पीएम नरेंद्र मोदी ने अजीत डोभाल पर भरोसा जताते हुए उन्हें तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। अजीत डोभाल के तीसरी बार एनएसए बनने से उनके नाम एक कीर्तिमान स्थापित हो गया है। वह भारत के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो लगातार तीसरी बार एनएसए बने हैं।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में पहाड़ के लाल अजीत डोभाल को लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। वह पिछले दस सालों से एनएसए की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यह उनके नाम एक रिकार्ड है। साल 2014 में जब केंद्र में पहली बार नरेंद्र मोदी नीत बीजेपी की सरकार आई थी तब उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था। 31 मई 2014 को मोदी सरकार 1.0 में अजीत डोभाल को देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था। तब से लगातार वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ यह अहम पद संभाल रहे हैं। अजीत डोभाल को कूटनीतिक सोच और काउंटर टेरेरिज्म का विशेषज्ञ माना जाता है। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ’आंख और कान’ का विशेषण दिया जाता है। अजीत डोभाल 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह आईबी के चीफ भी रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में डोभाल का मुख्य काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सलाह देना होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद 1998 में पहली बार बना था। उस समय देश में दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया गया था।
अजीत डोभाल के लिए कहा जाता है कि वह आतंकियों में फूट डालने की रणनीति के बादशाह हैं। खुफिया ब्यूरो के पूर्व अधिकारी बताते हैं कि जब मिजोरम में उपद्रव चरम पर था, तब उस स्थिति को भी बदलने में भी अजीत डोभाल ने अहम भूमिका निभाई थी। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने में भी पहाड़ के इस लाल का अहम योगदान था। उन्होंने पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में छह साल से अधिक समय तक काम किया है। 90 के दशक में जब कश्मीर आतंकवाद की आग में झुलस रहा था तब अजीत डोभाल ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों की कमर तोड़ने के लिए कुछ आतंकवादियों को भारत के पक्ष में तोड़ा था। मिजो नेशनल आर्मी को शिकस्त देकर अजीत डोभाल ने किसी जमाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी दिल जीत लिया था। अजीत डोभाल ने 1999 में वाजपेयी सरकार के दौरान अपहृत किए गए भारतीय विमान आईसी 814 के यात्रियों को कंधार से वापस लाने में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। ईराक में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने 46 भारतीय नर्सों को बंधक बनाया था। नर्सों की वापसी को लेकर उस समय खूब हंगामा मचा था। तब परदे के पीछे नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए जो ऑपरेशन चला उसके मास्टर माइंड कोई और नहीं बल्कि अजीत डोभाल ही थे। यही कारण है कि उन्हें भारतीय कूटनीति का चाणक्य कहा जाता है। अजीत डोभाल के दादा ने लाहौर कॉलेज से ज्योतिष का विधिवत अध्ययन किया था। उनका स्वंय का झुकाव वेद, पुराण और उपनिषदों की ओर रहा है। वह धार्मिक स्वभाव और जमीन से जुड़े हुए व्यक्तित्व के धनी हैं। मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने के लिए चीन को विवश करने वाले भी अजीत डोभाल ही थे।
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की है पैदाइश
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ। वह बेहद तेज तर्रार अधिकारी माने जाते हैं। उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान सैन्य बलों को वीरता के लिए दिया जाता है। वह भारतीय पुलिस पदक पाने वाले सबसे युवा अधिकारी थे। अजीत डोभाल गैर सरकारी संस्था विवेकानंद की शाखा विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक भी रह चुके हैं।
डोभाल की रणनीति ने पुलवामा का लिया बदला
मोदी सरकार में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने से लेकर पाकिस्तान से पुलवामा हमले का बदला लेने और डोकलाम विवाद में चीन को दो टूक जवाब देने तक अजीत डोभाल की रणनीति अहम है। पुलवामा का बदला लेने के लिए भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को नष्ट किया था। इस रणनीति का नेतृत्व अजीत डोभाल ने ही किया था। उन्होंने इस अहम पल में वायुसेना, नौसेना के शीर्ष अधिकारियों से रणनीति पर चर्चा से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पल-पल की जानकारी देने तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अजीत डोभाल के नेतृत्व ने ही झुकाया चीन और पाकिस्तान
उरी हमले के बाद भारत की तरफ से पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्टाइक भी अजीत डोभाल के ही दिमाग की रणनीति थी। पाकिस्तान में साल 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के अहम किरदार अजीत डोभाल ही हैं। 2017 में 70 दिन तक चीन के साथ डोकलाम गतिरोध चला था जिसे शांतिपूर्ण हल करने में उनकी अहम भूमिका रही। भारत के बदले तेवर और अजीत डोभाल की रणनीति ने डोकलाम विवाद पर चीन को समाधान के लिए बाध्य कर दिया था। अजीत डोभाल के बारे में मशहूर है कि वह जैसे को तैसा की रणनीति पर चलते हैं। इसकी एक बानगी है कि जब डोकलाम गतिरोध के दौरान डोभाल ने चीन यात्रा की थी। तब बीजिंग में चीन के स्टेट काउंसलर यांग जिएची उनसे मिले और पूछा ‘क्या ये आपका इलाका है?’ इस पर डोभाल ने करारा जवाब देते हुए कहा ‘क्या हर विवादित इलाका अपने आप चीन का हो जाता है?’ उनके पहले और दूसरे कार्यकाल में भारत ने इस्राइल, यूएई और फ्रांस के साथ करीबी सामरिक रिश्ते विकसित किए। उन्होंने ही पठानकोट एयरबेस अटैक को न्यूट्रलाइज किया और अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन को गिरफ्तार करवाने में अहम भूमिका निभाई। रक्षा, आंतरिक मामले और विदेश से जुड़े अहम मुद्दों में अजीत डोभाल की रणनीति का सत्ता पक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष भी कायल है।
सुरक्षा नीति के चाणक्य
अजीत डोभाल को सुरक्षा नीति का चाणक्य कहा जाता है। मोदी सरकार 1.0 और मोदी सरकार 2.0 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मजबूत इच्छाशक्ति वाले ऐतिहासिक फैसले को अमलीजामा पहनाने में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अहम भूमिका रही है। जब जम्मू-कश्मीर और केंद्र कारगिल युद्ध की 20वीं वर्षगांठ मनाने में व्यस्त था उस समय एनएसए अजीत डोभाल ने 23 और 24 जुलाई को श्रीनगर का सीक्रेट दौरा किया था। उसके बाद अनुच्छेद 370 हटाया गया और इसकी पूरी पटकथा के पीछे का चेहरा अजीत डोभाल था। अजीत डोभाल ने 1972 में इंटेलिजेंस ब्यूरो ज्वाइन कर लिया था। उन्होंने सात साल ही पुलिस की वर्दी पहनी और उसके बाद अधिकतर वक्त देश के खुफिया विभाग में गुजारा। उन्हें देश की आंतरिक और बाह्य दोनों ही खुफिया एजेंसियों में लंबे समय तक जमीनी स्तर पर काम करने का अनुभव है। वह इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ रह चुके हैं। काउंटर टेरेरिज्म का उन्हें मास्टर माना जाता हैं। पंजाब से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक और कंधार से लेकर कश्मीर तक अजीत डोभाल ने देश और दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अहम योगदान दिया है।
चरमपंथियों की अहम जानकारी लाए थे डोभाल
अजीत डोभाल सबकी नजरों में सबसे पहले उस समय आए जब उन्हें पूर्वोत्तर में मिजोरम में काम करने भेजा गया। वह वहां फील्डमैन हुआ करते थे और भूमिगत हो गए लोगों से उनके अच्छे संबंध हुआ करते थे। साल 2006 में अजीत डोभाल ने एक अंग्रेजी अखबार को साक्षात्कार दिया जिसमें उन्होंने बताया था कि एक बार उन्होंने लालडेंगा के मिजो नेशनल फ्रंट के विद्रोहियों को अपने घर खाने पर बुलाया। उनके पास भारी हथियार थे। अजीत डोभाल ने इंटरव्यू में कहा था, ’मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि वो सुरक्षित रहेंगे। मेरी पत्नी ने उनके लिए सूअर का मांस बनाया। पत्नी ने इससे पहले कभी सुअर का मांस नहीं बनाया था। इसी से साफ है कि डोभाल आवश्यकता पड़ने पर लीक से हटकर काम करने से भी नहीं हिचकते हैं। अजीत डोभाल ने ही सबसे पहले नवाज शरीफ से संपर्क स्थापित किया था। यह वह दौर था जब नवाज शरीफ ने पाकिस्तान की राजनीति में उभरना शुरू किया था। साल 1982 में जब भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान दौरे पर लाहौर पहुंची तो अजीत डोभाल के कहने पर ही नवाज शरीफ ने अपने घर के लॉन में भारतीय टीम को दावत दी थी।
साल 1988 में हुए ऑपरेशन ब्लैक थंडर-टू में अजीत डोभाल की भूमिका ने उनकी ख्याति में चार चांद लगा दिए थे। जब चरमपंथी स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे हुए थे तो अजीत डोभाल भी अंडर कवर के रूप में स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे हुए थे। अजीत डोभाल के बायोग्राफी में यतीश यादव बताते हैं कि सन् 1988 में स्वर्ण मंदिर के आसपास रहने वाले अमृतसर के निवासियों और खालिस्तानी लड़ाकों ने एक व्यक्ति को रिक्शा चलाते हुए देखा। उसने उन लड़ाकों को विश्वास दिला दिया कि वह आईएसआई का सदस्य है और उसे खासतौर से उनकी मदद करने के लिए भेजा गया है। ब्लैक थंडर ऑपरेशन शुरू होने से दो दिन पहले वह रिक्शा चलाने वाला स्वर्ण मंदिर में घुसा और वहां से महत्वपूर्ण जानकारी लेकर बाहर लौटा। इस तरह अजीत डोभाल ने पता लगाया कि स्वर्ण मंदिर के अंदर कितने चरमपंथी थे। कश्मीर में अजीत डोभाल ने पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ संपर्क स्थापित किए। जब 1999 में भारतीय विमान का अपहरण कर कंधार ले जाया गया तो उन्हें उस वक्त कंधार भेजा गया था। जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर उन्होंने अजीत डोभाल के नाम पर अपनी मुहर लगाई। कांग्रेस के कार्यकाल में अजीत डोभाल को इंटेलिजेंस ब्यूरो का प्रमुख बनाया गया था।
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