ई-रैबार में संडे को उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण (Pritam Bhartwan) ने समां बांध दिया। उन्होंने न सिर्फ कई गीत सुनाए बल्कि पारंपरिक बोली-भाषा के संरक्षण के साथ-साथ लॉकडाउन के बाद के हालात को लेकर भी एक तस्वीर सामने रखी।
तीन अप्रैल, रविवार को ‘ई-रैबार’ का लाइव शो बिल्कुल अलग था। संडे स्पेशल में उत्तराखंड के प्रख्यात जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण भी जुड़े। उन्होंने लोगों से लॉकडाउन का पालन करने का अनुरोध किया। प्रीतम भरतवाण ने लॉकडाउन को सही समय पर लिया गया सटीक फैसला बताते हुए कहा कि राहत की बात है कि हमारे पहाड़ों तक ये कोरोना नहीं पहुंचा है।
उन्होंने (Jagar Samrat Pritam Bhartwan) कार्यक्रम की शुरुआत एक भजन सुनाया, साथ ही पहाड़ की भाषा के संरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक धरातल पर अगर भाषा को हम संरक्षित करना चाहते हैं तो हमें बोलचाल से आगे बढ़कर पाठ्यक्रमों में इसे शामिल करना होगा।
स्कूलों में दिखे पहाड़ का ढोल
उन्होंने समझाते हुए कहा कि नई पीढ़ी तभी कोई भाषा को जानेगी, जब उन्हें उसका महत्व जानने दिया जाएगा। हमारे स्कूलों में जब ढोल दिखेगा, बच्चों को स्थानीय पहनावा दिखेगा तो उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में पता चलेगा। उन्हें उत्तराखंड के धाम, पहाड़ की महान विभूतियों के बारे में बतलाना होगा। छात्रों को बताया जाए कि भगवान गणेश महाभारत लिखे, व्यास जी ने बताया, वह जगह बदरीनाथ जी में है। प्रीतम भरतवाण ने कहा कि बच्चों को बताया जाए कि कैलाश मानसरोवर में भगवान शिव का वास है। ये सब विषय जब पढ़ने को दिए जाएंगे तब बच्चे में रुचि बनेगी और सालभर बाद प्रश्न आने वाले होंगे तब वह जानेगा कि माधव सिंह भंडारी कौन थे। अपनी प्राचीनतम संस्कृति के बारे में जानेगा तो अपनी स्थानीय भाषा में बात भी करेगा।
भाषा से ज्यादा भाव का महत्व…
प्रीतम भरतवाण ने आगे कहा कि भाषा का इतना महत्व नहीं है जितना भाव का है। कई बार चीजें उसी भाषा में समझ में आती हैं। हमें अपनी भाषा को संरक्षित करने के लिए उसे पाठ्यक्रम में नितांत रूप से प्राइमरी स्तर पर रखना होगा ताकी बच्चों को उसे पढ़ना ही पढ़े। अंग्रेजी स्कूलों में बच्चों के मार्च पास्ट के लिए पहाड़ के ढोल उपलब्ध कराए जाएं। इससे ढोल, ताम्र आदि से संबंधित पारंपरिक कार्यों में लगे लोगों को रोजगार भी मिलेगा। बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उस ढोल का इस्तेमाल कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि पहाड़ में पाठ्यक्रम पहाड़ के हिसाब से ही होने चाहिए।
इस दौरान उनसे दर्शकों ने भी लाइव सवाल पूछे। क्या फिल्मों में दिखाई देने से पहाड़ के कल्चर और भाषा को बढ़ावा मिलेगा? इस सवाल पर प्रीतम ने कहा कि फिल्म उद्योग तो उस चीज को चुनता है जो हिट है। उन्होंने कहा कि फिल्में तो 100 साल से हैं उससे सदियों पहले से गीत और संगीत है। फिल्मों में कोई गा लेता है तो लोग उसे जानने लगते हैं पर तानसेन के समय में कोई फिल्म नहीं होती थी। संगीत के लिए मंच की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने काम पर केंद्रित रहना है, अपने गीत-संगीत, कल्चर, भाषा को लेकर, तो बॉलीवुड खुद उस चीज को फिल्म में दिखाएगा।
जागर सम्राट प्रीतम के साथ हुई लाइव चर्चा को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें..
Please accept YouTube cookies to play this video. By accepting you will be accessing content from YouTube, a service provided by an external third party.
YouTube privacy policy
If you accept this notice, your choice will be saved and the page will refresh.
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *