…कहानी उनकी जो उत्तराखंड में बन चुकी हैं महिला सशक्तिकरण का दमदार चेहरा

…कहानी उनकी जो उत्तराखंड में बन चुकी हैं महिला सशक्तिकरण का दमदार चेहरा

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की कई कहानियां हैं, तीलू रौतेली से लेकर गौरा देवी तक…और पहाड़ की आर्थिक धुरी कहलाने वाली वो महिलाएं जो अपनी जीवटता के चलते मुश्किल हालात में भी पहाड़ जैसी दृढ़ता का प्रतीक हैं…। आज उत्तराखंड में महिलाएं सफलता के नए शिखर छू रही हैं। उत्तराखंड की राज्यपाल एक महिला हैं…। यहां शासन-प्रशासन में महिलाओं की अग्रणी भूमिका है। आज महिलाएं स्वरोजगार और एंटरप्रेन्योरशिप के नई कीर्तिमान गढ़ रही हैं। राजनीति से लेकर समाजसेवा और लगभग हर क्षेत्र में उत्तराखंड की महिलाओं ने नए आयाम स्थापित किए हैं…।

जब एक महिला पढ़-लिख लेती है, सशक्त बनती है, अपने फैसले खुद लेने का अधिकार पाती है तो सिर्फ वही नहीं, उसका परिवार, आस-पड़ोस, गांव, राज्य ही नहीं पूरा देश सशक्त बनने की ओर अग्रसर होता है। जी हां, यह एक सच्चाई है, जिसे अब हर कोई मानने लगा है। वर्षों से पुरुषों द्वारा निर्देशत महिलाओं को जब समान अधिकार मिले तो उन्होंने सफलता के नए आयाम गढ़े। आज प्रशासन, कला, फिल्म, राजनीति, समाज सेवा, स्पेस… जैसे सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना दबदबा कायम किया है। महिलाओं की इसी क्षमता के कारण उन्हें शक्ति कहा गया है। मां, बेटी, पत्नी और न जाने कितने रूपों में वह हमारे आसपास हमें पल्लवित, पोषित करती हैं। इस बात को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है। महिला अधिकारों और सम्मान के लिए ही हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।

महिला दिवस के मौके पर उन महिलाओं का जिक्र जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में एक मुकाम हासिल किया और समाज को नई दिशा दे रही हैं..जो उत्तराखंड की लाखों लड़कियों के लिए रोल मॉडल हैं।

बेबी रानी मौर्य, राज्यपाल

राज्य के सर्वोच्च पद पर आसीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्या मार्गरेट अल्वा के बाद उत्तराखंड की दूसरी महिला गवर्नर हैं। जो लोग महिलाओं को एक दायरे में सीमित करते हैं, उन्हें राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के बारे में जानना चाहिए। नारी रत्न, उत्तर प्रदेश रत्न और सामाजिक कार्यों के लिए समाज रत्न से सम्मानित बेबी रानी मौर्य को मृदुभाषी और अपने कार्यों को मिशन मोड में पूरा करने की उनकी शैली के लिए जाना जाता है। गैर राजनीतिक परिवार से आने वाली बेबी रानी ने 1990 के दशक की शुरुआत में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।

उन्होंने बीएड और कला में परास्नातक किया है। उनके पति बैंक में उच्च पद पर थे। हालांकि उन्होंने खुद को राजनीति के जरिए जनसेवा के काम में लगाया। घर का पूरा सपोर्ट मिला और वह लगातार सियासत की सीढ़ियां चढ़ती चली गईं। भाजपा की सदस्यता लेने के बाद वह 1995 से 2000 तक आगरा की महापौर रहीं। वह आगरा की महापौर बनने वाली पहली महिला थीं। 1997 में उन्हें भाजपा की अनुसूचित जाति शाखा की पदाधिकारी नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद तब इसी एससी विंग के अध्यक्ष थे। बेबी रानी मौर्य ने समूचे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के सदस्यों के बीच भाजपा की पहुंच को मजबूत किया। 2001 में उन्हें उत्तर प्रदेश सामाजिक कल्याण बोर्ड का सदस्य बनाया गया था। दलित महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए। 2002 में उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बनाया गया था। उन्होंने 2005 तक आयोग की सदस्य के रूप में कार्य किया।

2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भी वह लगातार जनसेवा में जुटी रहीं। जुलाई 2018 में, उन्हें बाल अधिकार संरक्षण राज्य आयोग का सदस्य बनाया गया था। 21 अगस्त 2018 को, मौर्य को भारत सरकार द्वारा उत्तराखण्ड की राज्यपाल नियुक्त किया गया।

माता श्री मंगला, आध्यात्मिक गुरु माता एवं समाजसेवी

अगर यह कहा जाए कि उत्तराखंड के लोग इस नाम को पूजते हैं तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश के अग्रणी दानदाता संगठन ‘द हंस फाउंडेशन’ की संस्थापक माताश्री मंगला ने अपना जीवन जनता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। सुदूर पहाड़ों पर कोरोना काल में जब लोगों को खाने-पीने की दिक्कत होने लगी तो उन तक मदद पहुंचाई मंगला माता के हंस फाउंडेशन ने। दूसरे राज्यों में फंसे उत्तराखंड के लोग जब संकट में थे तो उनके खातों में पैसे भेजकर उनकी सहायता की गई। प्रधानमंत्री राहत कोष हो, आपदा, बाढ़ के समय भी मंगला माता के परोपकारी कार्य जारी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, पानी, बिजली, रोजगार, प्रशिक्षण समेत तमाम क्षेत्रों में मंगला माता ने महिलाओं को सशक्त किया है।

माताश्री मंगला कहती हैं, ‘मैं महिला हूं और महिलाओं की तकलीफ समझती हूं। मैं चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं राज्य एवं देश को प्रगति की राह पर आगे बढ़ाने में अपना योगदान करें।’ माताश्री मंगला ने कहा कि हम सबका यही उद्देश्य होना चाहिए कि पहाड़ में हम महिलाओं को समृद्ध जीवन दे सकें जिससे आने वाली पीढ़ी भी उसका फायदा उठाए और एक नए युग की शुरुआत हो सके। उन्होंने कहा कि महिला के अंदर वह शक्ति है कि भगवान को सबसे पहले मां की शक्ति के रूप में याद किया जाता है- त्वमेव माता, पिता त्वमेव…। पहाड़ की महिलाओं में विशेष ऊर्जा है, हर कठिनाई को वह पार करती हैं। हमने भी जहां-जहां अस्पतालों की शुरूआत की तो महिलाओं व स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए। लवाड़ में मल्टी स्किल डिवेलपमेंट कॉम्पलेक्स बना रहे हैं, जिसमें कोशिश है कि केरल की नर्स की तरह उत्तराखंड को नर्सिंग हब के तौर पर तैयार किया जाए। उन्होंने कहा, आज लड़कियां पायलट बन रही हैं, नर्स बन रही हैं, कंप्यूटर कोर्स कर रही हैं, बड़ी खुशी होती है कि लड़कियां हमारे लड़कों से बहुत आगे जा चुकी हैं। शिक्षा में उन्होंने मुकाम हासिल किया है।

बसंती देवी बिष्ट, जागर गायिका

 

 

पद्मश्री बसंती बिष्ट उत्तराखंड की लोक संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। उन्होंने ऐसे समय में पुरुष प्रधान समाज में मंच पर जागर गाना शुरू किया जब इस पर कई तरह की पाबंदियां थीं। मां से उन्होंने सीखा पर प्रोत्साहन नहीं मिला तो उनकी गीत-संगीत की हसरत अधूरी रह गई। हालांकि बसंती देवी बिष्ट ने हार नहीं मानी। शादी के बाद जब पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो विधिवत रूप से सीखने की सलाह दी। पहले तो बसंती तैयार नहीं हुई लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने सीखने का फैसला किया।

उन्होंने उत्तराखंड के जागर गायन को नए आयाम दिए। आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न मंचों पर अपनी प्रस्तुति से पहाड़ की संस्कृति और लोक गायन की एंबेसडर मानी जाने लगीं। देहरादून में रहकर वह लगातार पहाड़ की संस्कृति के संवर्द्धन में जुटी हुई हैं। जनवरी 2017 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बसंती देवी बिष्ट की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी। कुछ वर्ष तक वह अपनी ससुराल में रहकर घास-पानी और खेत खलिहान के कार्य करती रहीं और बाद में अपने पति के साथ पंजाब चली गईं, जो सेना में नौकरी करते थे। पंजाब में उन्होंने प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ में एडमिशन ले लिया और पांच वर्ष तक संगीत की बारीकियां सीखीं। बाद में देहरादून आ गईं और परिवार की जिम्मेदारियां निभाने लगीं। देहरादून में किसी ने उन्हें आकाशवाणी जाने की सलाह दी। आकाशवाणी में उन्होंने जागर गायन को प्राथमिकता दी। बसंती बिष्ट अब तक तमाम मंचों पर एक हजार से अधिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं।

राधिका झा, आईएएस, सचिव, मुख्यमंत्री

 

धर्म और अध्यात्म की नगरी प्रयागराज में जन्मीं 2002 बैच की आईएएस अधिकारी राधिका झा ने अपनी मेहनत और लगन से अलग पहचान बनाई है। बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज रहीं राधिका ने दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद आईएएस की परीक्षा पास की। सिक्किम कैडर की अधिकारी बनीं और पर्वतीय राज्य में सात वर्षों तक काम किया। राधिका झा को साल 2009 में उत्तराखंड कैडर मिला और वह शिक्षा विभाग से जुड़ीं। साल 2010 में टिहरी जिले की जिलाधिकारी बनीं। साल 2011 में शहरी विकास विभाग से जुड़ीं जहां उन्होंने इधर-उधर कूड़ा फेंकने व थूकने के खिलाफ नियम बनाने का प्रस्ताव रखा था।

साल 2013 में उन्हें प्रदेश के सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान दोनों का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने ‘सपनों की उड़ान’ कार्यक्रम शुरू किया जिसकी आज भी चर्चा होती है। इसमें कॉर्पोरेट घरानों की मदद से गांवों और झुग्गी-बस्तियों के बच्चों को मोबाइल विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा की मुख्य-धारा से जोड़ा गया। साल 2014-15 में वह शहरी विकास और पर्यटन विभाग से जुड़ीं। साल 2015 में वह भारत सरकार के इंटीग्रेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम की डायरेक्टर बनीं। हालांकि 2017 में राधिका झा को उत्तराखंड वापस बुलाया गया और वह मुख्यमंत्री की सचिव बनीं।

प्रदेश सरकार के सभी कर्मियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिये उन्होंने ‘उत्कर्ष’ नामक मॉनीटरिंग डैशबोर्ड तैयार किया और बढ़िया कार्य करने वाले विभागों के लिये सीएम अवॉर्ड भी शुरू करवाया। उन्हें प्रदेश के ऊर्जा विभाग की भी कमान मिली। सौभाग्य, उजाला मित्र, पिरुल पावर प्लांट जैसे कई उल्लेखनीय प्रयासों से उन्होंने प्रदेश में बिजली की स्थिति में काफी सुधारा है। बिजली चोरी रोकने के लिए ‘ऊर्जागिरी’ अभियान चलावाया। एक तरह से देखें तो जिस भी विभाग में उन्हें तैनाती मिली वह मानकों पर खतरी उतरीं। उन्होंने अपने स्तर पर नूतन प्रयास किए और ऊर्जा संरक्षण के लिए काम किया। महिला दिवस के अवसर पर ऐसी तेजतर्रार आईएएस उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्हें प्रोग्रेसिव ब्यूरोक्रेट कहा जाता है।

तृप्ति भट्ट, आईपीएस, एसएसपी टिहरी

कोई ‘लेडी दबंग’ कहता है पर सच मायने में 2013 बैच की आईपीएस तृप्ति भट्ट उन बेटियों के लिए प्रेरणा हैं, जो समाज में अलग अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। जब निश्चय दृढ़ हो तो मंजिल जरूर मिलती है। तृप्ति की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग के बाद छह सरकारी और प्राइवेट संस्थानों की नौकरी ठुकराने के बाद वह एनटीपीसी में सहायक प्रबंधक का पद संभाला। हालांकि उनके मन में पुलिस की वर्दी पहनकर जनसेवा का सपना उन्हें चैन से रहने नहीं देता था। अल्मोड़ा के शिक्षक परिवार से आने वाली तृप्ति का चयन इसरो में साइंटिस्ट के लिए भी हुआ था। अपनी लगन और मेहनत के बल पर वह आईपीएस बनीं और आज अपनी ईमानदारी और कार्य के प्रति समर्पण भाव की बदौलत उत्तराखंड में तेजतर्रार पुलिस अधिकारी के रूप में पहचान बनाई हैं।

एसडीआरएफ की सेनानायक का पद हो या चमोली- टिहरी की एसएसपी का, उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया। एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने व्यस्त दिनचर्या के बाद भी वह लेखन और कला के लिए समय निकालती हैं। उन्होंने किताब भी लिखी है।

अनीता ममगाईं, ऋषिकेश नगर निगम की मेयर

नगर निगम ऋषिकेश की मेयर अनिता ममगाईं महिला अधिकारों और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए जी जान से जुटी हैं। उनका कहना है कि महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी होना जरूरी है। महिला प्रेम और ममता की मूरत बनकर समाज को दिशा दिखाती हैं। उन्होंने ऋषिकेश को स्वच्छ बनाने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। उन्होंने लोगों से जुड़ने और उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए सोशल मीडिया का बेहतरीन इस्तेमाल किया है।

उन्होंने कहा है कि मैंने ऋषिकेश को आदर्श शहर बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए स्वच्छता और सुंदरता के दो बहुप्रतीक्षित मॉडल तैयार किए गए हैं। यह जनोपयोगी मॉडल ऋषिकेशवासियों को जल्द देखने को मिलेंगे। महिलाओं में सुरक्षा व सम्मान की भावना जागृत करने पर निगम ने फोकस किया है। एक महिला होने के नाते उनका पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं से सीधे संवाद स्थापित हो सका है। इससे उनकी ऋषिकेश में अलग पहचान बनी है। समाज के लोगों के लिए वह प्रेरणा बनकर उभरी हैं।

उर्वशी रौतेला, अभिनेत्री

 

आज के इस दौर में फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमान आसान नहीं है। पता नहीं कितने लड़के और लड़कियां अपने शौक को पूरा करने मुंबई का रुख करते हैं पर सबको सफलता नहीं मिलती है। उत्तराखंड में जन्मीं उर्वशी रौतेला आज फिल्मी दुनिया में उत्तराखंड का नाम रोशन कर रही हैं। वह उन बेटियों के लिए प्रेरणा हैं जो छोटे शहर से होने के कारण खुद को दूसरों से कम समझती हैं। 2013 में सिंह साब द ग्रेट से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू करने वाली उर्वशी ने सनम रे, ग्रेट ग्रैंड मस्ती, काबिल, हेट स्टोरी 4 में अभिनय किया है। वह एक जानी पहचानी मॉडल हैं। हाल ही में उन्होंने उद्योगपति मुकेश अंबानी के जियो स्टूडियो के साथ तीन बड़ी फिल्में साइन की हैं और उन्हें टॉप 10 सुपर मॉडल की सूची में भी जगह मिली है।

उर्वशी रौतेला का जन्म कोटद्वार में हुआ था। उन्होंने अपने स्कूली दिनों में ही मॉडलिंग शुरू कर दी थी। 15 साल की उम्र में वह ब्‍यूटी शोज का ह‍िस्‍सा बनने लगीं। उर्वशी ने कोटद्वार के डीएवी से अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर आगे की पढ़ाई दिल्ली से की।

दीप्ति रावत, राज्यमंत्री, उच्च शिक्षा

 

 

उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी का युवा चेहरा और महिला सशक्तीकरण की एक बुलंद आवाज। कम उम्र में ही दीप्ति ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। मृदुभाषी, सौम्य स्वभाव वाली दीप्ति ने एमए मास कम्युनिकेशन में किया है। डूसू की वाइस प्रेसिडेंट रहीं, एबीवीपी के साथ जुड़ी रहीं। एक न्यूज चैनल में बतौर पत्रकार उन्होंने काम किया। एमएलए का चुनाव लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने सामाजिक संगठन ऊर्जा फाउंडेशन की स्थापना की है। राजनीति के साथ ही वह समाज सेवा में भी अपना बहुमूल्य योगदान दे रही हैं।

उत्तराखंड उच्च शिक्षा उन्नयन समिति की उपाध्यक्ष भी हैं। बच्चों और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं। पहाड़ के सुदूर इलाकों में कैसे आसानी से शिक्षा उपलब्ध कराई जाए, इस प्रयास में जुटी हैं। आज वह उत्तराखंड की बेटियों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं।

सायरा बानो, उपाध्यक्ष, राज्य महिला आयोग

 

तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाने वालीं सायरा बानो उत्तराखंड में राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के प्रति पारिवारिक हिंसा और अपराध के खिलाफ लंबा संघर्ष किया है। वह सच मायने में महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण हैं।

आज केंद्र सरकार द्वारा तीन तलाक के खिलाफ लाए गए कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। हालांकि जब भी इसकी चर्चा होती है शायरा बानो का भी जिक्र होता है। 2016 में 35 साल की सायरा बानो तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। वह अपना इलाज कराने के लिए उत्तराखंड में अपनी मां के घर आई थीं तभी तलाकनामा मिल गया। सुप्रीम कोर्ट से उन्होंने इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की मांग उठाई। सुनवाई शुरू हुई और मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला भी आया।

आरुषि निशंक, समाजसेवी एवं प्रख्यात कथक नृत्यांगना

मानव संसाधन विकास मंत्री और हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी आरुषि निशंक ने अपने पिता के प्रभाव से अलग पहचान बनाई है। समाज सेवा के क्षेत्र में वह लगातार काम कर रही है। कोरोना काल में उन्होंने कई तरह से लोगों तक मदद पहुंचाई। फिलहाल वह टी-सीरीज के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। कश्मीर में हाल में शूटिंग भी हुई है। आरुषि को गंगा बचाओ अभियान के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है। कोरोना काल में आरुषि लोगों को जागरूक करती रहीं जिससे संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ा जा सके। सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी फैन फॉलोइंग है। युवा खासतौर से लड़कियां उनमें अपना रोल मॉडल देखती हैं।

अर्थ डे नेटवर्क ने साल 2020 के लिए आरुषि निशंक को अर्थ डे नेटवर्क स्टार चुना था। आरुषि को यूथ आइकन अवॉर्ड (दुबई), उत्तराखंड गौरव सम्मान, आधी आबादी अचीवमेंट अवॉर्ड, टॉप-20 ग्लोबल विमेन अवॉर्ड, अटल महर्षि शिखर सम्मान भी मिले हैं।

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