चंद्रयान-3 को सफल बनाने में उत्तराखंड के कई वैज्ञानिकों ने दिया अपना अहम योगदान

चंद्रयान-3 को सफल बनाने में उत्तराखंड के कई वैज्ञानिकों ने दिया अपना अहम योगदान

इसरो के सम्मानित वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की कक्षा में स्थापित कर देश का नाम रोशन कर, दुनिया में नंबर वन बना दिया। जिसके लिए हम इसरो के समस्त वैज्ञानिकों को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं। इसरो की इस टीम में उत्तराखंड के कई वैज्ञानिक भी शामिल थे।

चंद्रयान-3 के लांचिंग से लेकर चांद तक पहुंचाने की सफल लैंडिंग में देश के विभिन्न हिस्सों के वैज्ञानिकों का अहम योगदान रहा। इन वैज्ञानिकों की टीम में उत्तराखंड के भी कई वैज्ञानिक शामिल थे। डॉ कुलदीप सिंह नेगी ने रुड़की आईआईटी से इंजीनियरिंग और पीएचडी की डिग्री हासिल कर, उनका चयन इसरो में प्रोजेक्ट ऑफिसर के रूप में हुआ था और आज वे इसरो का अहम हिस्सा हैं।

डॉ कुलदीप सिंह नेगी चंद्रयान मिशन के प्रोजेक्ट ऑफिसर के रूप में अहम् भूमिका में थे तथा इस अभियान का सबसे महत्वपूर्ण भाग लैंडर की स्पीड से संबंधित था और इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। डॉ कुलदीप सिंह नेगी इस पूरे प्रोजेक्ट में मुख्य भूमिका में थे।

डॉ कुलदीप नेगी ग्राम बुरगांव देवराज खाल, जिला पौड़ी गढ़वाल के रहने है इस समय उनका परिवार मेरठ में रहता है। डॉ कुलदीप सिंह नेगी के पिता शिशुपाल सिंह नेगी, मेरठ यूनिवर्सिटी से सेवानिवृत्त हुए और वह मेरठ के शास्त्री नगर में निवास करते है।

इसके अलावा भी चंद्रयान-3 में उत्तराखंड के कई और वैज्ञानिकों ने अपना योगदान दिया है। राजेंद्र सिंह सिजवाली का 2005 में इसरो में वैज्ञानिक पद पर चयन हुआ। उनकी तैनाती अंतरिक्ष उपयोग केंद्र अहमदाबाद में है। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर प्रोजेक्ट मैनेजर रहते हुए उन्होंने अपने केंद्र के महत्वपूर्ण सेंसर के लिए पावर सिस्टम को विकसित करने में प्रमुख योगदान दिया। उन्होंने इसरो के कई अभियानों में बेहतर काम किया है।

अल्मोड़ा जिले के दूरस्थ गांव के एक युवक ने सरकारी विद्यालय में पढ़कर चंद्रयान-3 की टीम में शामिल होकर मिसाल पेश की है। इसरों के चंद्रयान-3 मिशन टीम में शामिल वैज्ञानिकों में धौलादेवी विकासखंड के पुनौली निवासी वैज्ञानिक राजेंद्र सिंह सिजवाली भी हैं। उन्होंने पावर सिस्टम को विकसित करने में प्रमुख योगदान दिया। विपिन त्रिपाठी कुमाऊं इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी द्वाराहाट से इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक किया।

इसके अलावा पंतनगर के विनोद जोशी भी है। विनोद जोशी बीटेक (मैक इंजीनियरिंग), 1985-89 बैच के हैं। उनका जन्म और पालन-पोषण पंतनगर में हुआ। उन्होंने जूनियर किलोग्राम से कक्षा पांच तक की स्कूली शिक्षा बाल निलयम नर्सरी स्कूल से की और बाद में उन्होंने पंतनगर इंटर कॉलेज से बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। उनके माता भगवती जोशी और पिता शेखरानंद जोशी हमेशा उनके लिए प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। उनका मूल निवास ग्राम बिन्ता, जिला अल्मोडा है। वह एक डे स्कॉलर थे और 3/752, झा कॉलोनी के निवासी थे। उन्होंने डे स्कॉलर के रूप में बीटेक में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

वह 1991 में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद इसरो में शामिल हुए और बाद में इसरो प्रायोजित उम्मीदवार के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन किया। एक विनम्र, जमीन से जुड़े, सरल व्यक्ति, विनोद जोशी के पास शिक्षा-उद्योग के अंतर पर गहरी अंतर्दृष्टि है।

विनोद जोशी बताते हैं कि मेरी रुचि के क्षेत्र अंतरिक्ष घटकों की सटीक मशीनिंग, लेजर सिंटरिंग एएम, स्वदेशीकरण, एमएसएमई के माध्यम से क्षमता निर्माण, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और इसके अनुप्रयोगों में क्षमता निर्माण, अंतरिक्ष घटकों की लागत हैं। इसरो में अपने कार्य अनुभव के दौरान मुझे एहसास हुआ कि छात्र पढ़ाई में तो बहुत अच्छा कर रहे हैं, लेकिन जब परिणाम देने की बात आती है, तो हमारे पास समाधान नहीं हैं। इसका उत्तर यह है कि हमारे पास कौशल की कमी है और हमारा उत्पाद कई बार ’उपयोग के लिए उपयुक्त’ टैग से चूक जाता है। इसका सीधा सा कारण कौशल की कमी है।

अब, इस रिक्त स्थान को कैसे भरें? हम अपने छात्रों को एक उत्पाद इस तरह विकसित करने के लिए संवेदनशील बनाएं या प्रेरित करें कि यह संस्थान के लिए गौरव बन जाए। मैं जानता हूं कि हर जगह संसाधनों की कमी है और इसका समाधान ढूंढना ही एकमात्र रास्ता है।

इस अभियान में ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर की बेटी तन्मय तिवारी का भी अहम योगदान रहा। तन्मय ने वर्ष 2017 में इसरो में ज्वाइनिंग की थी। तन्मय ने इसरो के लॉचिंग पैड श्री हरि कोटा आंध्रा प्रदेश में वर्ष 2017 से अप्रैल 2023 तक नौकरी की। इसके बाद तन्मय का ट्रांसफर इसरो के हैड ऑफिस बेंगलुरु सीनियर साइंटिस्ट इंजीनियर ग्रेट-2 के पद पर हो गया।

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