करगेत बद्रीनाथ मंदिर : बद्रीनाथ से ज्योति लाकर कुमाऊं में स्थापित हुआ था यह मंदिर

करगेत बद्रीनाथ मंदिर : बद्रीनाथ से ज्योति लाकर कुमाऊं में स्थापित हुआ था यह मंदिर

अल्मोड़ा जिले के सल्ट पट्टी में गढ़वाल सीमा पर एक प्राचीन गांव है करगेत। इसी गांव में स्थापित है प्राचीन करगेत बद्रीनाथ मंदिर। इस मंदिर की बेहद धार्मिक मान्यता है। पाली पछाउं परगने में स्थित भगवान विष्णु का यह मंदिर 14वीं शताब्दी का है। करगेत गांव मौलेखाल में रामनगर मानिला मोटर मार्ग से कुछ ही दूरी पर है।

जीसी शर्मा, अल्मोड़ा

पीढ़ी दर पीढ़ी करगेत बद्रीनाथ मंदिर श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है। ऐसी लोक मान्यता है कि इस मंदिर को चंद राजाओं ने इसलिए ही बनवाया था ताकि शीतकाल में जब बद्रीनाथ मंदिर बंद रहता है, उस वक्त श्रद्धालु यहां भगवान बद्रीनाथ की पूजा-अर्चना कर सकें। प्रकृति के सौन्दर्य से शोभायमान प्राचीन करगेत गांव में स्थित करगेत बद्रीनाथ मंदिर का महत्व प्राचीन समय से ही बदरीकाश्रम मंदिर चमोली के समान ही माना जाता रहा है। लोक मान्यताओं के अनुसार, करगेत बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना तथा मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के वक्त ज्योति बद्रीनाथ मंदिर से लाई गई थी। इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास और भारतीय पुरातत्वविद पद्मश्री यशोधर मठपाल द्वारा संग्रहित ऐतिहासिक दस्तावेजों लेखक व वरिष्ठ पत्रकार मदन मोहन सती की प्रकाशित पुस्तक ‘लखनपुर के कत्यूर’ से भी उक्त मंदिर के अनेकों महत्वपूर्ण तथ्यों व लोक मान्यताओं की पुष्टि होती है।

समुद्र तल से 1850 मीटर की ऊंचाई पर

करगेत बद्रीनाथ मंदिर की छत पत्थर के प्लेटों व लकड़ी की बल्लियों से निर्मित है। मुख्य द्वार वर्गाकार है। इसमें दो खंभे तथा उन पर स्थित एक मेहराव है। द्वार की चौड़ाई और ऊंचाई क्रमशः 2.35 तथा 1.97 मीटर है। मंदिर में दो कमरे हैं। वाह्य कक्ष और गर्भगृह जाने का द्वार 2.1 तथा 1.55 मीटर ऊंचा तथा चौड़ा है। इसमें पांच सीढ़ीनुमा पट्टियां हैं। इसकी चौखट काफी भारी तथा कलात्मक हैं। वाह्य कक्ष की दीवारें काष्ट से आवृत हैं जिसमें नाना प्रकार की कलाकृतियां उकेरी हुई हैं। मंदिर की काष्ठ में उकेरी सभी आकृतियां एक विशिष्ट लोक तत्व ली हुई हैं जो अति मन भावन व आकर्षणशील हैं। मंदिर में हाथी और चार बाघों की प्रतिमाएं है। इनमें से हाथी तो बायी ओर बने हैं और बाघ दायीं ओर। इन आकृतियों को खूंटी के नीचे से आठ बंदर सहारा दे रहे हैं। हर दो खूंटियों के बीच में एक अलंकृत आयताकार फलक है। करगेत बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 1850 मीटर की ऊंचाई पर है। यह मंदिर अनुपम हिमालयी प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा से ओतप्रोत है। मंदिर विकास खंड मौलेखाल से रामनगर-मानिला मोटर मार्ग से कुछ दूरी पर स्थित है। दिल्ली से इस मंदिर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है। रानीखेत से करगेत बद्रीनाथ मंदिर करीब 75 किलोमीटर, जिम कार्बेट रामनगर से करीब 35 किलोमीटर है और अल्मोड़ा से करीब 115 किलोमीटर की दूरी पर है। प्रसिद्ध मानिला देवी मंदिर से करगेत बद्रीनाथ मंदिर की दूरी सिर्फ 40 किलोमीटर है। रामनगर से करगेत के मार्ग किनारे स्थित अन्य प्रमुख मंदिरों में सदियों पुराने गर्जिया देवी मंदिर, भौना देवी मंदिर, मानिला देवी मंदिर इत्यादि हैं।

मंदिर को पर्यटन से जोड़कर हो सकता है क्षेत्र का विकास

करगेत गांव के पास ही लकड़ी के शहतीरों से निर्मित एक प्राचीन विशाल झूला (हिंडोला) भी है। यह अभी भी विद्धमान है। इस स्थान को हिनौला (हिंडोला) बाजार नाम से जाना जाता है। इस विशाल झूले की लोकगाथा प्राचीन काल से ही परंपरागत रूप में एक परंपरा के तहत भगवान बद्रीनाथ के झूला झूलने से जुड़ी चली आ रही है। भगवान बद्रीनाथ जी को अनेक शुभ अवसरों, मेलों व समारोहों के अवसर पर इर्द-गिर्द के ग्रामीण जन सामूहिक रूप में एकत्रित होकर झुला झूला कर स्वयं को धन्यभाग मानते चले आ रहे हैं। भगवान बद्रीनाथ जी को झूला झुलाने व ग्रामीणों के स्वयं भी झूला झूलने की यह प्राचीन प्रथा व परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और इसमें श्रद्धालुओं की गहरी आस्था भी है। इस मंदिर को धार्मिक व पर्यटन नीति तथा मंदिर माला मिशन के तहत जोड़कर ग्रामीण जनों को रोजगार दिया जा सकता है और उन्हें अनेकों प्रकार के व्यवसायों से भी जुडने का अवसर मिल सकता है। धार्मिक पर्यटन बढ़ने से दोनों अंचलों से जुड़े इस सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्र के दर्जनों गांवों का विकास हो सकता है। अंचल से निरंतर हो रहे बढ़ते पलायन पर लगाम लगाई जा सकती है। अंग्रेजों के समय उत्तराखंड के सल्ट अल्मोड़ा में करगेत ग्राम पंचायत से जब भी लगान वसूला जाता था, वह केदार बद्रीनाथ मंदिर भेज दिया जाता था। अंग्रेज भी करगेत बद्रीनाथ मंदिर के महत्व को जानते थे। इसलिए वह लगान अंग्रेज अपने पास नहीं रखते थे।

एक से तीन गते तक लगता है मेला

करगेत बद्रीनाथ मंदिर में बैशाख एक गते से लेकर तीन गते तक मेला लगता है। जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। पाली पछाऊं का यह भू-भाग अंतिम कत्यूरी नरेशों की शरणस्थली भी रहा है। मानिला का कत्यूरी दुर्ग राजा बाजबहादुर चंद (1638-1678) ने नष्ट किया था। उसे अंदेशा था कि कत्यूरी शासक गढ़वाल नृपों की राह पर चन्द राजाओं का सिरदर्द बन सकते हैं। बाजबहादुर चंद शाहजहां का वरदहस्त प्राप्त कुमाऊंनी राजा था। वह अपनी चतुरता से औरंगजेब के काल में भी शासक के रूप में निर्भयता से शासन कर पाया था। बाजबहादुर के नाम पर ही बाजपुर नगर बसा है। बाज बहादुर चंद ने तिब्बत से कैलाश -मानसरोवर का इलाका जीता था। उसने कई सारे मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्वार कराया था। करगेत का श्री बदरीनाथ मंदिर भी उसी के कारण बन पाया था। करगेत बद्रीनाथ मंदिर के पास जिस तरह का विशाल झूला हिंडोला है, वैसे ही झूले पिथौरागढ़, देवीपुरा आदि स्थानों में भी देखे जा सकते हैं।

करगेत विकास समिति के अध्यक्ष गणेश चंद्र शर्मा के अनुसार कुमाऊं आंचल अल्मोड़ा जिले के पुरानी पाली पछाऊ परगना के पल्ला सल्ट पट्टी के करगेत गांव के ग्रामवासियों द्वारा गठित एकमात्र प्रमुख सामाजिक संस्था करगेत विकास समिति पदाधिकारीयों व सदस्यों की ओर से बद्री केदार मंदिर समिति ट्रस्ट पदाधिकारीयों से निवेदन किया है कि श्री बदरीनाथ – श्री केदारनाथ मंदिर समिति 45 अन्य अधिनस्थ मंदिरों और 20 धर्मशालाओं का रखरखाव करती उसी तरह प्राचीन सुप्रसिद्ध करगेत बद्रीनाथ मंदिर जिसकी प्राचीन समय से पीढ़ी दर पीढ़ी धार्मिक सामाजिक तथा ऐतिहासिक रूप से लोकमान्यता रही है। उक्त प्राचीन मंदिर का जीर्णोधार तथा संचालन अपने नियंत्रण में लेकर हमारी संस्था एवं क्षेत्र के जनमानस को कृतार्थ करें। बद्री केदार मंदिर समिति ट्रस्ट द्वारा बद्रीनाथ मंदिर करगेत का सर्वे भी कर दिया गया है और सर्वे रिपोर्ट को शीघ्र बद्री केदार मंदिर समिति ट्रस्ट की कमेटी में प्रस्तुत किया जाएगा।

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this