संस्कृति और आस्था का संगम है महाकुंभ

संस्कृति और आस्था का संगम है महाकुंभ

महाकुंभ 2025 में मकर संक्रांति के दिन भीड़ के सारे अनुमान फेल साबित हुए। एक दिन में करीब चार करोड़ आबादी ने मकर संक्रांति के दिन अमृत स्नान किया। हालांकि सरकारी आंकड़ों में 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की बात कही गई है।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

महाकुंभ कोई साधारण उत्सव नहीं है। यह एक ऐसी घटना है जो त्रिवेणी संगम के तटों को आस्था और दिव्यता के जीवंत ताने-बाने में बदल देती है। ब्रह्म मुहूर्त से जब सूर्य की पहली किरणें जल को छूती हैं, रात की गहराई तक, भक्तों की एक अविरल धारा बहती है, प्रत्येक पवित्र डुबकी के माध्यम से शुद्धि और आशीर्वाद मांगता है। सामूहिक भक्ति की गर्मी के सामने जनवरी की ठंड महत्वहीन लगती थी। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में आज का दिन काफी अहम है। दरअसल मकर संक्रांति के अवसर पर आज अमृत स्नान का पहला दिया है। महाकुंभ 2025 में मकर संक्रांति के दिन भीड़ के सारे अनुमान फेल साबित हुए। एक दिन में करीब चार करोड़ आबादी ने मकर संक्रांति के दिन अमृत स्नान किया। हालांकि सरकारी आंकड़ों में 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की बात कही गई है। लेकिन, पूरे क्षेत्र में भीड़ को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि 4 करोड़ के आसपास भीड़ रही होगी।

ये आंकड़ा दुनिया में एक दिन में किसी शहर में पहुंचने वाले यात्रियों की सबसे ज्यादा संख्या मानी जा रही है। इतना ही नहीं, ये संख्या दुनिया के सबसे बड़े शहर टोक्यो (जापान की राजधानी) और अपने देश भारत की राजधानी दिल्ली से भी ज्यादा है। मौजूदा समय में टोक्यो की जनसंख्या 3.7 करोड़ है। जबकि, भारत की राजधानी दिल्ली की 3.3 करोड़ है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से महाकुंभ नगर में 2 दिन में 5.25 करोड़ लोगों ने अमृत स्नान किया। मकर संक्रांति के दिन 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। एक ही दिन में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ आने से चारों तरफ हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच केवल नरमुंड ही नरमुंड दिखाई दे रहे थे। सिर पर गठरी बांधे, बगल में झोला टांगे आधी रात से ही लोग गंगा की तरफ बढ़ना शुरू हो गए थे। संगम नोज पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से अव्यवस्था नजर आई। भीड़ धक्का-मुक्की कर रही थी। घाटों पर कपड़े बदलने के लिए स्थान नहीं बचा था। भीड़ बढ़ने पर प्रयागराज जंक्शन सहित सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगानी पड़ी।

सबसे अधिक मेला स्पेशल गाड़ियों से श्रद्धालुओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का प्रयास किया गया। उत्तर मध्य रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि जैसे-जैसे श्रद्धालु आ रहे थे, उन्हें स्टेशन के अंदर मूव करने की क्षमता के हिसाब से अंदर लिया जा रहा था। बाकी को होल्डिंग एरिया में रोका जा रहा था। 100 से अधिक मेला स्पेशल ट्रेनों से उन्हें रात भर भेजने का काम किया गया। जैसे-जैसे स्टेशन खाली होता गया हम श्रद्धालुओं को अंदर लेते गए। इसी तरह से पूरी रात श्रद्धालुओं को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाने का प्रयास किया गया। महाकुंभ नगर के डीआईजी ने बताया कि भीड़ अनुमान से अधिक होने के बाद और संगम नोज पर दबाव बढ़ने से चार इमरजेंसी प्लान लागू करने पड़े। इसका फायदा यह हुआ कि इतनी बड़ी संख्या में मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं के पहुंचने के बाद भी किसी तरह की कोई घटना दुर्घटना नहीं हुई।

मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को 3.5 करोड़ लोगों ने पुण्य की डुबकी लगाई। जिले की आबादी तकरीबन 70 लाख के आसपास है। मकर संक्रांति पर आने वाले श्रद्धालु और प्रयागराज की आबादी को जोड़ लिया जाए तो यह संख्या 4.20 करोड़ हो जाती है। दुनिया में जापान का टोक्यो सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। यहां की आबादी 3.74 करोड़ है। इस तरह कुंभ नगर दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला शहर बन गया। अगर आबादी के लिहाज से देखा जाए तो दिल्ली दूसरे स्थान पर है। पौष पूर्णिमा के दिन भी 1.75 करोड़ लोगों ने स्नान किया था। अगर इस आंकड़े को मकर संक्रांति के मौके पर स्नान करने वालों की संख्या से जोड़ा जाए तो यह संख्या 5.25 करोड़ होती है।

29 जनवरी को मौनी अमावस्या का स्नान पर्व है। अमावस्या पर छह से आठ करोड़ के बीच श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। ऐसे में प्रयागराज 29 जनवरी को भी विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला शहर बनने जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ का पौष पूर्णिमा के पहले स्नान के साथ आगाज हो गया है। यूपी के प्रयागराज में 144 साल बाद महाकुंभ का आयोजन हुआ है। आधिकारिक रूप से 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में मकर संक्रांति पर्व पर करीब चार करोड़ लोगों ने अमृत स्नान किया। खास बात है कि दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में यूपी सरकार और प्रशासन के क्राउड मैनेजमेंट की जमकर प्रशंसा की जा रही है।

हालांकि, इसके अलावा कुंभ में पहुंचे खास दो लोगों की चर्चाएं भी खूब हो रही हैं। इसमें एक एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी पॉवेल और दूसरी हैं हर्षा। बाबा कहते हैं कि मानव धर्म पहले भी था आज भी है, आगे भी रहेगा। यदि हम मानव धर्म का योगदान करेंगे तो आगे भी चलेगा। यह हिंदू मुस्लिम की लड़ाई तो होती ही रहती है। इनसे हम डरेंगे तो भारत गुलाम हो जाएगा। मुसलमानों से बिल्कुल नहीं डरना है। वह भी एक इंसान हैं। हम भी इंसान हैं। पहली बात तो भगवान ने कोई जाति नहीं बनाई। हमारे गुरु जी ने बताया भगवान के पास से कोई जात-पात बनकर नहीं आई। हम जात और पात में यहीं बंटें हैं।

मकर संक्रांति का धार्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व है। धार्मिक दृष्टि से, यह दिन भगवान सूर्य की पूजा का दिन है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं। सांस्कृतिक रूप से, यह पर्व नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है। इस दिन तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और पतंगें उड़ाई जाती हैं। खगोलीय दृष्टि से, इस दिन सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। अलग-अलग भाषाएं बोलना, अलग-अलग पारंपरिक पोशाक पहनना और अनूठी सांस्कृतिक प्रथाओं को अपनाना – एक अद्भुत सामंजस्य का निर्माण करता है। विविधता के बीच यह एकता महाकुंभ के सबसे गहन पहलुओं में से एक है। यहीं पर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत जीवंत होती है, जहां सनातन परंपरा के भगवा झंडे तिरंगे के साथ लहराते हैं, जो देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है। महाकुंभ भारतीय विरासत और आध्यात्मिकता का प्रतिबिंब है। मकर संक्रांति पर अमृत स्नान को जीवन में आशीर्वाद और सकारात्मकता को आमंत्रित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।

पवित्र संगम के पानी में डुबकी लगाने से, भक्तों का मानना है कि वे पापों को धो सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-जैसे दिन ढलता गया, संगम के तट पर चहल-पहल बनी रही। तीर्थयात्रियों ने दीये जलाए और उन्हें नदी में प्रवाहित किया, उनकी टिमटिमाती लपटें आशा और प्रार्थनाओं का प्रतीक थीं जो ईश्वर तक ले जाई जाती थीं। गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम शाम के समय झिलमिला रहा था, एक पवित्र स्थान जहां स्वर्ग धरती को छूता हुआ प्रतीत हो रहा था। प्रयागराज की यात्रा करने वालों के लिए, महाकुंभ 2025 में मकर संक्रांति केवल देखने लायक घटना नहीं थी, बल्कि जीने, महसूस करने और अपने भीतर ले जाने का अनुभव हैं, – समय का एक ऐसा क्षण जिसने सांसारिक और दिव्य को जोड़ दिया। एक संत के शब्दों में, ‘महाकुंभ केवल एक उत्सव नहीं है; यह शाश्वत से हमारे जुड़ाव की याद दिलाता है। यह वह जगह है जहां मानवता के अनगिनत धागे मिलकर दिव्यता और एकता का ताना-बाना बुनते हैं।’

लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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