आप पहाड़ में रहते हों या मैदानी इलाकों में, ज्यादातर लोग पहले यही सोचते हैं कि वह या उसके बच्चे को नौकरी मिल जाए और अपने पैरों पर खड़ा हो जाए लेकिन अब लोगों का नजरिया बदल रहा है। इस सोच को जो लोग बदल रहे हैं, उन्हीं पर केंद्रित है आज की #UttarakhandPositive स्टोरी…
गांव से दूर शहर में 6 साल तक की नौकरी, पर दिल नहीं लगा। मन में एक टीस थी कि गांव में ही रहना है और वहीं कुछ करना है। पर शायद घरवालों का दबाव था कि नौकरी करनी पड़ रही थी। एक दिन अचानक सामान बांधा और गांव आ गए और फिर गांव में रहकर कैसे खड़ी कर दी फैक्ट्री, सालभर में अब 25 लाख का है टर्नओवर….
योगेश बधानी उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लॉक के कोटियाल गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने अपने गांव में ही फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई है, जहां वह 5 तरीके के स्क्वैश, चटनी, आचार समेत 22 तरह के उत्पाद तैयार कर रहे हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने यह काम 6 साल पहले अपने घर के किचन से ही शुरू किया था।
2013 में वह एनजीओ सेक्टर में काम कर रहे थे। 6 साल काम करते हो गए थे लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें अपने ही गांव में बिजनस शुरू करना चाहिए। इससे आसपास के युवाओं को भी फायदा होगा। 2013 में उन्होंने 5-6 महीने प्लानिंग में खर्च किए। उन्हें खाने का शौक है तो उन्होंने फूड सेक्टर में ही कारोबार शुरू करने का फैसला किया।
हिल-मेल से विशेष बातचीत में योगेश ने बताया कि उनका क्षेत्र फल और सब्जी के लिहाज से संपन्न है। हमने फूड प्रोसिंसिग यूनिट शुरू करने का फैसला किया। शुरूआत में फंड जुटाने में काफी दिक्कत हुई। बैंक भी लोन देने के लिए तैयार नहीं थे। आखिर में थककर उन्होंने अपने घर के किचन में ही पहला प्रोडक्ट लेमन स्क्वाश तैयार किया। घर में नींबू का पेड़ था और उससे ही तोड़कर पहला उत्पाद 10 लीटर का तैयार किया और सबसे पहले घरवालों को ही बेचा।
उन्होंने बताया, ‘यह जनवरी 2014 की बात थी। किचन से बढ़कर काम चल पड़ा। दोस्तों, आसपास के लोगों में सामान बेचा जाने लगा। लेकिन फंड की कमी आड़े आ रही थी। ऐसे में मैंने एक दोस्त से एक लाख रुपये उधार लिए और 10 बाई 12 की दुकान ली और उसी में सामान बनाने और बेचने लगा।’
2016 में उद्योग विभाग से संपर्क हुआ। तत्कालीन मैनेजर जोशी जी ने काफी मदद की। बैंक शुरू में कुछ देने को तैयार नहीं था। बैंक बोलता था कि 50 हजार ले लीजिए, जो पर्याप्त नहीं था। पीएम रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत 4 लाख की फाइल तैयार हुई और बैंक ने एक गारंटर और कागजात भी अपने पास रखे जबकि नियम के तहत ऐसा जरूरी नहीं था। फिर भी मैं पीछे नहीं हटा और आखिरकार 4 लाख का लोन पास हुआ।
इस पैसे से योगेश ने बड़ी जगह ली और काम को फैलाया। पहले कम महिलाएं हमारे साथ जुड़ी थी। 2017-18 में गांव में अपने ही खेत में 1800 वर्ग फीट क्षेत्र में फैक्ट्री खड़ी की। इसमें पूरी जमापूंजी लगा दी। अब हमने गांव की और महिलाओं को जोड़ना शुरू किया। हमारा उत्पादन तेजी से बढ़ा और हमारी पहुंच हिमाचल प्रदेश तक हुई। खास बात यह है कि योगेश के उत्पाद सब ऑर्गेनिक हैं और इसमें केमिकल की मात्रा नहीं है।
पहले परिवार का समर्थन नहीं था। उन्हें पहले लग रहा था कि पहाड़ में ये सब करना संभव नहीं है। हालांकि 3-4 साल बाद सब सहयोग करने लगे। योगेश कहते हैं कि पहाड़ में सभी लोग चाहते हैं कि बेटा सरकारी नौकरी करे या किसी कंपनी में काम करे। उनके घरवाले भी ऐसा ही चाहते थे लेकिन योगेश को कुछ और ही पसंद था।
2018 से स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 20 महिलाएं योगेश की फैक्ट्री में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना प्रकोप के पहले उनका माल गाजियाबाद तक जाना शुरू हो गया था लेकिन लॉकडाउन के कारण सब ठप हो गया। फरवरी में गाजियाबाद के 2 ट्रक सामान गए थे। लॉकडाउन के समय पूरी पूंजी लग गई थी, 50 हजार लीटर स्क्वैश का टारगेट था। दूसरी चीजें भी स्टॉक हो गईं।
बाहर से लोग भी गांव में आने लगे और कुछ और लोगों ने काम करने के लिए संपर्क किया। 6-7 ऐसी महिलाएं आईं जिनके परिवार के लोगों को लॉकडाउन के कारण घर लौटना पड़ा था। अब हमारे सामने दोनों तरफ समस्या थी। पूंजी लग चुकी थी और सामान का स्टॉक था दूसरी तरफ काम करने वालों की संख्या बढ़ गई थी। ऐसे में हमने स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली सब्जियों पर फोकस किया। उसका हमने अचार तैयार कराना शुरू कर दिया था। पहले हमारा सालभर में 2 हजार किलो का अचार तैयार होता था लेकिन अब हमने 25 हजार किलो तक इकट्ठा कर लिया।
हमारा काम तो बढ़ा ही, जो साथ में जुड़े थे उन्हें लगातार काम मिलना शुरू हो गया। हमने इन महिलाओं को फैक्ट्री में इस्तेमाल होने वाली करेला जैसी सब्जियों के बीज मुहैया कराए। अब हम ये चीजें अपने साथ काम करने वाली महिलाओं से खरीदते हैं। यानी कच्चा माल से आमदनी और फाइनल प्रोडक्ट तैयार करने में भी आय दोनों तरफ से होने लगी।
योगेश ने बताया कि उनका पिछले साल का टर्नओवर 25 लाख रुपये था। इस बार 50 लाख का टारगेट था लेकिन कोरोना के कारण दिक्कत हुई। हालांकि उन्होंने प्लान बी के तहत अचार का काम बढ़ा लिया जिससे उन्हें उम्मीद है कि रिकवरी हो जाएगी।
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