देहरादून में ‘आपदा सुरक्षित उत्तराखंड’ विषय पर उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग द्वारा आयोजित वर्कशॉप में एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह बोले, तैयारियों पर सबसे ज्यादा फोकस, देश भर में कई योजनाओं पर चल रहा काम। जल्द आएगा कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल। एक ही ऐप पर मिलेगी आपदा से संबंधित हर सूचना।
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस के अवसर पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। यह दिन आपदाओं के प्रति सजगता, सतर्कता और उससे बचने के उपायों के बारे में आम जनमानस के बीच जनजागरुकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। उत्तराखंड के विभिन्न हितधारकों को विभिन्न आपदाओं से जुड़े विषयों से अवगत कराने के लिए आयोजित कार्यशाला में उत्तराखंड राज्य में आपदा प्रबंधन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य राजेंद्र सिंह ने NDMA द्वारा आपदा प्रबंधन की दिशा में लिए जा रहे निर्णयों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशन में देश भर में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कई योजनाओं पर काम चल रहा है। देश में जहां पश्चिमी छोर पर चक्रवाती तूफान से बचाव के लिए बड़ी संख्या में शेल्टर बनाए गए हैं, वहीं आपदा के फर्स्ट रिस्पांडर के तौरपर वॉलंटियर्स के तैयार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हमारा ध्येय है कि आपदा के समय कोई भी पीछे नहीं छूटे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कोई सुरक्षित नहीं है, जब तक कि सब सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए एनडीएमए ने तैयारियों पर फोकस किया है।
राजेंद्र सिंह ने नीति निर्धारण में सामाजिक प्रतिभागिता के महत्व पर बल दिया। राजेंद्र सिंह ने कहा, देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 आपदा प्रभावित राज्य हैं। 60 प्रतिशत जमीन भूकंप संभावित क्षेत्र है। 5700 किमी तटीय क्षेत्र चक्रवाती तूफान और सुनामी के लिहाज से संवेदनशील है। जब हम उत्तराखंड की बात करते हैं तो यहां पर कई तरह की आपदाएं आती हैं। यही वजह है कि एनडीएमए ने राहत एवं बचाव के साथ-साथ तैयारियों पर फोकस किया है। एनडीएमए में देश के 350 ऐसे जिलों का चयन किया है, जहां आपदाएं ज्यादा आती हैं। इन जिलों में आपदा मित्र नाम की योजना शुरू की गई है। यह 25 राज्यों में 30 जिलों में 200 वॉलंटियर्स प्रति जिले के साथ शुरू की गई। इसमें 6000 वॉलंटियर्स को तैयार किया गया। उत्तराखंड के हरिद्वार में 200 वॉलंटियर्स को प्रशिक्षण दिया गया, ये सभी अपना काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत 370 करोड़ रुपये का बजट है और अगले अक्टूबर तक 350 जिलों में एक लाख वॉलंटियर्स तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए राज्यों को पहली किस्त भी भेज दी गई है। उन्होंने बताया कि ये आपदा मित्र सरकारी नीतियों को समाज तक ले जाने के लिए सेतु का काम करेंगे।
एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह ने बताया कि जब भी आपदाएं आती हैं तो तमाम विभागों की ओर से अलग-अलग चेतावनी जारी की जाती है। अब इसके लिए सीएटी यानी कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल योजना तैयार की जा रही है। एक साल के अंदर यह पूरी तरह तैयार हो जाएगी। इसके बाद पूरे देश में एक ही माध्यम से, एक ही ऐप से अलर्ट जाएगा। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के एनडीआरएफ की एक बटालियन दी गई है। इसके साथ ही एनडीआरएफ को फंड जारी किए गए हैं ताकि वे अपने तकनीकी क्षमताओं में इजाफा करें।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पर्यावरणविद डा. अनिल प्रकाश जोशी ने उत्तराखंड राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों के मद्देनजर प्रदेश में आपदा नीति निर्धारण के विषय में विशेष कदम उठाने की बात कही। साथ ही उन्होंने शिक्षण संस्थानों के माध्यम से आपदा प्रबंधन संबंधी जानकारी को जन-जन में प्रचारित करने पर बल दिया।
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग के सचिव एसए मुरुगेशन के निर्देशन में संपन्न कार्यशाला में भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों, तथा राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, पुलिस, स्वास्थ्य, शिक्षा, समस्त अभियांत्रिकी विभाग एवं अन्य विभागों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला की शुरुआत में आपदा प्रबंधन विभाग में अपर सचिव डा. आनंद श्रीवास्तव ने कार्यशाला के सत्रों का सारांश प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने उत्तराखंड राज्य सरकार तथा उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की भी जानकारी दी। इस दौरान जन जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आपदा से जुड़े विभिन्न विषयों की जागरूकता सामग्री एवं राज्य आपदा प्रतिवादन बल ने खोज एवं बचाव कि प्रदर्शनी का भी आयोजन किया।
कार्यशाला में विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों तथा अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं, आपदा पूर्वानुमान, राहत-बचाव, रिकवरी तथा सामाजिक प्रतिभागिता के महत्व पर चर्चा की। इस दौरान वन्यजीव संस्थान में वैज्ञानिक डा. एस सत्यकुमार ने मानव-वन्यजीव संघर्ष, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के डा. पीयूष रौतेला ने पारंपरिक आपदा प्रबंधन तकनीक, वाडिया भूविज्ञान संस्थान के डा. कलाचंद साईं ने आपदा संवेदनशीलता, आईआईटी रुड़की के डा. कमल ने भूकंप पूर्वानुमान चेतावनी तंत्र, आईआईआरएस के निदेशक डा. प्रकाश चौहान ने आपदा प्रबंधन में अंतरिक्ष तकनीक पर अपने विचार रखे। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी जितेंद्र कुमार सोनकर ने अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
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