी कम होगी, प्रदूषण में भी कमी आएगी।
आप ऐसे समय में देहरादून में रहे, जब कोरोना के चलते काफी उत्तराखंडी लौटे हैं, क्या सोचते हैं ?
मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई और उसके बाद आगे की शिक्षा मैंने बाहर शहरों में की। उसके बाद मैंने नेशनल डिफेंस एकेडमी ज्वाइन की। जब भी हमको समय मिलता था तो मैं बच्चों के साथ अपने गांव जाया करता। मेरी पत्नी भी गौचर की है। कोरोना के कारण इस साल काफी लोग अपने घर की ओर आए। प्रकृति और परिवार के सहयोग ने इस साल पहाड़ के कई लोगों को मिला दिया। चाहे विदेश से आए लोग हो या अपने देश से, सभी को कोरोना ने एक साथ जोड़ दिया। जहां तक राज्य सरकार की बात है तो कोरोना काल में राज्य सरकार और भारत सरकार ने इन लोगों की काफी मदद की। जहां तक मैंने समाचार पत्रों और मैग्जीन में पढ़ा कि इस कोरोना काल में उत्तराखंड में लगभग 3 लाख लोग वापस आए हैं। बाहर से आए हुए लोगों के लिए सरकार की ओर से स्वास्थ्य, बस, क्वारंटाइन सेंटर, खाने पीने की व्यवस्था आदि की जरूरत थी और सरकार ने ये सारे कदम उठाए। मेरा मानना है कि जो लोग बाहर से आए हैं, इनमें से कुछ लोग तो यहां रहेंगे लेकिन जैसे-जैसे स्थिति सामान्य होगी, कुछ लोग फिर से बाहर जाएंगे। जो लोग यहां रहेंगे उनको एडवेंचर, टूरिज्म, पशुपालन, कृषि, स्वरोजगार जैसे क्षेत्रों में काम करना चाहिए।
क्या अब उत्तराखंड में ही बसेंगे, ऐसा कौन सा शौक है, जिसे अब पूरा करना चाहेंगे?
हम वैसे मूल रूप से चमोली गढ़वाल से हैं, गांव भी जाते रहे हैं लेकिन देहरादून में आने के बाद लगा कि यहां का वातावरण बहुत अच्छा है। आने वाले समय में मेरा विचार है कि हम यहीं पर ही रहें। मैं सोचता हूं कि कुछ समय परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर बिताया जाए। पढ़ना और घूमना भी काफी पंसद है। हालांकि नौकरी के दौरान काफी जगह देखने की मिली लेकिन उसके अलावा भी हम कई जगहों पर घूमना पसंद करेंगे। हमारे उत्तराखंड में भी कई ऐसे स्थान हैं जहां हम नहीं जा पाए। अब हम कोशिश करेंगे कि उन जगहों को भी देखें। हमें अगर कोई जिम्मेदारी सौंपी जाती है तो उसे हम पूरा करने की कोशिश करेंगे। मैं और मेरी पत्नी से जो भी काम हो सकेगा, हम उसको पूरे दिल से करेंगे। इसके अलावा मैं पूरी हिल-मेल टीम को धन्यवाद और शुभकामनाएं देता हूं। मैं समझता हूं कि आप लोग एक बहुत बड़ी पहल कर रहे हैं, लोगों को जोड़ने की, लोगों को जगाने की, लोगों को एक मंच पर लाने की, जागरूकता पैदा करने की और साथ ही आप लोगों को अवसर भी दे रहे हैं। मैं अपनी और परिवार की ओर से आप सब को शुभकामनाएं देता हूं।
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लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) जयवीर सिंह नेगी मुख्यमंत्री के सैन्य एवं सीमांत क्षेत्र सुरक्षा सलाहकार
December 1, 2020, 8:46 pm[…] […]
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